Guru Purnima: What to do if there is no Guru, worship method
आगरालीक्स… ( 21 July ) । गुरु पूर्णिमा पर्व 24 जुलाई को है। गुरु की पूजा कैसें करें, आपका गुरु नहीं हैं तो आप किसे गुरु मानकर पूजें। विस्तृत जानकारी आगरालीक्स में।
श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान, गुरु रत्न भंडार अलीगढ़ के ज्योतिषाचार्य पंडित हृदय रंजन शर्मा के मुताबिक गुरु हमारे जीवन में हमारा उचित मार्गदर्शन करते हैं और हमें सही राह पर ले जाते हैं। हमारे जीवन में शिक्षा का प्रकाश लाने वाले हमारे गुरुओं के पास हमारे जीवन की असंख्य परेशानियों का हल होता है और उनकी महिमा का वर्णन भी संभव नहीं है।
🔷सब धरती कागज करूँ, लिखनी सब बनराय, सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय
🔶 अर्थात पृथ्वी के सभी कागज, जंगल की सभी कलम, सातों समुद्रों को स्याही बनाकर लिखने पर भी गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते।
🔷 हिन्दू धर्म में सबसे ऊँचा दर्जा दिया गया है भगवान को, लेकिन भगवान से भी ऊँचा दर्जा गुरु का माना जाता है। कहते हैं कि अगर भगवान किसी इंसान को श्राप देते हैं तो हमें उससे हमारे गुरु बचा सकते हैं लेकिन अगर हमारे गुरु ने हमें कोई श्राप दे दिया तो उससे हमें भगवान भी नहीं बचा सकते। इसी के चलते कबीर जी के एक दोहे में कहा गया है कि
‘♦ गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय। बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय॥’
🔶 आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा/व्यास पूजा भी कहा जाता है, और आषाढ़ पूर्णिमा के ही दिन महर्षि व्यास का अवतरण भी हुआ था। महर्षि व्यास पाराशर ऋषि के पुत्र तथा महर्षि वशिष्ठ के पौत्र थे। महर्षि व्यास के अवतरण के इस दिन का महत्व इसलिए भी अधिक माना गया है क्योंकि महर्षि व्यास को गुरुओं का गुरु, अर्थात गुरुओं से भी श्रेष्ठ का दर्जा दिया गया है।
🔷 आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को सभी शिष्य अपने-अपने गुरु की पूजा, विशेष रुप से करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। प्राचीन काल से ही इस दिन शिष्य पूरी श्रद्धा से अपने गुरु की पूजा का आयोजन किया करते हैं। इस दिन कई जगहों पर स्कूल, कॉलेज में आयोजन किया जाता है। इस दिन अपने गुरु और घर के बड़े और सम्मानित लोगों का, जैसे, माता-पिता, भाई-बहन आदि का आशीर्वाद अवश्य लें
🔶 गुरु पूर्णिमा तिथि प्रारंभ – 10:43:57 बजे, 23 जुलाई 2021 से
🔷 गुरु पूर्णिमा तिथि समाप्त – 08:07:08 बजे, 24 जुलाई 2021 तक
🔷 गुरु पूर्णिमा पूजन विधि
🔶 गुरु पूर्णिमा के दिन देश के कई मंदिरों और मठों में गुरुपद पूजन किया जाता है। हालाँकि अगर आपके गुरु अब आपके साथ नहीं हैं या वो दिवंगत हो गए हो तो भी आप इस तरह से गुरु पूर्णिमा के दिन उनका पूजन कर सकते हैं
🔷 गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह स्नान आदि करें और उसके बाद घर की उत्तर दिशा में एक सफेद कपड़ा बिछाकर उसपर अपने गुरु की तस्वीर रख दें।
🔶 इसके बाद उन्हें माला चढ़ाएं और मिठाई का भोग लगाएं
🔷 इसके बाद उनकी आरती करें और जीवन की हर एक शिक्षा के लिए उनका धन्यवाद दें और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें
🔶 इस दिन सफेद रंग के या फिर पीले रंग के वस्त्र पहनकर पूजा करना शुभ माना गया है।
🔷 इस दिन की पूजा में अवश्य शामिल करें। गुरु मंत्र
🌷 गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
🌷 गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
🔶 इस मंत्र का अर्थ है कि, “गुरु ब्रह्मा हैं, गुरु विष्णु हैं, गुरु हि शंकर हैं; गुरु हि साक्षात् परब्रह्म हैं; उन सद्गुरु को प्रणाम।
🔷 वैसे गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु पूजन की यह विधि वो लोग भी अपना सकते हैं जो अपने गुरु से किसी कारणवश दूर रहते हो, या फिर किसी कारण से वो अपने गुरु के पूजन-वंदन को नही जा सकते हैं। हाँ लेकिन अगर आप गुरु का पूजन वंदन करने जा रहे है तो अपने गुरु के पैर पर फूल चढ़ाएं, उनके मस्तिष्क पर अक्षत और चंदन का तिलक लगायें, और उनका पूजन कर उन्हें मिठाई या फल भेंट करें। उनका शुक्रिया-अदा करें और उनका आशीर्वाद लें।
♦ गुरु नहीं हैं तो भगवान विष्णु को मानें अपना गुरु
🔶 वैसे तो ऐसा मुमकिन ही नहीं है कि किसी भी इंसान का कोई गुरु नहीं हो लेकिन मान लीजिये कि किसी कारणवश आपके जीवन में कोई गुरु नहीं हैं तो आप गुरु पूर्णिमा के दिन क्या कर सकते हैं?
