आगरालीक्स… आगरा के चारों महादेव की परिक्रमा कांवड यात्रा के समान फलदायी है। परिक्रमा कर जलाभिषेक अथवा कांवड चढ़ाने से हर मनोकामना होती है पूरी। क्या है इसका महत्व।
श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान के ज्योतिषाचार्य पं. हृदय रंजन शर्मा बताते हैं कांवड़ शिव की आराधना का ही एक रूप है। इस यात्रा से जो शिव की आराधना कर लेता है, वह धन्य हो जाता है। कांवड़ का अर्थ है परात्पर शिव के साथ विहार। अर्थात ब्रह्म यानी परात्पर शिव, जो उनमें रमन करे वह कांवरिया।
💥 श्रावण माह के सोमवार को परिक्रमा, कांवड यात्रा, अमरनाथ समेत सभी कठिन यात्राएं जिनका गंतव्य शिव से सम्बन्धित देवालय होते हैं, जहां जाकर भगवान शिव का जलाभिषेक करतें हैं। इन सभी का महत्व एक जैसा होता है।
आगरा के चारों महादेव राजेश्वर महादेव, बल्केश्वर महादेव, कैलाश महादेव और पृथ्वीनाथ महादेव मंदिर चारों कोनों पर स्थित है। श्रावण मास में परिक्रमा करने से मनोवांछित फल की प्राप्त होती है। करीब 40 किलोमीटर लंबी परिक्रमा के के दौरान हर-हर महादेव के जय घोष गूंजते रहते हैं। चारों महादेव मंदिरों पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व के हैं।
परिक्रमा कर जलाभिषेक व कांवड चढ़ाने से प्राप्त होती है सुख-समृद्धि
भगवान शिव का अभिषेक भारतवर्ष के सारे शिव मंदिरों में होता है। लेकिन श्रावण मास में कांवड़ के माध्यम से जल-अर्पण करने से वैभव और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। वेद-पुराणों सहित भगवान भोलेनाथ में भरोसा रखने वालों को विश्वास है कि कांवड़ यात्रा में जहां-जहां से जल भरा जाता है, वह गंगाजी की ही धारा होती है।
चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति
🔥 कांवड़ के माध्यम से जल चढ़ाने से मन्नत के साथ-साथ चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है।
परिक्रमा और कांवड़ यात्रा का महत्व एक जैसा
🌸 कांवड़ शिव के उन सभी रूपों को नमन है। कंधे पर गंगा को धारण किए श्रद्धालु इसी आस्था और विश्वास को जीते हैं।
🌟 इसके हर कदम के साथ एक अश्वमेघ यज्ञ करने जितना फल प्राप्त होता है। यूपी, बिहार सहित दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान तक में कांवड़ लाने का प्रचलन है। घरों में भी प्रायः श्रद्धालु शिवालयों में जाकर सावन मास में भगवान शिव का जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक, करते हैं।
🔥 हरिद्वार में भगवान परशुराम ने शुरु की कांवड़
हरिद्वार में कांवड़ यात्रा के बाबत कहा जाता है सर्वप्रथम भगवान परशुराम ने कांवड़ लाकर “पुरा महादेव”, जो यूपी के बागपत में है, भगवान भोलेनाथ की नियमित पूजा करते थे। यह परंपरा आज भी जारी है।