Mental Health Day 2022: 14 Crore population affected with Mental disease says Dr Dinesh Rathore Psychiatrist, Agra #agra
आगरालीक्स ….आज मानसिक स्वास्थ्य दिवस है, बॉलीवुड के सितारों से लेकर कारोबारी और आम जन सहित 14 करोड़ लोग डिप्रेशन सहित मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं।
मनोचिकित्सक डॉ. दिनेश राठौर, आगरा मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय का कहना है कि हर साल 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का उद्देश्य समाज को मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं के विषय में जागरूक करना है। विश्व स्वास्थ संगठन ने इसके लिए इस वर्ष “मानसिक स्वास्थ्य एवं कल्याण; एक वैश्विक प्राथमिकता” विषय रखा है। नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे 2015 के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या का 10%(14 करोड़) छोटे-बड़े मानसिक स्वास्थ्य की समस्या का सामना कर रहा है । इनमें से 0.8% (1 करोड़) ऐसी गंभीर मानसिक स्वास्थ्य की समस्या से पीड़ित हैं जिनको भर्ती कर उपचार की आवश्यकता है। मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से पीड़ित व्यक्ति की औसत आयु अन्य व्यक्तियों की तुलना में 10 से 20 वर्ष कम होती है। भारतीय समाज में एक लोक-सूक्ति है कि “पहला सुख निरोगी काया”। मानसिक स्वास्थ्य के बिना कोई व्यक्ति पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं है।

कोरोना काल का लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ा है। कोरोना में वित्तीय हानि, परिजनों को खोने, घरेलू हिंसा, बेरोजगारी एवं समूहिक पलायन के कारण लोगों में तनाव और तनाव के कारण नशे की प्रवृत्ति बढ़ी है। नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे के अनुसार लगभग 4 करोड व्यक्ति नशे की गंभीर मानसिक रोग की स्थिति से पीड़ित हैं, अर्थात 4 करोड़ परिवारों को इस कारण विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है । जिससे लोगों की कार्य क्षमता में गिरावट आती है जो मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक जोखिम कारक है। इस कुचक्र को तोड़ने के लिए तनाव एवं मानसिक स्वास्थ्य की अन्य गंभीर स्थितियों की प्रभावी रोकथाम एवं निदान की आवश्यकता है । विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कोरोना काल एवं इसके बाद के कालखंड में अवसाद एवं चिंता रोग में 25% की वृद्धि हुई है । इसी बीच विश्व में आत्महत्या की दर में भी 10% की वृद्धि हुई है। सन 2019 से पूर्व नेशनल क्राइम ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रतिदिन 381 लोग आत्महत्या करते थे जो कोरोना काल के पश्चात प्रतिदिन 418 आत्महत्या के आंकड़े तक पहुंच गया है । इस प्रकार वर्ष भर में डेढ़ लाख से अधिक आत्महत्या हो रही हैं । इन समस्याओं से पीड़ित व्यक्ति को समाज के अत्यधिक सहयोग की आवश्यकता होती है किंतु अपेक्षाकृत सामाजिक सहयोग उपलब्ध नहीं हो पाता । विश्व स्तर पर प्रत्येक देश एवं राज्य स्वास्थ्य का 2% से कम बजट मानसिक स्वास्थ्य के लिए उपलब्ध कराता है । अवसाद एवं चिंता रोग के उपचार में खर्च किया गया ₹1 के सापेक्ष स्वस्थ्य व्यक्ति के द्वारा राष्ट्रीय आय में 5 गुने का योगदान किया जाता है। अतः मानसिक स्वास्थ्य पर निवेश समाज के लिए सार्थक है। मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं का निदान न होने के कारण व्यक्ति परिवार समाज एवं राष्ट्र को गंभीर आर्थिक हानि होती है। नेशनल मेंटल सर्वे 2015 के अनुसार भारत में 70 से 80% मानसिक रोगियों को उपचार प्राप्त नहीं हो पाता। सरकार द्वारा इस हेतु विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं किंतु अभी भी मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में अपर्याप्त एवं उपेक्षित नीतियों की कीमत समाज को चुकानी पड रही है। मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ प्राप्त करना प्रत्येक नागरिक का अधिकार है। स्वास्थ्य का अधिकार संविधान के द्वारा जीवन के अधिकार के मूल अधिकार में निहित है । गरीब एवं उपेक्षित मानसिक रोगियों को आवश्यक मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं सरकार के द्वारा मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय, आगरा जैसे प्रतिष्ठानों में उपलब्ध कराई जाती हैं। किंतु इसके प्रति समाज में जागरूकता का अभाव, मानसिक रोग के प्रति शर्म का भाव, मानसिक रोगियों के प्रति भेदभाव, सरकार के द्वारा आवंटित बजट में कमी एवं मानसिक स्वास्थ्य प्रशिक्षित विशेषज्ञों की कमी जैसी समस्याओं के विषय में आसमान्य प्रयास करने की आवश्यकता है। इसके लिए मात्र चिकित्सा जगत के प्रयास पर्याप्त नहीं हैं। इस हेतु सामाजिक कार्यकर्ताओं, शिक्षकों, धर्मगुरुओ, राजनेताओं, नीति निर्धारकों आदि सभी के सम्मिलित प्रयासों द्वारा समाज में जागरूकता एवं सहयोग की आवश्यकता है।