आागरालीक्स…शीतला पूजन यानी बासोड़े की पूजा 22 मार्च को. जानिए इससे संबंधित पौराणिक कथा और बासोड़े का महत्व..
बासौड़े का त्योहार होली के 7 या 8 दिन बाद या अधिकतर होली के बाद पहला सोमवार या गुरुवार को ही मनाया जाता है. ज्यादातर यह त्यौहार अपनी गली मोहल्ले या क्षेत्र के अनुसार ही होता है. इसमें सप्तमी या अष्टमी देखना ज्यादा अनिवार्य नहीं है. यह त्यौहार दिन या वार के हिसाब से ही मनाया जाता है. इस दिन बासी भोजन जरूर खाया जाता है. (1 दिन पहले बनाया हुआ).
इसमें विशेषकर होली के बाद सोमवार या गुरुवार कभी भी खाली नहीं जाता, इसे शुभ ग्रह के बार में करने का ही विशेष महत्व होता है. इसमें पथवारी माता (योगिनी देवी) की पूजा होती है. अतः बासोड़े से एक दिन पहले घर की महिलाएं संध्या के समय से ही पकवान बनाकर रख लेती हैं. फिर प्रातः काल (तड़के) उठकर घर की मुखिया स्त्री या फिर माता एक थाली में सभी बनाए हुए पकवान रबडी, रोटी, चावल, रोटी, मूंग की छिलके वाली दाल, हल्दी, धूपबत्ती एक गूलरी की माला जो होली के दिन बचा कर रखते हैं, थाली में यथायोग्य दक्षिणा रखकर घर के सभी बच्चों, पुरुष, स्त्रियों को बैठाकर उनके ऊपर से 5 या 7 वार यह कहकर उतारती है कि “हे शीतला माता आप की पूर्ण कृपा से पूरे वर्ष भर मेरे घर में सभी प्रकार के रोग दोषो का नाश करना” और”मेरे घर परिवार में हर प्रकार की खुशहाली, उन्नति के कार्य हो.
यही हमारे पूर्वजों की मान्यता है जो पूर्व काल से से आज तक वैसी ही चली आ रही है. उतारा करने के बाद घर के बाहर भैरो बाबा की सवारी कुत्ते को खिलाना अति आवश्यक होता है क्योंकि कुत्ता भैरव बाबा का सूचक है. भैरव बाबा भगवान शिव के कोतवाल है. अतः घर परिवार की सुरक्षा के लिए कुत्ते को सामान खिलाती हैं. फिर घर के नजदीकी पथवारी (योगिनी देवी) के यहां जाकर सम्मान पूर्वक सामान का भोग लगाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. यथायोग्य दक्षिणा चढ़ाएं बचा हुआ बासी सामान घर आकर सभी लोगों को खिलाया जाता है. इस दिन की विशेष महत्वता यह भी है कि इस दिन के बाद से भोजन बासी होना प्रारंभ हो जाता है.
शीतला अष्टमी वाले लोगों के लिए शनिवार 22 मार्च 2025 को ही पूजा पाठ करना मान्य रहेगा)
शीतला माता की पौराणिक कथा
किसी गांव में एक बुढ़िया रहती थी वह बासोड़े के दिन शीतला माता का पूजन करती थी और ठंडी (बासी) रोटी, भोजन करती खाती थी. शेष गांव वाले शीतला माता की पूजा नहीं करते थे. अचानक एक दिन गांव में आग लग गई. जिसमे केबल बुढिया के घर को छोड़कर गांव के सारे घर आग में स्वाहा हो गए. इससे गांव वालों को बहुत आश्चर्य हुआ की बुढ़िया का मकान कैसे बच गया. इसके बाद सब गांव वाले बुढ़िया से पूछने लगे कि अम्मा तुम्हारा घर क्यों नहीं जला. हम सब लोगों के मकान क्यों जल गए तब बुढ़िया बोली कि मैं बासोड़े के दिन ठंडी, बासी रोटी .भोजन करती हूं और शीतला माता का पूजन करती हूं और तुम लोग यह काम नहीं करते थे. इससे तुम्हारी झोपड़ियों जल गई और मेरी झोपड़ी बच गई. तभी से पूरे गांव में बासोड़े के दिन शीतला माता की पूजा होने लगी और सब ठंडी बासी रोटी भोजन करने लगे. उसी दिन से सनातन धर्म अनुयायी होली के बाद पड़ने वाले पहले- सोमवार या गुरुवार को शीतला माता की पूजा बासोड़े के रूप में आज तक विधिवत रूप से करते चले आ रहे हैं. जैसा कि उन्होंने अपने पूर्वजों से सीखा है और उनकी यह मान्यता सही भी है क्योंकि शीतला माता प्राकृतिक प्रकोप ,चेचक, खसरा ,माता, लाल दाने निकलना इन सब रोगो की प्रमुख देवी है वह पूरे वर्ष हमें इन सभी प्रकोप सेहमे बचाती है यही एक पौराणिक मान्यता है.
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