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Deepawali 2023 : Kuber Pooja & Shubh Muhurt

आगरालीक्स…. दीपावली पर कुबेर जी की पूजा क्यों की जाती है, कुबेर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की धन-सम्पदा के स्वामी होने के साथ देवताओं के भी धनाध्यक्ष हैं। जानें


गुरु ज्योतिष शोध संस्थान गुरु रत्न भंडार वाले प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य परम पूज्य पंडित हृदय रंजन शर्मा के अनुसार, राजाधिराज कुबेर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की धन-सम्पदा के स्वामी होने के साथ देवताओं के भी धनाध्यक्ष (treasurer) हैं। संसार के गुप्त या प्रकट जितने भी वैभव हैं, उन सबके अधिष्ठाता देव कुबेर हैं। यक्ष, गुह्यक और किन्नरों के अधिपति कुबेर नवनिधियों के भी स्वामी हैं। एक निधि भी अनन्त वैभव प्रदान करने वाली होती है किन्तु कुबेर नवनिधियों के स्वामी हैं।


नवनिधियों के नाम हैं— पद्म,महापद्म,शंख,मकर,
कच्छप,मुकुन्द,कुन्द,नील,वर्चस्।
ब्रह्माजी ने कुबेर को बनाया अक्षयनिधियों का स्वामी
पादकल्प में कुबेर विश्रवामुनि व इडविडा के पुत्र हुए। विश्रवा के पुत्र होने से ये ‘वैश्रवण कुबेर’ व माता के नाम पर ‘ऐडविड’ के नाम से जाने जाते हैं। इनकी दीर्घकालीन तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने इन्हें लोकपाल का पद, अक्षयनिधियों का स्वामी, पुष्पकविमान व देवता का पद प्रदान किया। कुबेर ने अपने पिता विश्रवामुनि से कहा कि ब्रह्माजी ने मुझे सब कुछ प्रदान कर दिया परन्तु मेरे निवास के लिए कोई स्थान नहीं दिया है। इस पर इनके पिता ने दक्षिण समुद्रतट पर त्रिकूट पर्वत पर स्थित लंकानगरी कुबेर को प्रदान कीजो सोने से निर्मित थी।


भगवान शंकर के अभिन्न मित्र हैं कुबेर
कुबेर ने कई जन्मों तक भगवान शंकर की पूजा-आराधना की। पादकल्प में जब ये विश्रवा मुनि के पुत्र हुए तब इन्होंने भगवान शंकर की विशेष आराधना की। भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर इन्हें उत्तर दिशा का आधिपत्य, अलकापुरी का राज्य, चैत्ररथ नामक दिव्य वन और एक दिव्य सभा प्रदान की। माता पार्वती की इन पर विशेष कृपा थी। भगवान शंकर ने कुबेर से कहा, तुमने अपने तप से मुझे जीत लिया है, अत: मेरा मित्र बनकर यहीं अलकापुरी में रहो।’ इस प्रकार कुबेर भगवान शिव के घनिष्ठ मित्र हैं।

कैसा है कुबेर का स्वरूप
ध्यान-मन्त्रों में कुबेर को पालकी पर या पुष्पकविमान पर विराजित दिखाया गया है। पीतवर्ण के कुबेर के अगल-बगल में समस्त निधियां विराजित रहती हैं। इनके एक हाथ में गदा तथा दूसरे हाथ में धन प्रदान करने की वरमुद्रा है। इनका शरीर स्थूल है।

राजाधिराज कुबेर की पूजा से मिलते है ये लाभ
कुबेर की सभा में महालक्ष्मी के साथ शंख, पद्म आदि निधियां मूर्तिमान होकर रहती हैं; इसलिए धनतेरस व दीपावली के दिन लक्ष्मीपूजा के साथ कुबेर की पूजा की जाती है क्योंकि कुबेर की पूजा से मनुष्य का दु:ख-दारिद्रय दूर होता है और अनन्त ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
कुबेर की सभा में त्रिशूल लिए भगवान शिव माता पार्वती के साथ विराजमान रहते हैं, इसलिए कुबेर-भक्त की सभी आपत्तियों से रक्षा होती है।


धार्मिक अनुष्ठानों में भगवान के षोडशोपचार पूजन में आरती के बाद मन्त्र-पुष्पांजलि दी जाती है। पुष्पांजलि में ‘राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने’ इस मन्त्र का पाठ होता है। यह कुबेर की ही प्रार्थना का मन्त्र है। अत: सभी काम्य-अनुष्ठानों में फल की प्राप्ति राजाधिराज कुबेर की कृपा से ही होती है।

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