Agra News : A large number of people from Agra are visiting Chitrakoot Dham…#agra
आगरालीक्स…हरिद्वार और ऋषिकेश ही नहीं 500 किमी के दायरे में आगरा से बड़ी संख्या में यहां भी घूमने जा रहे हजारों लोग, भगवान श्रीराम के पद्चिह्नों की यात्रा
आगर। हर साल हजारों की संख्या में लोगों के आगरा से हरिद्वार और ऋषिकेश घूमने जाने के बारे में आप जानते ही होंगे। अधिकांशत: यह यात्रा गर्मियों की छुट्टियों में मां गंगा मैया की भक्ति और शीतल जल में स्नान के लिए की जाती है। मगर 500 किमी के दायरे में ही एक और यात्रा भी है जहां प्रभु श्रीराम के प्रति भक्ति भाव लिए आगरा से बड़ी संख्या में लोग जा रहे हैं। बता दें कि यह स्थान है चित्रकूट धाम और इस यात्रा को लोग अक्टूबर और नवंबर के माह में करना पसंद कर रहे हैं, क्योंकि इन महीनों में न तो गर्मी होती है और न ही सर्दी। मौसम में भले ही हल्की ठंडक घुल गई हो लेकिन चित्रकूट की मंदाकिनी नदी का हल्का गर्म होने से नदी में स्नान का अपना ही आनंद है।
कभी सोचो तो सच में विविधताओं के साथ रोमांच, सांस्कृतिक धरोहरों, पौराणिक कहानियों के साथ हमारा देश मनोहर लगता हैं। कई कस्बे और शहर तो ऐसे हैं, जिनके नाम जेहन में आते ही, इंसान उन जगहों से पौराणिक कहानियों के माध्यम से खुद-ब-खुद जुड़ने लगता हैं। ऐसे ही एक स्थान भगवान राम के वनवास के समय के आश्रय स्थल “चित्रकूट” की आगरालीक्स टीम ने यात्रा की। चित्रकूट हिंदू पौराणिक कथाओं और महाकाव्य रामायण की वजह से बहुत अधिक महत्व रखता हैं। पौराणिक कथाओं से पता चलता हैं कि अपने निर्वासन के समय में भगवान राम, माता सीता और श्री लक्ष्मण ने 14 में से 11 वर्ष का वनवास इसी स्थान पर गुजारा था। चित्रकूट में कई धार्मिक, दर्शिनीय और घूमने वाले स्थान है। चित्रकूट की पावन भूमि अनेक दर्शनीय स्थलों से भरी हुई है।
रामघाट
चित्रकूट के दर्शनीय स्थलों में रामघाट अति लोकप्रिय है। रामघाट मंदाकनी नदी के किनारे पर बना हुआ हैं। कुछ कथाओं से पता चलता हैं कि वनवास काल के समय में भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण जी ने इस जगह पर कुछ समय व्यतीत किया था। सुबह के समय भक्तगण स्तुति करने के लिए नदी में खड़े होते हैं। शाम के समय मां मंदाकिनी की आरती का मनोहारी दश्य होता है।
जानकी कुण्ड
चित्रकूट में घूमने वाली जगहों में शामिल जानकी कुंड मंदाकनी नदी का एक सुंदर किनारा हैं। इस किनारे पर सीढियां बनी हुई हैं और यहां पर मिलने वाले पैरों के चिन्हों को माता जानकी के पैरो के निशान माने जाते हैं। भगवान राम के वनवास के दौरान यह स्थान माता जानकी का सबसे पसंदीदा स्थान था। जानकी कुंड के पास ही राम जानकी मंदिर बना हुआ हैं और यहां हनुमानी जी की विशाल मूर्ती के दर्शन भी किए जा सकते हैं।
स्फटिक शिला
स्फटिक शिला चित्रकूट में जानकी कुंड से कुछ किलोमीटर की दूरी पर मंदाकनी नदी के तट पर स्थित है। चित्रकूट के घने जंगल में स्थित इस स्थान पर एक शिला पर भगवान राम के पैरों के निशान पर्यटकों को देखने के लिए मिल जाते हैं। माना जाता हैं कि भगवान राम अपनी पत्नी सीता का यहां श्रृंगार किया था। यह वही स्थान हैं जहां जयंत नाम के एक कौवा ने सीता जी को काट लिया था जोकि एक राक्षस था। बाद में वह बचने के लिए तीनों लोकों का भ्रमण करता रहा।
सती अनुसुइया आश्रम
स्फटिक शिला से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर घने वनों से घिरा सती अनसुइया आश्रम है। इस आश्रम में अत्रि मुनी, अनुसुइया, दत्तात्रेय और दुर्वासा मुनि की प्रतिमा स्थापित हैं। माता अनसुइया के मंदिर के सामने ही मंदाकिनी नदी बहती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महर्षि अत्रि अपनी पत्नी अनुसूया और तीन पुत्रों के साथ इस स्थान पर निवास करते थे। भगवान राम ने देवी सीता के साथ इस स्थान का दौरा किया था और देवी अनुसुइया ने इसी स्थान पर सीता जी को सतित्त्व का महत्व बताया था।
हनुमान धारा
