
“काल करै सो आज कर, आज करै सो अब
पल में प्रलय होयगी, बहुरि करोगे कब?’
यह तख्ती टांग दो। इससे ज़रा बोध आएगा।
पांच-सात दिन बाद गया मनोवैज्ञानिक अपनी फीस की तलाश में। मुल्ला को बैठा देखा, सिर पर पट्टी बंधी है, हाथ-पैर पर पलस्तर चढ़ा है। बड़ा उदास। दुकान भी कुछ टूटी-फूटी हालत में। पूछा कि नसरुद्दीन, क्या हुआ? परिणाम नहीं हुआ तख्ती का?
नसरुद्दीन ने कहा : परिणाम हुआ। यह देख रहे हो परिणाम! परिणाम हुआ। वह जो खजानची था मेरा, लेकर भाग गया सब। “काल करै सो आज कर. . .’ वह जो मेरा मैनेजर था टाइपिस्ट को उड़ाकर नदारद हो गया। और वह जो मेरा दरबान था, उसने मेरा सिर खोल दिया। पता चलाने पर पता चला कि दरबान सोचता था कि कब इसका सिर खोल दूं। जब उसने यह तख्ती देखी, उसको बोध आया। उसने सोचा, यह बात तो सच है; कल अगर प्रलय हो गयी तो फिर कब करोगे! तो कर ही लो। जो निबटाना है निबटा ही दो। यही परिणाम हुआ। आपकी सलाह का बड़ा गजब का परिणाम हुआ। दुकान चौपट है। फीस लेने शायद आप आए हैं, हम ही चले चलते हैं आपके घर, क्योंकि अब और कुछ फीस नहीं है।
आदमी ऐसा ही है। गलत को तो अभी कर लेता है; सही को कल पर टाल देता है। चोरी करनी हो तो अभी। क्रोध करना हो तो अभी। जब तुम्हें कोई गाली देता है तो तुम यह नहीं कहते, कल करूंगा क्रोध, सोचूंगा, विचारूंगा, पत्नी-बच्चों से भी सलाह लूंगा, कल करूंगा क्रोध। जब तुम्हें क्रोध करना होता है तब तुम अभी करते हो। किसी की हत्या करनी होती है तो अभी करते हो। और जब तुम्हें जीवन में कुछ शुभ का भाव उठता है, उमंग उठती है–संन्यास लेना, कि ध्यान करना, कि प्रार्थना में उतरना–तो तुम सोचते हो, सोचेंगे। सोचने का मतलब होता है टालोगे। टालने का मतलब होता है हिम्मत नहीं है।
अजहूं चेत गंवार, प्रवचन#२०, ओशो
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