
ऑपरेशन शुरू करने से पहले ही म्यांमार की सीमा के पांच किमी अंदर तक के क्षेत्र को एयरफोर्स व सेना ने अच्छी तरीके से समझ लिया था, ताकि किसी भी आपात स्थिति से निपटने को सैन्य कार्रवाई की जा सके। ध्रुव हेलीकाप्टर से 21 पैरा (स्पेशल फोर्स) के 70 कमांडोज ने म्यांमार की सीमा में छलांग लगाई थी। हर कमांडोज नाइट विजन कैमरों और अत्याधुनिक हथियारों से लैस थे। इनमें असॉल्ट राइफल, हैंड ग्रेनेड, राकेट लॉन्चर प्रमुख थे। ऑपरेशन में बाधा भी आई। हेलीकॉप्टर से छलांग लगाने के बाद हवा तेज चलने लगी। जमीन से करीब 500 फीट की ऊंचाई। पैराशूट संभालने के साथ ही हथियारों का भार। काम आसान नहीं था, क्योंकि हवा की रफ्तार काफी तेज थी। ऐसे में आसमान से जमीन पर बैठे दुश्मनों पर निशाना साधना कठिन हो रहा था, लेकिन स्पेशल कमांडोज ने हर मुश्किल का डटकर सामना किया। 40 मिनट तक गोलियों और बमों की ऐसी बरसात की कि कई आतंकी ढेर हो गए।
इसके लिए नाइट विजन कैमरे व अन्य उपकरणों की मदद ली गई। फिर पैराशूट को सही स्थिति में लाने के साथ ही फायरिंग के लिए खुद को तैयार किया। ऑर्डर मिलते ही जांबाजों ने 40 मिनट तक आसमान से ही गोलियों और बमों की बरसात की। कार्रवाई को बेहद प्रोफेशनल अंदाज में अंजाम दिया गया। करीब पांच किमी क्षेत्र में गोलियों की बौछार हुई। इसके बाद अभियान पूरा करने की जानकारी अफसरों को दी।
ऑपरेशन के दौरान स्पेशल कमांडोज की सुरक्षा का जिम्मा सेना व एयरफोर्स ने संभाल रखा था। उन्हें किसी भी हमले या खतरे से बचाने के लिए एक एमआइ 17 हेलीकॉप्टर गश्त लगा रहा था, ताकि किसी भी स्थिति का सामना किया जा सके।
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