चित्रकूट के जंगल में एक पहाड़ी पर हनुमान धारा एक प्रमुख पर्यटक स्थल है। यह स्थान हनुमान जी महाराज को समर्पित है और हनुमान जी के दर्शन करने के लिए भक्तों को सीढ़ियां चढ़के जाना होता है। इसके अलावा रोपवे भी एक विकल्प है। चित्रकूट में भगवान राम की गाथाओं से पता चलता हैं कि लंका में आग लगाने के बाद बजरंग बलि ने इस पहाड़ी पर छलांग लगाई थी और अपनी गुस्सा को शांत करने के लिए इस धारा के ठन्डे पानी में खड़े होकर अपनी गुस्सा को शांत किया था। इसलिए चित्रकूट धाम की इस धारा को हनुमान धारा के नाम से जाना जाता है।
सीता रसोई
हनुमान धारा से थोड़ी और खड़ी सीढ़ियां चढ़के जाने पर हम सीता रसोई पहुंचते हैं। बताया जाता है कि यहां माता सीता ने पांच ऋषियों को भोजन कराया था। यहां भक्तों को संभल कर जाना होता है।
भरत मिलाप मंदिर
भरत मिलाप मंदिर चित्रकूट का एक परम दर्शनीय स्थान है। भगवान श्रीराम और भरत जी का मिलाप इस स्थान पर उस समय हुआ था जब भरत भगवान राम के वन जाने के बाद उनसे मिलने के लिए यहां आते हैं। भरत मिलाप की इस कथा के साथ ही भगवान राम के पद चिन्हों के निशान आज भी इस स्थान पर हैं।
कामदगिरी पर्वत
चित्रकूट के पवित्र और रमणीय स्थानों में शामिल यहां का कामदगिरि पर्वत्त यहां आने वाले टूरिस्टों को अति-प्रिय लगता हैं। प्राचीन कथाओं के अनुसार इस खूबसूरत सृष्टी की रचना करते समय परम पिता ब्रह्मा जी ने चित्रकूट के इस पावन स्थान पर 108 अग्नि कुंडों के साथ हवन किया था। अपने निर्वासन काल के दौरान भगवान राम ने भी इस स्थान पर कुछ समय व्यतीत किया था। धनुषाकार इस पर्वत पर एक विशाल झील है जो सैलानियों को आकर्षित करती हैं।
भरत कूप
चित्रकूट धाम में देखने के लिए भरत कूप एक पावन स्थान हैं। चित्रकूट के पश्चिम में भरतपुर गांव के पास एक विशाल कुआ हैं। माना जाता है कि जब भरत जी भगवान श्री राम को वन से वापिस लाने में असमर्थ हो जाते है, तो वह अत्रि महर्षि की आज्ञानुसार सभी पावन स्थानों से जल लाकर इस कुएं में डालते हैं।
राम सिया गांव
चित्रकूट टूरिस्ट प्लेस राम सिया गांव पिल्ली-कोठी आश्रम से 3 किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम में बिहारा के पास स्थित हैं। इस स्थान के बारे में कहा जाता है कि वनवास के दौरान भगवान राम और सीता जी एक विशाल शिला पर विश्राम करते थे। यहां पर धनुष और बिस्तर के निशान होने की बात कही जाती हैं।
शबरी फाल्स
चित्रकूट में घूमने वाली जगहों में शबरी फाल्स मारकुंडी गांव से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर जमुनीहाई गांव के पास मंदाकनी नदी के उद्गम स्थान पर एक खूबसूरत झरना हैं।
गुप्त गोदावरी
चित्रकूट में घूमने वाला स्थान गुप्त गोदावरी एक आकर्षित गुफा है। माना जाता है कि गोदावरी गुफा के अंदर की चट्टानों से एक बारहमासी धारा निकलती है और गोदावरी नदी की और एक अन्य चट्टान में बहती हुई गायब हो जाती है। एक अन्य रहस्यमयी बात यह है कि एक विशाल चट्टान को छत से बाहर निकलते हुए देखा जाता है। कहते हैं कि यह विशाल दानव मयंक का अवशेष है।
प्रमोद वन
रामघाट से केवल 2 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण में सतना रोड पर प्रमोद वन स्थित है। एक सुंदर बगीचे के रूप में जाना जाने वाला यह स्थान मंदाकनी नदी के किनारे पर स्थित है। बहुत से लोग यहां स्थित पवित्र वृक्ष पर पुत्र प्राप्ति की मनोकामना के साथ आते हैं।
राजापुर
चित्रकूट का राजापुर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जीवन वर्णन से श्रीरामचरित मानस की रचना कर विश्व में ख्याति अर्जित करने वाले गोस्वामी तुलसीदास की जन्मस्थली है। उन्होंने राम नवमी के दिन अयोध्या में श्री राम चरित मानस लिखना शुरू किया, और वाराणसी और चित्रकूट में भी रह कर उसे पूरा किया| गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्री रामचरितमानस के हस्तलिखित संस्करण का एक अध्याय अभी भी राजापुर में उपलब्ध है। अन्य पुरातन पांडुलिपियों की तरह बर्च ट्री की छाल (भोजपत्र) के बजाय इसे कागज पर लिखा देखकर मुझे आश्चर्य हुआ। कागज पुराना है और एक कवर में संरक्षित है।