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आदमी और जानवर

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मैंने अपने पिछले खत में लिखा था कि आदमी और जानवर में सिर्फ अक्ल का फर्क है। अक्ल ने आदमी को उन बड़े-बड़े जानवरों से ज्यादा चालाक और मजबूत बना दिया जो मामूली तौर पर उसे नष्ट कर डालते। ज्यों-ज्यों आदमी की अक्ल बढ़ती गई वह ज्यादा बलवान होता गया। शुरू में आदमी के पास जानवरों से मुकाबला करने के लिए कोई खास हथियार न थे। वह उन पर सिर्फ पत्थर फेंक सकता था। इसके बाद उसने पत्थर की कुल्हाड़ियाँ और भाले और बहुत-सी दूसरी चीजें भी बनाईं जिनमें पत्थर की सूई भी थी। हमने इन पत्थरों के हथियारों को साउथ कैंसिंगटन और जेनेवा के अजायबघरों में देखा था।

धीरे-धीरे बर्फ का जमाना खत्म हो गया जिसका मैंने अपने पिछले खत में जिक्र किया है। बर्फ के पहाड़ मध्‍य-एशिया और यूरोप से गायब हो गए। ज्यों-ज्यों गरमी बढ़ती गई आदमी फैलते गए।

उस जमाने में न तो मकान थे और न कोई दूसरी इमारत थी। लोग गुफाओं में रहते थे। खेती करना किसी को न आता था। लोग जंगली फल खाते थे, या जानवरों का शिकार करके माँस खा कर रहते थे। रोटी और भात उन्हें कहाँ मयस्सर होता क्योंकि उन्हें खेती करनी आती ही न थी। वे पकाना भी नहीं जानते थे; हाँ, शायद माँस को आग में गर्म कर लेते हों। उनके पास पकाने के बर्तन, जैसे कढ़ाई और पतीली भी न थे।

एक बात बड़ी अजीब है। इन जंगली आदमियों को तस्वीर खींचना आता था। यह सच है कि उनके पास कागज, कलम, पेंसिल या ब्रश न थे। उनके पास सिर्फ पत्थर की सुइयाँ और नोकदार औजार थे। इन्हीं से वे गुफाओं की दीवारों पर जानवरों की तस्वीरें बनाया करते थे। उनके बाज-बाज खाके खासे अच्छे हैं मगर वे सब इकरुखे हैं। तुम्हें मालूम है कि इकरुखी तस्वीर खींचना आसान है और बच्चे इसी तरह की तस्वीरें खींचा करते हैं। गुफाओं में अँधेरा होता था इसलिए मुमकिन है कि वे चिराग जलाते हों।

जिन आदमियों का हमने ऊपर जिक्र किया है वे पाषाण या पत्थर-युग के आदमी कहलाते हैं। उस जमाने को पत्थर का युग इसलिए कहते हैं कि आदमी अपने सभी औजार पत्थर के बनाते थे। धातुओं को काम में लाना वे न जानते थे। आजकल हमारी चीजें अकसर धातुओं से बनती हैं, खासकर लोहे से। लेकिन उस जमाने में किसी को लोहे या काँसे का पता न था। इसलिए पत्थर काम में लाया जाता था, हालांकि उससे कोई काम करना बहुत मुश्किल था।

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