आगरालीक्स…आगरा का एकमात्र वरद वल्लभा गणपति मंदिर. छलेसर, कुबेरपुर आगरा फिरोजाबाद रोड पर गणेश चतुर्थी पर 100 किलो का मोदक अर्पित होगा. दस दिन चलेगा मंदिर में उत्सव. विघ्न विनाशक के दर्शन करने यहां हो सके तो जरूर जाइए…
वास्तुशिल्प की अनूठी मिसाल, भव्यता के मध्य दिव्यता के साथ विराजे वरद वल्लभा गणपति का अलौकिक रूप। शहर में बने दक्षिण भारतीय शैली का एकमात्र वरद वल्लभा गणपति मंदिर में गणेश उत्सव के दौरान विशेष आयोजन होंगे। प्रतिदिन यहां आस्था की हिल्लोरें उमड़ेगी और गजानन अपने विविध श्रंगारों में भक्तों को दर्शन देंगे। इतना ही नहीं गणेश उत्सव के दौरान 12 सितंबर को मंदिर में ही निर्मित 100 किलो के मोदक का विशेष भोग प्रभु चरणों में अर्पित किया जाएगा। मंदिर के संस्थापक एवं एनआरएल ग्रुप के चैयरमेन हरिमोहन गर्ग ने बताया कि मंदिर में प्रतिदिन दक्षिण भारतीय परंपरा के अनुसार पूजा अर्चना होती है। इसी परंपरा का निर्वाहन करते हुए गणेश उत्सव मंदिर में विशेष रूप से मनाया जाएगा। आगरावासियों के लिए ये पूजन एक नवीन पद्वति की भांति ही होता है किंतु आस्था अपने चरम पर होती है।
उन्होंने बताया कि 7 सितंबर से 17 सितंबर तक प्रातः 7:30 बजे से अभिषेक सेवा आरंभ होगी। इसके बाद वस्त्र सेवा, श्रंगार सेवा, फल सेवा, प्रातः भाेग व आरती, दोपहर भाेग, सायं भाेग, महागणपति हवन, सहस्त्रनाम अर्चना, सायं भाेग एवं महाआरती और रात्रि 9 बजे शयन आरती होगी।
100 किलो का मोदक होगा अर्पित
मंदिर प्रबंधक नितिन शर्मा ने बताया कि वरद वल्लभा गणपति जी को प्रतिदिन मंदिर की रसोइ में बने भोग को ही अर्पित किया जाता है, जिसमें विशेष रूप से प्रतिदिन आटे, मेवा और घी से बना मोदक अवश्य अर्पित होता है। गणेश उत्सव के दौरान 12 सितंबर को 100 किलो के मोदक का भोग वरद वल्लभा गणपति जी को लगाया जाएगा। जिसकी तैयारी अभी से आरंभ हो चुकी है। सामग्री का भंडारण हो रहा है। मावे और मेवा से मोदक को बनाने में भंडारे के पांच सेवक अपनी सेवाएं देंगे।
गणपति की अलौकिक छवि देती है दिव्य अनुभूति
वरद वल्लभा गणपति जी की मूर्ति के आकार को मूर्तिकार पद्मश्री पेरूमल सत्पति ने साकार किया था। 2022 में मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुयी थी। हरिमोहन गर्ग ने बताया कि कांचीपुरम पंडित शबरी राजन के नेतृत्व में आठ पंडितों की टीम ने विशेष पूजन पद्धतियों से मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की थी। पंच कुंडीय यज्ञशाला में कांचीपुरम के यज्ञाचार्य भरनीधरन आर. ने हवन किया था। दक्षिण भारतीय शैली पर आधारित मंदिर का डिजाइन अष्टकोणीय है। पद्मश्री मूर्तिकार पेरूमल सत्पति ने ब्लू ग्रेनाइट के पत्थर को एक वर्ष तक तराशकर गणपति की प्रतिमा बनाई थी। चार फुट ऊंची गणपति की प्रतिमा का वजन तीन टन है। हस्तशिल्प के साथ जैसलमेर की विशेष आभा लिए पीले पत्थर से मंदिर को विशेष सुंदरता और भव्यता प्रदान की गयी है।
सिद्धि विनायक मंदिर की शिलाओं पर स्थापित हैं वरद वल्लभा गणपति
हरिमोहन गर्ग ने बताया कि मंदिर के गर्भगृह में वरद वल्लश्रा गणपति का सिंहासन मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर से विशेष रूप से पूजा अर्चना कर लाईं गईं शिलाओं पर स्थापित है।
आस्था का केंद्र बना मंदिर, सैंकड़ों ग्रहण करते हैं प्रसादी
मात्र दो वर्ष में ही वरद वल्लभा गणपति मंदिर की प्रसिद्धि दूर दूर तक फैल चुकी है। आस पास के जिलों से ही नहीं अपितु राज्यों से भी श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि विध्नहर्ता सभी के विध्न हर्ते हैं। मंदिर में विशेष रूप से बुधवार के अलावा शनिवार और रविवार को भक्तों का तांता लगा रहता है। मंदिर की रसोइ में बने भाेग को प्रतिदिन 200 से अधिक भक्तों में वितरित किया जाता है।