Monday , 20 January 2025
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Agra News: Life of a patient suffering from brain aneurysm saved without opening the skull…#agranews

आगरालीक्स…आगरा में मरीज के सिर में होता था भयानक दर्द. बर्दाश्त नहीं हो रहा था एंजियोग्राफी की तो नस मिली गुब्बारे जैसी फूली हुई. डॉ. अंकित जैन ने बिना खोपड़ी खोले ब्रेन एन्यूरिज्म से पीड़ित मरीज की बचाई जान

ब्रेन एन्यूरिज्म से पीड़ित 70 वर्षीय मरीज की पहली बार एंडोवैस्कुलर कोइलिंग तकनीक से बिना खोपड़ी खोले जान बचाई गई। उसके सिर में भयानक दर्द होता था। उजाला सिग्नस रेनबो हॉस्पिटल को छोड़कर अभी तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसी अन्य अस्पताल में इस तरह की सुविधा उपलब्ध नहीं है।

ब्रेन स्ट्रोक विशेषज्ञ डाॅक्टर अंकित जैन ने बताया कि हमारे पास जब मरीज आया तो उसके सिर में भयानक दर्द था। उसकी एंजियोग्राफी की गई। दिमाग की नस एक जगह गुब्बारे जैसी फूली हुई मिली। इस बैलून का साइज 10.2 गुणा 9. 2 एमएम पाया गया। मरीज की उम्र और बैलून ( एन्यूरिज्म ) के साइज को देखते हुए क्लिपिंग विधि से इलाज संभव नहीं था। इसके बाद एंडोवैस्कुलर कोइलिंग तकनीक से इलाज करने का निर्णय लिया। इस विधि में चीरा या टांके लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। पैर की नस के जरिए कैथेटर डालकर एन्यूरिज्म तक पहुंचाया जाता है। इसके बाद कॉइल रखकर एन्यूरिज्म को ब्लॉक कर दिया। इलाज के बाद मरीज अब स्वस्थ है। ब्रेन स्ट्रोक के मरीज को छह घंटे के अंदर उपचार मिल जाता है तो उसकी रिकवरी के चांस ज्यादा होते हैं। 

उन्होंने बताया कि एंडोवैस्कुलर कोइलिंग में बिना किसी बड़ी सर्जरी या खोपड़ी को खोले ही ब्रेन एन्यूरिज्म का इलाज किया जाता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो एन्यूरिज्म में ब्लड की आपूर्ति को रोकने के लिए की जाती है। एन्यूरिज्म एक गुब्बारे जैसा होता है जो नस की दीवार के कमजोर होने के कारण होता है। ज्यादातर एन्यूरिज्म फटने की वजह से जानलेवा रक्तस्राव और मस्तिष्क को नुकसान पहुंचाते हैं। जब एन्यूरिज्म में ब्लड की आपूर्ति बाधित होती है, तो इसके फटने की संभावना खत्म हो जाती है।

डाॅक्टर अंकित जैन बताते हैं कि इस प्रक्रिया में पैर की नस में एक पतली ट्यूब (कैथेटर) डाली जाती है। कैथेटर को नस में ले जाकर एन्यूरिज्म में कॉइल को रखा जाता है। कॉइल नरम प्लैटिनम धातु की बनी होती है और स्प्रिंग के आकार की होती है। एंडोवैस्कुलर पद्धति से अभी तक दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में इलाज किया जाता था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस तकनीक से पहली बार उजाला सिग्नस रेनबो हॉस्पिटल में इलाज किया गया है।

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