आगरालीक्स… रंगभरनी एकादशी के साथ ही होली के रंग बिखर रहे हैं। कान्हा की नगरी में रंगों की बौछार हो रही है पर हम होली क्यों मनाते हैं। इस बारे में जानिए आगरालीक्स में विस्तृत जानकारी।
दुराचार पर सदाचार की विजय का उत्सव
श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान अलीगढ़ के अध्यक्ष पं.हृदय रंजन शर्मा का कहना है कि होली भारत के सबसे पुराने पर्वों में से है। इतिहास, पुराण साहित्य आदि में बहुत कुछ कथाएं मिलती हैं लेकिन हर कथा में एक समानता है कि असत्य पर सत्य की विजय या दुराचार पर सदाचार की विजय उत्सव के रूप में इसे मनाया जाता है।
श्रीराधा–कृष्ण की कथा
होली पर्व राधा और कृष्ण की पावन प्रेम कथा से भी जुडा हुआ है। वसंत में एक दूसरे पर रंग डालना उनकी लीला का एक अंग माना गया है। मथुरा-वृन्दावन की होली राधा और कृष्ण के इसी रंग में डूबी हुई होती है।
यह भी माना गया है कि भक्ति में डूबे जिज्ञासुओं का रंग बाह्य रंगों से नहीं खेला जाता, रंग खेला जाता है भगवान्नाम का, रंग खेला जाता है सद्भावना बढ़ाने के लिए, रंग होता है प्रेम का, रंग होता है भाव का, भक्ति का, विश्वास का। होली जलाई जाती है अंहकार की, अहम् की, वैर द्वेष की, ईर्ष्या और संशय की और पाया जाता है विशुद्ध प्रेम अपने आराध्य का, पाई जाती है कृपा अपने ठाकुर की।
शिव–पार्वती और कामदेव की कथा
शिव और पार्वती से संबंधित एक कथा के अनुसार हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो जाये पर शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। कामदेव पार्वती की सहायता को आए। उन्होंने पुष्प बाण चलाया और भगवान शिव की तपस्या भंग हो गयी। शिवजी को क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आँख खोल दी।
उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव का शरीर भस्म हो गया। फिर शिवजी ने पार्वती को देखा। पार्वती की आराधना सफल हुई। शिवजी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। इस कथा के आधार पर होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकात्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।
कामदेव के पुनर्जीवित होने का उत्सव
एक अन्य कथा के अनुसार कामदेव के भस्म हो जाने पर उनकी पत्नी रति ने विलाप किया और शंकर भगवान से कामदेव को जीवित करने की गुहार की। ईश्वर प्रसन्न हुए और उन्होने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया। आज भी रति विलाप को लोक संगीत के रूप में गाया जाता है, उनके जीवित होने की खुशी मे रंगों का त्योहार मनाया जाता है।
भक्त प्रह्लाद और होलिका की कथा
होली पर्व भक्त प्रह्लाद और होलिका की कथा से भी जुडा हुआ है। विष्णु पुराण की एक कथा के अनुसार प्रह्लाद के पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर देवताओं से यह अमरता का वरदान प्राप्त कर लिया। इसके बाद बाद वह नास्तिक और निरंकुश हो गया। वह चाहता था कि उनका पुत्र भगवान नारायण की आराधना छोड़ दे लेकिन उसने ऐसा नहीं किया तो यातनाएँ दीं। वही हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी। अतः उसने होलिका को आदेश दिया के वह प्रह्लाद को लेकर आग में प्रवेश कर जाए जिससे प्रह्लाद जलकर मर जाए। परन्तु होलिका अग्नि में जल गई परन्तु नारायण की कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ। इस घटना की याद में लोग होलिका जलाते हैं।
कंस और पूतना की कथा
कंस ने कृष्ण का वध करने के लिए पूतना नामक राक्षसी की मदद ली थी लेकिन कृष्ण उसकी सच्चाई को समझ गए और उन्होंने पूतना का वध कर दिया। यह फाल्गुन पूर्णिमा का दिन था। अतः पूतनावध की खुशी में होली मनाई जाने लगी।
राक्षसी ढुंढी की कथा
राजा पृथु के समय के समय में ढुंढी नामक राक्षसी बालकों को खा जाती थी। राजा पृथु ने राक्षसी अत्याचारों छुटकारा पाने का पुरोहित से पूछा तो उन्होंने फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन सभी बच्चे एक-एक लकड़ी लेकर अपने घर से निकलें। उसे एक जगह पर रखें और घास-फूस रखकर जला दें और शोर मचाएं, राक्षसी अग्नि के समीप आने पर मर जाएगी। पुरोहित की सलाह का पालन किया गया। बच्चों ने उसे घेरकर नगर के बाहर खदेड़ दिया। कहते हैं कि इसी परंपरा का पालन करते हुए आज भी होली पर बच्चे शोरगुल और गाना बजाना करते हैं।