आगरालीक्स…आगरा की श्री मनकामेश्वर रामलीला में धनुष यज्ञ, सीता स्वयंवर और परशुराम संवाद लीला का हुआ मंचन …मंगलवार को निकलेगी राम बारात
हर्षित हुए सब नर नारि, पुलकित हो उठी सृष्टि ही हर फुलवारी। श्रीहरि विष्णु नारायण के अवतार श्रीराम ने तोड़ा शिव धनुष, होने लगी देवलोक से पुष्प वर्षा अतुलित। गढ़ी ईश्वरा, ग्राम दिगनेर, शमशाबाद रोड स्थित श्रीमनः कामेश्वर बाल विद्यालय में चल रही श्रीमनःकामेश्वरनाथ रामलीला के चतुर्थ दिन सोमवार को धनुष यज्ञ, सीता स्वयंवर और परशुराम संवाद प्रसंग का मंचन हुआ।
प्रसंग में जनकपुर में निवास कर रहे राम, लक्ष्मण व मुनि विश्वामित्र को राजा अपने मंत्री सतानंद को भेज स्वयंवर में आने का निमंत्रण भेजते हैं। मुनि विश्वामित्र के साथ पहुंचे, श्रीराम व लक्ष्मण की शोभा स्वयंवर में उपस्थित समस्त राजा आश्चर्य से देखते हैं। रंग भूमि में उपस्थित राक्षस राज रावण, बांणा सुर सहित अनेक राजा धनुष उठाने में असमर्थ होकर चले जाते हैं। वहीं कुछ अपना बल पौरुष दिखाकर लोगों के हंसी का पात्र भी बनते हैं।
राजा जनक परेशान होकर एक टिप्पणी कर देते हैं , जिसे सुन लक्ष्मण क्रोधित हो जाते हैं।
मुनि विश्वामित्र के आज्ञा पाकर श्रीराम धनुष उठाने चलते हैं। सखियां श्रीराम को हाथों धनुष टूटने की भगवान गणेश से प्रार्थना करती हैं। महारानी सुनयना एक बालक के हाथों धनुष तोड़े जाने में संदेह जताती हैं। शर्त रखने के लिए राजा जनक को कोसती हैं। सीता मन ही मन स्तुति करती हैं। इस बीच धनुष की प्रत्यंचा खिंचते ही वह तीन खंडों में विभक्त हो जाता है। लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें, काहुं न लखा देख सबु ठाढें। चौपाई गूंजती है और मंगल गीत के बीच सीता जयमाला लेकर रंगभूमि में आती हैं।
उधर शिव के धनुष टूटने की सूचना से परशुराम क्रोधित होकर जनकपुर पहुंचते हैं। लक्ष्मण− परशुराम संवाद होता है। विश्वामित्र परशुराम का क्रोध शांत कराते हुए श्री राम जी को नारायण का अवतार कहते हैं। यह सुन परशुराम श्रीराम को अपना रमापति धनुष देकर उसकी प्रत्यंचा चढ़ाने को कहते हैं। श्रीराम के प्रत्यंचा चढ़ाते ही परशुराम का संशय दूर हो जाता है वे श्रीराम की स्तुति कर लौट जाते हैं। लीला मंचन से पूर्व श्रीमहंत योगेश पुरी और मठ प्रशासक हरिहर पुरी ने श्रीलक्ष्मी नारायण के स्वरूपों की आरती उतारी।