🔷 सबसे पहले तो ये जान लीजिये कि हर गुरु के पीछे गुरु सत्ता के रूप में शिव जी को ही माना गया है। ऐसे में अगर आपका कोई गुरु नहीं हों तो इस दिन शिव जी को ही गुरु मानकर आपको गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाना चाहिए।
🔶 आप भगवान विष्णु को भी गुरु मान सकते हैं। इस दिन की पूजा में भगवान विष्णु, जिन्हें गुरु का दर्जा दिया गया है या भगवान शिव की ऐसी प्रतिमा लें जिसमें वो कमल के फूल पर बैठे हुए हों। उन्हें फूल, मिठाई, और दक्षिणा चढ़ाएं। उनसे प्रार्थना करें कि वो आपको अपने शिष्य के रूप में स्वीकार करें
♦ जानिए गुरु पूर्णिमा और व्यास पूजा का महत्व
🔷 हिन्दू धर्म ग्रन्थ के अनुसार ये दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी होता है। बता दें कि संस्कृत के महान विद्वान् होने के साथ-साथ महाभारत जैसी महाकाव्य भी उन्हीं की देन है। इसके अलावा महर्षि वेदव्यास को सभी 18 पुराणों का रचयिता भी है
🔶 इसके अलावा महर्षि वेदव्यास को ही वेदों के विभाजन का श्रेय दिया जाता है। यही वजह है कि इन्हें वेदव्यास के नाम से भी जाना जाता है। महर्षि वेदव्यास को आदिगुरु का भी दर्जा दिया गया है इसलिए कई जगहों पर गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा या व्यास पूजा के नाम से भी जाना जाता है
🔥 वर्षा ऋतु में ही क्यों मनाते हैं गुरु पूर्णिमा?
🔷 भारत में यूँ तो सभी ऋतुओं का अपना अलग-अलग महत्व बताया गया है लेकिन गुरु पूर्णिमा को वर्षा ऋतु में ही क्यों मनाया जाता है, इसकी भी अपनी एक ख़ास वजह है। दरअसल इस समय ना ही ज़्यादा गर्मी होती है और ना ही ज़्यादा सर्दी होती है। ऐसे में ये समय अध्ययन और अध्यापन के लिए सबसे अनुकूल और सर्वश्रेष्ठ माना गया है
🔥 ज्योतिष में गुरु पूर्णिमा का महत्त्व
🔶 आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा की तिथि गुरु पूर्णिमा अथवा व्यास पूर्णिमा के नाम से जानी जाती है | गुरु के प्रति पूर्ण सम्मान, श्रद्धा-भक्ति और अटूट विश्वास रखने से जुड़ा यहां पर वह न्यान अर्जन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है | मान्यता है कि गुरु अपने शिष्यों के आचार-विचारों को निर्मल बनाकर उनका उचित मार्गदर्शन करते हैं, तथा इस नश्वर संसार के मायाजाल अहंकार ,भ्राती,अज्ञानता ,दंभ, भय आदि दुर्गुणों से शिष्य को बचाने का प्रयास करते हैं।
🔥 गुरु पूर्णिमा की ज्योतिष मान्यता
🔷 ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस तिथि को चंद्र ग्रह, गुरु बृहस्पति की राशि धनु और शुक्र के नक्षत्र पूर्वाषाढ़ा में होते हैं, क्योंकि चंद्रमा मन का कारक है, इसलिए मनुष्य का संबंध दोनों गुरुजनों से स्थापित होने से वह न्याय की ओर भी लक्षित होते हैं।
🔶 वहीं दूसरी और आषाढ़ मास में आकाश घने बादलों से आच्छादित रहते हैं| अज्ञानता के प्रतीक इस बादलों के बीच से जब पूर्णिमा का चंद्रमा प्रकट होता है तो माना जाता है कि अदनान आता रूपी अंधकार दूर होने लगता है, इसलिए इस दिन पुराणों में रचीयता वेदव्यास और वेदों के व्याख्याता सुखदेव के पूजन की परंपरा है| अतः पूर्णिमा गुरु है, जबकि आषाढ़ शिष्य हैं।