आगरालीक्स… सावन में शहर ही नहीं गांवों में अब झूले नहीं पड़ते। पेड़ भी अब नहीं रहे। महिलाओं में भी पीहर जाने का नहीं क्रेज। नई पीढ़ी को याद नहीं सावन के गीत और मल्हार..
ब्रज में सावन के झूलों का था खासा क्रेज

ब्रज में सावन के महीने में पेड़ों पर झूले डालकर झूलने का खासा रिवाज था। सन् 1980 के दशक तक घर, मोहल्लों, बगीची में सावन आते ही पेड़ों पर रस्सी के ऊंचे-ऊंचे झूले डाल दिए जाते थे।
दोपहर में बच्चे तो शाम को महिलाएं झूले पर
इन झूलों पर पीहर आने वाली बहन-बेटियां दोपहर और शाम के समय झूले झूलते हुए सावन के गीत गाया करती थीं। दिन में बच्चे इन झूलों पर मस्ती किया करते थे।
पेड़ हो गए खत्म, बच्चे-महिलाओं की दिलचस्पी खत्म
समय के साथ पेड़ों की संख्या कम हो गई। मोहल्ले-बगीचों और घरों से पेड़ खत्म हो गए। महिलाओं में भी झूले के प्रति दिलचस्पी कम होती चली गई। महिलाएं भी अब पीहर (मायके) में आने का सावन का ही इंतजार नहीं करतीं, वह तो अपने परिवार की सुविधा और बच्चों की छुट्टी में ही पीहर आती हैं।
सावन के गीत-गाने भी अब याद नहीं
बेलनगंज पथवारी निवासी बीना शर्मा बताती हैं कि अब सावन के गीत पहले जैसे महिलाओं को याद नहीं, पहले सावन के गीत और मल्हार गाती थीं और यदि महिलाओं को गीत नहीं आते थे, उस समय फिल्मों के सावन के गीत गाया करती थीं। हरियाली तीज पर इसका खासा क्रेज हुआ करता था।