आगरालीक्स …(Video)…आगरा में विचारों की आजादी पर चर्चा हुई। प्रेम हो जाए तो क्या हम अपने विचारों को नियंत्रित कर पाते हैं, तो सरकार कैसे, इंसान और गधे में अंतर से लेकर अनुच्छेद 19(1)(ए) में प्रत्येक नागरिक को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करने पर भी चर्चा की गई।

गुरुवार को स्वतंत्रता सेनानी कॉमरेड महादेव नारायण टंडन स्मृति बीसवां व्याख्यान माला माथुर वैश्य सभागार में आयोजित की गई। मुख्य वक्ता प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता और कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी ने अपने वक्तव्य में कहा कि जब हम विचारों की आज़ादी के बारे में सोचते हैं तो हमें लगता है कि हम किसी बहुत इंटेलेक्चुअल सी चीज़ पर बात कर रहे हैं। लेकिन विचार सिर्फ बुद्धिजीवी तबके से सम्बद्ध ही नहीं हैं। विचार सिर्फ साहित्य, कविता, दर्शन, नीति और धर्म ग्रंथों का मामला नहीं हैं। ये हम सबसे जुड़े हैं।
बुद्ध, गांधी, मार्क्स, विवेकानंद, राम, कृष्ण जैसे बन गए होते
हम सब अपने विचारों के आधीन हैं। हम चाह कर भी उन्हें बदल नहीं सकते। ऐसा होता तो हम में से कुछ लोग अपनी अपनी दिलचस्पी के हिसाब से बुद्ध, गांधी, मार्क्स, विवेकानंद, राम, कृष्ण, मुहम्मद या जीसस जैसे हो गए होते। डिप्रेशन में चले जाइए, तो निकलना मुश्किल पड़ता है। प्रेम हो जाए तो क्या हम अपने विचारों को नियंत्रित कर पाते हैं? अब जब हम खुद ही अपने विचार बदल नहीं सकते तो भला सरकार, धर्म या बड़ी बड़ी ऑथोरिटीज कैसे हमारे विचारों को नियंत्रित कर सकती हैं।
जब मानव समाज में आपसी सामंजस्य के लिए नियम कानून बनाने की ज़रुरत पड़ी. तो कुछ बातें नैतिक मानी गईं, कुछ अनैतिक. जो बाद में कानूनी और गैर कानूनी बन गयीं. लेकिन कमाल की बात वोटिंग राईट्स भी नहीं थे, वो बाद में देशों की मुखिया बनीं. जिन्हें अमेरिका में अछूत माना गया, वो बाद में वहाँ के राष्ट्रपति बन गए। और ये सब जो बदला, वो किसने बदला। उसने, जो पुरानी व्यवस्था से सहमत नहीं था। सही गलत की जो परिभाषा दुनिया में आज के पांच सौ साल पहले जैसी थी, आज उससे अलग है। तो ये मान कर चलिए कि आने वाले पांच सौ साल बाद भी ये दुनिया ऐसी नहीं रहेगी। और इसे वो बदलेंगे, जो आज की परिभाषाओं से असहमत हैं। अगर हम चाहते हैं, कि दुनिया बेहतर बनती रहे, बदलती रहे, तो असहमति के विचारों के बिना संभव नहीं है.
इंसान में विचारों की शक्ति
डॉ.जितेंद्र नारायण टंडन, सुप्रसिद्ध बालरोग विशेषज्ञ ने अपने पिता की स्मृति में आयोजित इस व्याख्यान में उनको स्मरण करते हुए कहा कि आजादी के साथ ही हमारी विचार की आजादी ही मनुष्यता की पहचान है। वो विचार की आजादी है जो लगातार अपने नए सोपानों को तय करती है। उन्होंने कहा कि विचार किसी बुलबुला की तरह से है मस्तिष्क के न्यूरोन से लेकर न्यूरोट्रांसमिटर से होते हुए तरंग उठती हैं और विचार आते हैं। हल्के शब्दों में कहें तो इंसान हंसता है गधा हंसता है हंसता भी है तो उसे पता नहीं।कहा कि कि 80 के दशक में जब हम छात्र थे, जब कोई कहता था कि वह आजाद ख्याल का है तो उसकी छवि को लेकर तमाम तरह के विचार आते थे। मगर अब ऐसा नहीं है अब तो समलैंगिक विवाह पर भी विचार चल रहा है। राजनैतिक संदर्भों में देखें तो विचारों की आजादी से हंगामा मचा हुआ है, संसद सदस्यता समाप्त कर दी गई। हंगामे के चलते संसद का सत्र बिना चर्चा के निकल जाता है। फिल्मों के पोस्टर जलाए जा रहे हैं। चप्पल और स्याही फेंकी जा रही है। जबकि भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में प्रत्येक नागरिक को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करने के साथ ही संविधान के पहले संशोधन अधिनियम, 1951 द्वारा लोक व्यवस्था शब्दावली को राज्य की सुरक्षा के उद्देश्य से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर र्निबधन लगाने वाले एक आधार के रूप में अनुच्छेद 19(2) में शामिल किया गया, लेकिन संविधान में इसे परिभाषित नहीं किया गया है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता देश के जाने माने गीतकार डॉ सोम ठाकुर जी ने की। कार्यक्रम में पार्टी का प्रतिनिधित्व जिला मंत्री पूरन सिंह जी किया व संचालन रंगकर्मी डॉ विजय शर्मा ने किया। इस अवसर पर भावना जितेंद्र रघुवंशी, सरला जैन डॉ रमेश चंद्र शर्मा, डॉ श्री भगवान शर्मा, डॉ सुनील शर्मा, शिरोज से आशीष मिश्रा, रामभरत उपाध्याय नीरज मिश्रा, अमीर अहमद साब, रमेश पंडित , नीतू दीक्षित, भारत सिंह, अनिल शर्मा, डॉ आनंद राय, एम पी दीक्षित आदि उपस्थित थे।