आगरालीक्स…शौक—शौक में थमाया मोबाइल सनक बन गया है, अब रील्स और शॉर्ट वीडियोज के चक्कर में न हो जाए मोए—मोए इसलिए बच्चे की हरकतों से घबराए अभिभावक डॉक्टरों के पास पहुंच रहे हैं
आगरा में 10—12 साल के बच्चे सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं। दिन भर में 07—08 घंटे मोबाइल पर बिता रहे हैं। इससे अभिभावक परेशान हैं। बच्चों से सवाल कर रहे हैं कि पढ़ोगे कब पर बच्चा इगनोर कर रहा है। एक या दो बार तो ठीक इससे ज्यादा बार यही सवाल पूछने पर बच्चे का गुस्सा बाहर आ रहा है। वह अपने ही माता—पिता पर झुंझलाकर पड़ रहा है।
वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. केसी गुरनानी ने बच्चों में बढ़ती सोशल मीडिया की लत पर चिंता जाहिर की। कहा कि उनके पास हर दिन ऐसे नए मामले आ रहे हैं जिनमें बच्चे परीक्षाओं में अच्छे अंक से अधिक सोशल मीडिया पर कितने फॉलोअर्स बढ़े और कितने लाइक्स मिले इस बात पर चिंतित हैं। मोबाइल फोन और सोशल मीडिया का अधिक इस्तेमाल करने वाले इन बच्चों में एग्रेसन भी देखने को मिल रहा है। डॉ. गुरनानी के अनुसार यह मनोरोग की पहली निशानी है। रोकने—टोकने पर बच्चे अपने माता—पिता का सम्मान तक भूल जाते हैं। वे उन पर गुस्सा करते हैं। ऐसे बच्चों की वे काउंसलिंग कर उन्हें समझाते हैं जबकि कई ऐसे मामले हैं जिनमें बीमारी बढ़ जाती है और केवल काउंसलिंग से काम नहीं चलता। इन बच्चों को काउंसलिंंग के साथ दवाओं की भी जरूरत पड़ रही है।
वहीं वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ ने बताया कि मोबाइल फोन के अत्यधिक इस्तेमाल का सबसे बुरा असर यह देखने को मिल रहा है कि बच्चों की नींद गायब हो गई है। वे दिन में चार घंटे की नींद भी नहीं ले रहे हैं। कुछ बच्चे चार साल बाद भी बोलना नहीं सीख पाए हैं। कई ऐसे भी हैं जो कार्टून कैरेक्टर की तरह बात करते हैं। माता—पिता ऐसे बच्चों को लेकर आते हैं।
माता—पिता बिताएं बच्चों के साथ वक्त
डॉक्टरों की मानें तो बच्चों में इस बढ़ती लत के जिम्मेदार एक हद तक माता—पिता भी हैं। एक तो रोते हुए बच्चे को शांत करने के लिए या किसी जिद से पीछा छुड़ाने के लिए वे बच्चे को फोन पकड़ा देते हैं। धीरे—धीरे बच्चे को आदत हो जाती है। वहीं काम से घर आने वाले माता-पिता, दिन भर अथक परिश्रम करते हुए, फोन उठाते हैं और संदेशों और कॉल का जवाब देते हैं, जहाँ वे अनजाने में अपना ज़्यादा समय फोन पर बिताते हैं और अपने बच्चों के साथ समय बिताने के लिए समय नहीं निकाल पाते हैं, बच्चे अब उपेक्षित महसूस करते हैं और स्मार्टफोन से खेलना शुरू कर देते हैं और यूट्यूब पर वीडियो देखते हैं। इससे साबित होता है कि बच्चे अपने माता-पिता की नकल करते हैं। जबकि माता—पिता दावा करते हैं कि वे बहुत कम समय के लिए ही मोबाइल देते हैं, लेकिन वास्तव में क्या माता-पिता इस बात पर नज़र रखते हैं कि उनके बच्चे क्या खेल रहे हैं या क्या देख रहे हैं।
ये समस्याएं देखने को मिल रहीं
एक्सपर्ट्स की मानें तो मोबाइल फोन के अत्यधिक इस्तेमाल से छोटे बच्चे और किशोर दोनों में ही समस्याएं देखने को मिल रही हैं। इसमें कुछ गंभीर मुद्दे व्यवहार संबंधी समस्याएं, लत, नींद की गड़बड़ी, आंखों की समस्याएं और तंत्रिका तंत्र की समस्याएं हैं। यह डरावना है लेकिन रेडिएशन के कारण ट्यूमर भी विकसित हो सकता है। वर्चुअल कक्षाओं के कारण अभिभावकों को उन्हें स्मार्टफोन देना पड़ता है और साथ ही कुछ स्कूलों में होमवर्क व्हाट्सएप पर भेजा जा रहा है, इसलिए स्क्रीन टाइमिंग को कम करना या फोन का उपयोग पूरी तरह से बंद करना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है। बावजूद इसके इसे नियंत्रित करने की कोशिश करनी होगी।