आगरालीक्स…रंगभरनी पंचमी कल रविवार को. होली के अंतिम दिन खेला जाता है रंग. जानिए क्या है रंगभरनी पंचमी का धार्मिक महत्व और क्यों है ये पंचमी विशेष
रंगपंचमी के दिन रंग खेलने की परंपरा है, यह रंग सामान्य रूप से सूखा गुलाल ही होता है, आज विशेष रूप से भोजन में पूरनपोली अवश्य होती है, आज रंगपंचमी के त्योहार पर एक दूसरे के घरों को मिलने जाते है, और काफी समय आनन्द मे व्यतीत करते हैं, राजस्थान में इस अवसर पर विशेष रूप से लगभग पूरे राजस्थान और अन्य प्रदेश में जहाँ राजस्थानी रहते हैं वहां एक बहुत प्रसिद्ध नृत्य है जिसे गेर कहते हैं।
प्राचीनकाल में जब होली का पर्व कई दिनों तक मनाया जाता था तब रंगपंचमी होली का अंतिम दिन होता था, और उसके बाद कोई रंग नहीं खेलता था, भारत के हर राज्य एवं हर स्थान पर होली का त्योहार मनाने की एक अलग ही परंपरा है, इसमें कुछ स्थानों पर होली के पांचवें दिन यानी चैत्र कृष्ण पंचमी को रंगपंचमी का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है इस बार रंग पंचमी का त्यौहार 12 मार्च दिन रविवार को पड़ रहा है। कई स्थानों पर होली से भी ज्यादा रंगपंचमी पर रंग खेलने की परंपरा है, कई जगहों पर धुलेंड़ी पर गुलाल लगाकर होली खेली जाती है तो रंगपंचमी पर अच्छे-खासे रंगों का प्रयोग कर रंगों का त्योहार मनाया जाता है, होली ब्रह्मांड का एक तेजोत्सव है, तेजोत्सव से अर्थात विविध तेजोत्सव तरंगों के भ्रमण से ब्रह्मांड में अनेक रंग आवश्यकता के अनुसार साकार होते हैं।
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आज्ञाचक्र पर गुलाल लगाना, पिंड बीज के शिव को शक्ति तत्व का योग देने का प्रतीक है, गुलाल से प्रक्षेपित पृथ्वी व आप तत्व की तरंगों के कारण देह की सात्विक तरंगों को ग्रहण करने में देह की क्षमता बढ़ती है, आज्ञा चक्र से ग्रहण होने वाला शक्तिरूपी चैतन्य संपूर्ण देह में संक्रमित होता है, इससे वायुमंडल में भ्रमण करने वाली चैतन्य तरंगें ग्रहण करने की क्षमता बढ़ती है। इस विधि द्वारा जीव चैतन्य के स्तर पर अधिक संस्कारक्षम बनता है, वायुमंडल की शुद्धि भी होती है, त्रेता युग के प्रारंभ में श्री विष्णु ने धूलि वंदन किया, इसका गर्भितार्थ यह है कि उस युग में श्री विष्णु ने अलग-अलग तेजोमय रंगों से अवतार कार्य का आरंभ किया, धूलि वंदन के बिना खेली जाने वाली रंगपंचमी विभिन्न स्तर पर कार्यरत अवतार के सगुण के विविध रंगरूपी कार्यात्मक लीला का दर्शक है
त्रेता युग में अवतार निर्मित होने पर उसे तेजोमय, अर्थात विविध रंगों की सहायता से दर्शन रूप में वर्णित किया गया है, होली के दूसरे दिन अर्थात धूलि वंदन के दिन कई स्थानों पर एक-दूसरे के शरीर पर गुलाल डालकर रंग खेला जाता है, होली के दिन प्रदीप्त हुई अग्नि से वायुमंडल के रज-तम कणों का विघटन होता है। ब्रह्मांड में संबंधित देवता का रंग रूपी सगुण तत्व कार्यानुमेय संबंधित विभिन्न स्तरों पर अवतरित होता है, व उसका आनंद एक प्रकार से रंग उड़ा कर मनाया जाता है, इस दिन खेली जाने वाली रंगपंचमी, विजयोत्सव का अर्थात रज-तम के विघटन से अनिष्ट शक्तियों के उच्चाटन व कार्य की समाप्ति का प्रतीक है, रंगपंचमी समारोपात्मक, अर्थात मारक कार्य का प्रतीक है। चैत्र कृष्ण पंचमी को खेली जाने वाली रंगपंचमी आह्वानात्मक होती है, यह सगुण आराधना का भाग है, ब्रह्मांड के तेजोमय सगुण रंगों का पंचम स्रोत कार्यरत कर देवता के विभिन्ना तत्वों की अनुभूति लेकर उन रंगों की ओर आकृष्ट हुए देवता के तत्व के स्पर्श की अनुभूति लेना, रंगपंचमी का उद्देश्य है, पंचम स्रोत अर्थात पंच तत्वों की सहायता से जीव के भाव अनुसार विभिन्न स्तरों पर ब्रह्मांड में प्रकट होने वाले देवता का कार्यरत स्रोत। रंगपंचमी देवता के तारक कार्य का प्रतीक है, इस दिन वायुमंडल में उड़ाये जाने वाले विभिन्न रंगों के रंग कणों की ओर विभिन्न देवताओं के तत्व आकर्षित होते हैं, ब्रह्मांड में कार्यरत आपतत्वात्मक कार्य तरंगों के संयोग से होकर जीव को देवताओं के स्पर्श की अनुभूति देकर देवताओं के तत्व का लाभ मिलता है।
ज्योतिषाचार्य परम पूज्य गुरुदेव पंडित हृदय रंजन शर्मा अध्यक्ष श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान गुरू रत्न भंडार पुरानी कोतवाली सर्राफा बाजार अलीगढ़ यूपी व्हाट्सएप नंबर-9756402981,7500048250*