Agra News : Refractive error in children’s eyes is affecting school performance…#agra
आगरालीक्स…आगरा के स्कूलों में बच्चों की आंखों पर लगा चश्मा अब जिरह करा रहा है, मम्मी—पापा चाहते हैं उनका बच्चा आगे की सीट पर बैठे, मगर चश्मा तो सभी को लगा है, टीचर्स और एक्सपर्ट के पास है समाधान
आगरा के स्कूलों में अब चश्मा जिरह कराने लगा है। बच्चों की आंखें क्यों कमजोर हो रही हैं, इसके जवाब में मोबाइल, टीवी और कंप्यूटर पहले नंबर पर आते हैं, लेकिन इस पर काफी बहस की जा चुकी है। ऐसे में आज हम बच्चों को चश्मा क्यों लग रहा है इस पर न जाते हुए इसकी वजह से हो रहे नुकसान और समाधान पर बात करेंगे।
क्या है समस्या ?
केस—1 : कमलानगर की रहने वाली श्रष्टि बदला नाम कक्षा 2 में पढ़ती है। श्रष्टि की आंखों पर चश्मा लगा है। सप्ताह में तीन दिन तो ऐसे गुजरते हैं कि वो स्कूल से व्हाइट बोर्ड को ठीक कांपी करके लाती है जबकि बाकी तीन दिन उसका क्लास वर्क ठीक नहीं आता। वजह है पीछे की बैंच से बोर्ड देखने में होने वाली कठिनाई।
केस—2 : बल्केश्वर के रहने वाले दिव्यांश के साथ भी यही समस्या है। जिस दिन भी वह पीछे की बैंच पर बैठता है उसे बोर्ड को कांपी करने के लिए बार—बार अपनी बैंच से उठकर बोर्ड देखने के लिए आगे जाना पड़ता है। कई बार ऐसा करने पर सर या मैडम से डांट भी पड़ जाती है।
बच्चे की परफॉर्मेंस से परेशान
समस्या अकेले श्रष्टि याा दिव्यांश की नहीं है। अधिकांश माता—पिता स्कूल में अपने बच्चे की परफार्मेंस को लेकर परेशान हैं। उनके बच्चे का क्लार्स वर्क ठीक न आने की वजह से वे उसे टेस्ट और एग्जाम्स की तैयारी ठीक से नहीं करा पाते हैं। उन्हें बार—बार दूसरे बच्चों के माता—पिता और टीचर्स से मदद मांगनी पड़ती है। कभी यह मदद मिलती है तो कभी नहीं। इन हालातों में किसी दूसरे बच्चे की नोटबुक ही सहारा होती है लेकिन कभी—कभी वह भी नहीं मिल पाती। ऐसे में तैयारी कराना और मुश्किल हो जाता है। बच्चा धीरे—धीरे क्लास वर्क और पढ़ाई में पिछड़ने लगता है। वहीं बच्चे का कॉन्फिडेंस भी कम होता है। हैंड राइटिंग और क्लास वर्क ठीक न होने पर बार—बार टीचर्स या मम्मी—पापा की डांट खानी पड़ती है तो भावनात्मक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है।
बच्चे को लेकर टीचर्स और डॉक्टर्स के पास पहुंच रहे
लिहाजा पैरेंट्स परेशान हैं। वे चाहते हैं कि बच्ची आगे बैठे, लेकिन टीचर्स के सामने समस्या है कि क्लास में आधे से अधिक बच्चों को चश्मा लगा है। वे किसी एक बच्चे को आगे की सीट स्थाई नहीं कर सकते। ऐसे में रोटेशन का तरीका अपना रहे हैं। बच्चों की सीट रोटेड होती रहती है। वहीं पैरेंट्स आई स्पेशलिस्ट के पास भी पहुंच रहे हैं। आंखों की जांच कराने के साथ ही मल्टीविटामिन आदि दवाओं के बारे में पूछते हैं।
आई स्पेशलिस्ट डॉ. संचित गुप्ता ने दिए सुझाव
1— बच्चों की समस्याओं को देखते हुए आई स्पेशलिस्ट डॉ. संचित गुपता ने कुछ सुझाव दिए, जिनमें से पहला था कि यह सिर्फ आधे घंटे का एक प्रशिक्षण है। इससे अधिक भी हो सकता है। अब जब यह समस्या इतनी विकराल हो चुकी है कि बडी संख्या में बच्चों को चश्मा लग रहा है तो टीचर्स को विजन टेस्ट करना सीख लेना चाहिए। इससे वे क्लास में ही बच्चों की आई साइड के बारे में पता लगा सकेंगे। इसके साथ ही स्पेशलिस्ट से परामर्श की सलाह दे सकते हैं।
2— डॉ. संचित कहते हैं कि वैसे तो अधिकांश स्कूलों में बच्चों के लिए रोटेशन रखा जाता है। मतलब बच्चे जो बच्चे पीछे बैठते हैं वे दिनों के हिसाब से आगे वाली सीट पर आते जाते हैं। इससे सीट रोटेड होती रहती है। लेकिन जिन स्कूलों में ऐसा नहीं हो रहा है वहां स्थाई समाधान न होने तक इस व्यवस्था को लागू किया जान चाहिए।
3— डॉ. संचित कहते हैं कि स्कूल प्रबंधनों को यह भी चाहिए कि वे आई स्पेशलिस्ट के साथ कोआॅर्डिनेट करें। ऐसी व्यवस्था विकसित होनी चाहिए कि समय—समय पर आई स्पेशलिस्ट स्कूल आएं और बच्चों की आंखों की जांच होती रहे। बहुत से संगठन भी इन कामों में मदद करते हैं। उनसे बात की जा सकती है।
बच्चों में रिफ्रेक्टिव एरर
डॉ. संचित ने कहा कि रिफ्रेक्टिव एरर की समस्या लेकर हर रोज माता—पिता आते हैं। जांच के बाद पता लगता है कि मायोपिया है या हाइपर मायोपिया। मायोपिया और हाइपरमेट्रोपिया के बीच का अंतर यह है कि मायोपिया से पीड़ित व्यक्ति पास की वस्तुओं को स्पष्ट रूप से देख सकता है, लेकिन दूर की वस्तुओं को नहीं। हाइपरोपिया से पीड़ित व्यक्ति दूर की वस्तुओं को स्पष्ट रूप से देख सकता है, लेकिन पास की वस्तुओं को नहीं। आमतौर पर आंखों की रोशनी कम होने का कारण रिफ्रेक्टिव एरर होता है। जिसकी वजह से मायोपिया, हाइपरोपिया की समस्या बढ़ जाती है। मौजूदा वक्त में ज्यादा स्क्रीन टाइम लोगों की आंखें कमजोर होने का मुख्य कारण है।