आगरालीक्स …आगरा में युवा कूल्हे के दर्द से कराह रहे हैं, ये पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं, जानें उजाला सिग्नस रेनबो हॉस्पिटल के वरिष्ठ अस्थि एवं जोड़ प्रत्यारोपण विशेषज्ञ एवं एम्स नई दिल्ली से प्रशिक्षण प्राप्त डॉण् सिद्धार्थ दुबे.
पहले मेरी जांघों में दर्द शुरू हुआ। पहले मैंने पेन किलर खाई मगर इससे आराम नहीं मिला। धीरे—धीरे पैर एक—दूसरे पर चढ़ना शुरू हुए फिर एक पैर छोटा लगने लगा। कूल्हा चिपक गया। मैं बिना सहारे चलने—फिरने में असमर्थ हो गया। इस बीच मैंने इलाज भी कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। आखिर डॉक्टर ने वो कहा जो मैं नहीं सुनना चाहता था। आपके कूल्हे बदले जाएंगे।
फतेहाबाद के रहने वाले अमर अभी 22 साल के हैं और इतनी कम उम्र में अपने इस दर्द को बयां करते हुए उनका गला रूंध जाता है। हालांकि यह कहानी अकेले अमर की नहीं हैं बल्कि आगरा में ऐसे तमाम उदाहरण हैं जिनकी जिंदगियां हिप रिप्लेसमेंट के बाद बदल गई हैं। केंद्र सरकार की आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत उजाला सिग्नस रेनबो हॉस्पिटल में हिप रिप्लेसमेंट—कूल्हा प्रत्यारोपण सर्जरी मरीजों के लिए वरदान साबित हो रही है।
क्यों और कब पड़ती है कूल्हा प्रत्यारोपण की जरूरत
उजाला सिग्नस रेनबो हॉस्पिटल के वरिष्ठ अस्थि एवं जोड़ प्रत्यारोपण विशेषज्ञ एवं एम्स नई दिल्ली से प्रशिक्षण प्राप्त डॉ. सिद्धार्थ दुबे बताते हैं कि आम तौर पर तीन सूरत में कूल्हा प्रत्योरोपण की जरूरत पड़ सकती है। पहला अगर कोई भयानक चोट लगी हो। दूसरा अगर किसी को कूल्हे का आर्थराइटिस हुआ हो और तीसरा अगर किसी को कूल्हे में खून की सप्लाई में बाधा आ रही हो। हालांकि इसके अलावा भी कई कारण हो सकते हैं। जैसे कभी—कभी हड्उियों में संक्रमण के बाद इसकी जरूरत पड़ सकती है। सिगरेट, शराब, स्टेरॉयड या डग्स लेने वालों में हिप रिप्लेसमेंट की जरूरत ज्यादा पड़ सकती है।
आयुष्मान भारत योजना बनी वरदान
डॉ. सिद्धार्थ यह भी बताते हैं कि जहां तक हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी की बात है तो भारत सरकार की आयुष्मान भारत योजना जैसे मरीजों के लिए वरदान साबित हो रही है। बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो बहुत जरूरी होने के बावजूद भी सर्जरी नहीं करा पाते क्योंकि वे इलाज का खर्च वहन नहीं कर पाते। ऐसे में वे एक लंबा समय लाचारी भरी जिंदगी में बिता देते हैं मगर आयुष्मान भारत योजना की वजह से ऐसे तमाम मरीज उनके पास आकर उजाला सिग्नस रेनबो हॉस्पिटल में उनसे सर्जरी करा रहे हैं।
हिप रिप्लसमेंट मरीज की स्थिति पर निर्भर
डॉ. सिद्धार्थ बताते हैं कि हिप रिप्लेसमेंट भी कई तरह के होते हैं। कुछ मामलों में मेटल का इसतेमाल किया जाता है। कुछ मामलों में सेरामिक जबकि कुछ मामलों में प्लास्टिक मैटेरियल का इस्तेमाल होता है। लेकिन इनमें से कौन सा इस्तेमाल किया जाएगा यह मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है। किस मरीज में कौन सा इंप्लांट लगना है यह भी मरीज की दिक्कतों, उसकी उम्र, जरूरत और बोन क्वालिटी के आधार पर तय किया जाता है।
पहले बाहर जाना पड़ता था लेकिन अब आगरा में संभव
रीजनल बिजनेस हैड वेस्टर्न यूपी उजाला सिग्नस हेल्थकेयर दिव्य प्रशांत बजाज ने बताया कि हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी हर बार साधारण नहीं होती। इसके कई मामले बेहद गंभीर होते हैं जिसके लिए अलग तरह के उपकरणों, संसाधनों या विशेषज्ञता की जरूरत पड़ती है। इसके कई गंभीर मामले पहले आगरा में संभव नहीं हो पाते थे। इसके लिए मरीजों को दिल्ली या जयपुर के बड़े अस्पतालों में रैफर किया जाता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। वे उजाला सिग्नस रेनबो हॉस्पिटल में उच्च स्तरीय सुविधाओं और संसाधनों के बीच जटिल सर्जरी भी कर रहे हैं। कई हालिया मामले हैं जिनमें मरीजों को दिल्ली रैफर किया गया था लेकिन उन्होंने आगरा में ही सर्जरी की और सभी मरीज पूरी तरह ठीक हुए हैं। उजाला सिग्नस हेल्थकेयर का हमेशा से यह लक्ष्य रहा है कि छोटे शहरों में भी विकसित शहरों की तरह ही शीर्ष चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।
