आगरालीक्स(04th September 2021 Agra News)… मंगल दिवस छठी को आयो… आज मनाया जा रहा है श्रीकृष्ण छठी पूजन महोत्सव. जानिए क्या है छठी पूजन. इसके पूजने से हमें क्या मिलता है.
शिशु की मंगल कामना से की जाती है
श्रीकृष्ण का छठी पूजन महोत्सव आज मनाया जा रहा है। मंदिरों में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। पंडित हृदय रंजन शर्मा ने बताया कि हिन्दुओं के घरों में शिशु जन्म के छठे दिन सायंकाल या रात्रि को जो विशेष पूजन किया जाता है, उसे बोलचाल की भाषा में ‘छठी पूजा’ कहते हैं। छठी पूजा नवजात शिशु के मंगल की कामना से की जाती है।

यह है लोकगीत
मंगल दिवस छठी को आयो। आनंदे व्रजराज जसोदा मनहुं अधन धन पायो।
कुंवर नहलाय जसोदा रानी कुलदेवी के पांव परायो
बहु प्रकार व्यंजन धरि आगें सब विधि भली मनायो
सब ब्रजनारी बधावन आईं सुत को तिलक करायो
जयजयकार होत गोकुल में परमानंद जस गायो।।
कौन हैं षष्ठी देवी
पंडित हृदय रंजन शर्मा ने बताया कि मूलप्रकृति के षष्ठांश (छठा अंश) होने से इन्हें ‘षष्ठी देवी’ कहते हैं। पुराणों में षष्ठी देवी को ‘बालकों की अधिष्ठात्री देवी’, उनको दीर्घायु प्रदान करने वाली, उनकी धात्री (भरण-पोषण करने वाली) व उनकी रक्षा करने वाली और सदैव उनके पास रहने वाली माना गया है। इन्हें ‘विष्णुमाया’, ‘बालगा’, ‘सिद्धयोगिनी’ और स्वामी कार्तिकेय की पत्नी होने से ‘देवसेना’ भी कहते हैं।
यह है मान्यता
उन्होंने बताया कि षष्ठी देवी की कृपा से राजा प्रियव्रत का मृतपुत्र जीवित हो गया। तभी से बालक के जन्म के बाद सूतिकागृह में छठे या इक्कीसवें दिन व अन्नप्राशन संस्कार तथा अन्य शुभकार्यों में षष्ठी पूजा होने लगी।
बालकृष्ण को नहलाकर सुंदर वस्त्र पहनाए
श्रीकृष्ण जन्म की छठी रात्रि में नंदबाबा और नंदरानी यशोदा अपने पुत्र की मंगलकामना के लिए सूतिका-गृह में षष्ठी पूजा के लिए बैठे। बालकृष्ण को नहलाकर सुन्दर वस्त्र पहनाए। गोबर से षष्ठी देवी की सुन्दर मूर्ति बनायी गयी। सफेद चावलों की वेदी पर षष्ठी देवी की मूर्ति को विराजमान कर पास में कलश स्थापना की गयी। फिर षोडशोपचार पूजन कर उनका भांति-भाति के व्यजंनों का भोग लगाया गया और प्रार्थना की..
नमो देव्यै महादेव्यै सिद्धयै शान्त्यै नमो नम:
शुभायै देवसेनायै षष्ठीदेव्यै नमो नम:
धनं देहि प्रियां देहि पुत्रं देहि सुरेश्वरि
धर्मं देहि यशो देहि षष्ठीदेव्यै नमो नम:
भूमिं देहि प्रजां देहि देहि विद्यां सुपूजिते
कल्याणं च जयं देहि षष्ठीदेव्यै नमो नम: ।। (ब्रह्मवैवर्तपुराण, प्रकृतिखण्ड)
पीले थापे लगाए
कुल की प्रथा के अनुसार यशोदाजी ने अपने पुत्र की छठी पूजी और पीले थापे लगाए। सब गोपबालाओं ने सोने के थाल भर-भर के बालकृष्ण को उपहार दिए और मंगलगीत गाकर उनको चिरंजीवी होने का आशीर्वाद दिया।