आगरालीक्स…यूपी को इस बार दो लड़कों का साथ पसंद आया। हाथी के साथी साइकिल संग, हाथ को भी लगे पंख। रालोद को संजीवनी।
भाजपा को आधी सीटों पर करना पड़ रहा है संतोष
केंद्र की राजनीति में यूपी की 80 सीटें सबसे ज्यादा मायने रखती हैं। भाजपा ने पिछले चुनाव में सबसे ज्यादा 72 सीटों पर जीत हासिल की थी लेकिन इस बार उसे आधी सीटों पर संतोष करना पड़ रहा है। सपा और कांग्रेस को इस बार लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ने का खूब फायदा मिला।
सपा के हौसले बढ़े, हाथ भी नहीं रहा खाली हाथ
समाजवादी पार्टी की जीत का कारण जो अब तक निकल कर आ रहा है कि उसमें सबसे बड़ा कारण उसके अपने परम्परागत वोट तो रहे ही। साथ ही पिछले चुनावों में अधिकांश सीटों पर दूसरे स्थान पर रही बसपा के वोट बैंक का सपा के साथ चले जाना रहा, जैसे विधानसभा चुनावों में उसका वोट बैंक ट्रांसफर हो गया था, लगभग वैसे ही हालात रहे। कांग्रेस को सपा के साथ का खूब लाभ मिला और वह एक सीट से सात सीटों तक पहुंच गई।
भाजपा को अति आत्मविश्वास ले डूबा
भाजपा यूपी में सबसे ज्यादा सीटों का बहुत भरोसा था। चुनाव परिणामों को लेकर विशेषज्ञों का मानना है कि भाजपा का अति आत्मविश्वास भी इसमें आड़े आया। कई स्थानों पर प्रत्याशियों की छवि को लेकर विरोध के स्वर उभरे थे।
भितरघात के साथ मुखालफत का असर
भितरघात को लेकर भी भाजपा को मंथन करना होगा। आगरा में फतेहपुर सीकरी सीट पर तो भाजपा विधायक चौ. बाबूलाल का बेटा पार्टी से मुखालफत कर निर्दलीय ही चुनाव मैदान में उतर गया। भाजपा का थिंक टैंक और संघ की रणनीति कहां कमजोर रही इस पर भी मंथन होना तय है।
रालोद को तो मिल गई संजीवनी
यूपी में भाजपा का साथ पाने से रालोद को संजीवनी प्राप्त हो गई है। भाजपा ने पश्चिमी यूपी में पकड़ बनाने के इरादे से पहले पूर्व पीएम चौ. चरण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित करने और रालोद का भाजपा से गठबंधन करने से उसके कोटे में दो सीटें मिलीं और दोनों में उसे जीत मिली।
बसपा की एकला चलो की रणनीति भारी पड़ी
बसपा को विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव में भी मुंह की खानी पड़ी है। बसपा हमेशा से ही आगरा सहित कई सीटों पर कड़ी टक्कर देती रही और अधिकांश स्थानों पर दूसरे स्थान पर रहती थी। बसपा ने इस बार किसी के साथ गठबंधन नहीं करने के साथ एकला चलो रे की रणनीति बनाई, जो उसके लिए घातक साबित हुई।