थोड़ी जानकारी, थोड़ी सावधानी, पांच दिन का हॉस्पिटल स्टे और पहले की तरह ठीक होते मरीज
डॉ. सिद्धार्थ के मुताबिक हिप रिप्लेसमेंट के बाद जिंदगी आसान है। इस मामले में बस थोड़ी अवेयरनैस की जरूरत है। बहुत से लोग दूर शहरों में जाकर इलाज नहीं करा पाते जबकि उन्हें यह पता होना चाहिए कि अब आगरा में ही हर प्रकार का हिप रिप्लेसमेंट संभव है। आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत सरकार निशुल्क इलाज की सुविधा देती है यह भी जानकारी होनी चाहिए। इसके बाद अब आपको एक सही अस्पताल और डॉक्टर का चुनाव करना होता है। आम तौर पर इस सर्जरी के बाद हम मरीज को पांच दिन अस्पताल में रखते हैं। दूसरे दिन से फिजियोथैरेपी के सहारे चलने फिरने की सलाह दी जाती है।
केस—1
फतेहाबाद के रहने वाले अमर महज 22 साल के हैं और ढाई साल से चल फिर नहीं पा रहे थे। अमर बताते हैं कि पहले सिर्फ उनकी जांघों में दर्द हुआ था। वे नहीं समझ पाए कि कितनी बड़ी मुश्किल में फंसने जा रहे हैं। समस्या बढ़ती गई। कूल्हा पीछे की ओर निकल आया। पैर एक—दूसरे पर चढ़ गए। क्रॉस लैग हो गए। बिना सहारे नहीं चल पाते थे। ऐसे में कोई काम भी नहीं कर पाते थे। बीमार पड़ने से पहले वे आॅटोमोबाइल सेक्टर में थे। माता—पिता के गुजर जाने के बाद भाई और भाभी पर आश्रित हो गए थे। अक्टूबर और नवंबर माह में उजाला सिग्नस रेनबो अस्पताल में डॉ. सिद्धार्थ से मिले। इसके बाद मानो किस्मत ही बदल गई। डॉ. सिद्धार्थ ने आॅपरेशन किया। कूल्हा प्रत्यारोपण किया। इसके बाद जिंदगी पटरी पर लौट आई है। सारे काम खुद करने लगे हैं। कुछ समय बाद काम पर लौटने की सोच रहे हैं। आयुष्मान भारत योजना की वजह से इलाज करा सके।
केस—2
बरेली के रहने वाले नरेंद्र तीन साल से चलने—फिरने में असमर्थ थे। उनके रिश्तेदार उजाला सिग्नस रेनबो हॉस्पिटल, आयुष्मान भारत योजना और डॉ. सिद्धार्थ की तारीफ करते नहीं थकते। कारण है कि नरेंद्र फिर से काम पर लौट सकेंगे और अपने घर का खर्च संभालेंगे। नरेंद्र के भी कूल्हे बदले गए हैं। वे दिसंबर में डॉ. सिद्धार्थ से मिलकर उजाला सिग्नस रेनबो अस्पताल में भर्ती हुए थे। नरेंद्र ने बताया कि तीन साल पहले उनके पैर की नस फड़कना शुरू हुई थी। किसी की सलाह से खींचतान करा ली। इसके बाद परेशानी बढ़ती गई। पैर चिपकना शुरू हो गए और कमर पीछे की ओर निकल आई। उनकी जॉब छूट गई। खेती के सहारे परिवार चल रहा था। उजाला सिग्नस रेनबो हॉस्पिटल में डॉ. सिद्धार्थ ने आॅपरेशन किया। पांच दिन तक अस्पताल में रखा फिर कुछ अहतियात बताकर छुट्टी दे दी। नरेंद्र के परिवारीजन खुश हैं कि जल्द वे काम पर लौट सकेंगे।
केस—3
जून 2023 में एक दुर्घटना ने लोहामंडी के रहने वाले 68 वर्षीय राजेंद्र की जिंदगी बदल दी थी। राजेंद्र भी चलने में असमर्थ हो गए थे। दूसरों का सहारा लेना पड़ता था। उनका भी काम छूट गया और परिवार चलाने में दिक्कतें आने लगीं। उन्हें एम्स के लिए रेफर किया गया था लेकिन हाल ही में उनका भी आगरा में ही उजाला सिग्नस रेनबो अस्पताल में आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत इलाज हुआ है। डॉ. सिद्धार्थ दुबे ने आॅपरेशन किया। पांच दिन अस्पताल में रखा। कुछ एक्सरसाइज कराईं। फिजियोथैरेपी और दवाओं के सहारे अब ठीक हो रहे हैं। पहले की तरह फिट महसूस कर रहे हैं।