आगरालीक्स…. आगरा में घरों में काम करने वाले दो लाख युवक और युवतियां हैं। ये असंगिठत और असिक्षित हैं इसलिए अपने ही अधिकारों के बारे में न जानते हैं और न आवाज उठाते हैं। ये उप्र में दो करोड़ और भारत में नौ लाख है। इसमें 90 फीसदी महिलाएं और लड़कियां हैं। न कोई छुट्टी, न शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा और न ही पेंशन।
संजय प्लेस स्थित यूथ हॉस्टल में अन्तर्राष्ट्रीय घरेलू कामगार दिवस पर स्पिड संस्था द्वारा गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें घरेलू कामगारों के लिए काम रहे सामाजिक संगठनों के साथ उन महिलाओं ने भी हिस्सा लिया, जो घर-घर चौका बर्तन और सफाई कर अपना व परिवार का पेट पालती हैं। मुख्य अतिथि उप्र ग्रामीण मजदूर संघ के तुलाराम शर्मा ने कहा कि घरेलू कामगारों को श्रम कानून के दायरे में लाने के लिए जल्दी ही कानून बनना चाहिए, इसके लिए हम प्रयासरत हैं। बृजमंडल हैरिटेज कंजरवेशन सोसायटी के श्रवम कुमार ने घरेलू कामगारों के आंकड़ों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि असंगठित होने और कोई कानून न होने की वजह से घरों में काम करने वाली महिलाओं और लड़कियों को आर्थिक और मानसिक शोषण सहना पड़ता है। मानावधिकार संगठन के नितिन कोहली ने अपनी मांगे बताई। इस अवसर पर मुख्य रूप से सेफ गार्डिंग चिल्डरन के रोहित कुमार, चाइल्ड लाइन से रितु, वर्ड विजन से समीर, राबिन, मुकेश राठौर, अमर रजावत, स्पिड संस्था से राजकुमार, रमाशंकर व समीर उपस्थित थे। संचालन चंद्रभान प्रजापति ने किया।
जुलाई माह से असंगठिक कामगार अधिकार मंच चलाएगा कैम्पेन
आगरा। स्पिड संस्था के चंद्रभान प्रजापति ने बताया कि जुलाई माह से कई सामाजिक संगठन मिलकर असंगठित कामगार अधिकार मंच के बैनर तले त्रिमासिक अभियान चलाएंगे। इसमें जगह-जगह मानव श्रंखला व लेटर कैम्पेन के जरिए जागरूकता लाने व कानून पास कराने के लिए प्रयास किया जाएगा।