NSICON 2022 Agra : Neurosurgeon overburden of patient’s
आगरालीक्स …..न्यूरोसर्जन पर मरीजों का दबाव है, मरीजों की संख्या बढ़ रही है और न्यूरोसर्जन बहुत कम हैं। दिन रात काम करने के बाद भी जिन मरीजों का नंबर नहीं आ रहा है वे असंतुष्ट हैं।

होटल जेपी पैलेस में चल रहे न्यूरोलाॅजिकल सोसाइटी आफ इंडिया के 70 वें अधिवेशन में न्यूरसर्जरी से जुड़ी तकनीकी, मिर्गी के इलाज सहित अन्य बीमारियों पर चर्चा की गई। आयोजन अध्यक्ष और वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डाॅ. आरसी मिश्रा ने कहा कि ब्रेन में जब कोई समस्या होती है तो ऐसा नहीं है कि वह केवल ब्रेन तक ही सीमित हैं बल्कि इसका असर हमारे पूरे शरीर पर पड़ सकता है जैसे लकवा या कोमा, इसके अलावा शरीर के किसी अंग में विकलांगता आ सकती है और वह काम करना बंद या कम कर सकता है। न्यूरोलाॅजिकल सोसायटी आफ इंडिया के अध्यक्ष डाॅ. वरिंदर पाल सिंह ने कहा कि एक न्यूरो विशेषज्ञ का प्रशिक्षण बहुत अलग होता है। यह सीखने के बाद भी चलता रहता है। भारत में मस्तिष्क के रोगों की जो स्थिति है उसकी वजह से न्यूरोसर्जन्स पर भारी दबाव है। उन्हें हर वक्त मरीजों को देखते रहना है। इसलिए प्रशिक्षण काल में ही अपने आप को इस बात के लिए तैयार कर लेना चाहिए कि यहां निजी कुछ भी नहीं है। जो है मरीजों के लिए ही है। मरीज परिवार का हिस्सा बन जाता है। रिश्तेदारों का भरोसा चिकित्सक पर होता है। अगर आप इस सब में संतुलन नहीं रख पाएंगे तो आपके काम पर असर पड़ेेगा।
आयोजन सचिव व वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डाॅ. अरविंद कुमार अग्रवाल ने बताया कि सम्मेलन के दूसरे दिन भी मस्तिष्क से जुडे़े गहन मुद्दों पर चर्चा हुई। हाॅल ए में डाॅ. एसके गुप्ता, डाॅ. अरूण श्रीवास्तव, डाॅ. द्वारकानाथ श्रीनिवास, डाॅ. अनीता जगेटिया, डाॅ. पी सरत चंद्रा, हाॅल बी में डाॅ. दीपक झा, डाॅ. सचिन बोरकर, डाॅ. अनीता महादेवन, डाॅ. मंजुल त्रिपाठी, डाॅ. टोसीकी एंडो, हाॅल सी में डाॅ. सुरेश डंगानी, डाॅ. दिलीप पानीकर, डाॅ. सुरेश नैयर, डाॅ. दलजीत सिंह, डाॅ. आरएन साहू, डाॅ. विवेक टंडन, हाॅल डी में डाॅ. एन मुथुकुमार, डाॅ. सुधीर दुबे, डाॅ. आलोक अग्रवाल, डाॅ. पटकर सुशील वसंत, डाॅ. कार्तिकेयन एम, डाॅ. विलसन पी डिसूजा आदि ने महत्वपूर्ण व्याख्यान दिए। सम्मेलन के तीसरे दिन भी विशेषज्ञों द्वारा न्यूरो क्षेत्र में आधुनिक इलाज, इसके विकास और नई तकनीकों पर चर्चा होगी।
अपनी ब्रेन हैल्थ के लिए सुधारें आदतें: डाॅ. आरसी मिश्रा
वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डाॅ. आरसी मिश्रा ने कहा कि मस्तिष्क एक जटिल अंग है जिसमें अरबों न्यूरांस हैं। इसमें विभिन्न जटिल नेटवर्क होते हैं जो शरीर के सामान्य कामकाज के लिए सहायक होते हैं। यह हमारे आस-पास की दुनिया के देखने के तरीके को तय करता है और उस पर प्रतिक्रिया करता है। इसलिए अपने मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए जीवनशैली में कुछ बदलाव जरूरी हैं जैसे शारीरिक व्यायाम, उचित आहार और पोषण, चिकित्सा जोखिमों को नियंत्रित करना, पर्याप्त नींद और आराम।
सफलता दर सावधानी पर निर्भर: डाॅ. अरविंद कुमार अग्रवाल
वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डाॅ. अरविंद कुमार अग्रवाल ने कहा कि शरीर के अन्य रोगों की तरह ही हम कई बार दिमागी रोगों की सफलता दर पर बात करने लगते हैं। दरअसल कोई भी रोग लाइलाज नहीं है। अगर समय रहते बीमारी की पहचान हो जाती है तो इसका इलाज मुमकिन हो जाता है। बीमारी गंभीर होने पर ठीक होने में थोड़ा वक्त जरूर लग सकता है। वैसे यह लक्षणों और अवस्था पर निर्भर करता है। जैसे ब्रेन स्ट्रोक के अधिकांश मामलों में समय से अस्पताल पहुंचना जरूरी है।
मरीज परिवार का हिस्सा बन जाता है: डाॅ. वरिंदर पाल सिंह
न्यूरोलाॅजिकल सोसायटी आफ इंडिया के अध्यक्ष डाॅ. वरिंदर पाल सिंह ने कहा कि एक न्यूरो विशेषज्ञ का प्रशिक्षण बहुत अलग होता है। यह सीखने के बाद भी चलता रहता है। भारत में मस्तिष्क के रोगों की जो स्थिति है उसकी वजह से न्यूरोसर्जन्स पर भारी दबाव है। उन्हें हर वक्त मरीजों को देखते रहना है। इसलिए प्रशिक्षण काल में ही अपने आप को इस बात के लिए तैयार कर लेना चाहिए कि यहां निजी कुछ भी नहीं है। जो है मरीजों के लिए ही है। मरीज परिवार का हिस्सा बन जाता है। रिश्तेदारों का भरोसा चिकित्सक पर होता है। अगर आप इस सब में संतुलन नहीं रख पाएंगे तो आपके काम पर असर पड़ेेगा।