Agra Lok Sabha Election: Agra’s first MP Seth Achal Singh, won five consecutive times, know about them…#agranews
आगरालीक्स… आगरा संसदीय सीट का 73 साल का इतिहास काफी रोचक। आगरा के पहले सांसद सेठ अचल सिंह लगातार पांच बार चुने गए। जानें किससे हुई भिड़ंत..
पहला चुनाव 1951 सेठजी की टक्कर केडी पालीवाल से
आगरा संसदीय सीट का पहला चुनाव 1951 में हुआ, जिसमें सेठ अचल सिंह कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरे, उनके मुकाबले में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में कृष्ण दत्त पालीवाल चुनाव मैदान में उतरे। सेठ अचल सिंह को 102181 मत मिले, जबकि पालीवाल 45882 मत ही प्राप्त कर सके।
दूसरे चुनाव में कृष्णदत्त पालीवाल ने ही दी टक्कर
वर्ष 1957 के चुनाव में कांग्रेस से सेठ अचल सिंह चुनाव मैदान में उतरे तो श्रीकृष्ण दत्त पालीवाल ने एक बार फिर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उन्हें कड़ी टक्कर दी।
1962 के चुनाव में मुस्लिम प्रत्याशी से रही टक्कर
वर्ष 1962 के चुनाव में सेठ अचल सिंह का मुकाबला आरपीआई के हाजी हैदरबख्स से हुआ। सेठ अचल सिंह को 1.28 लाख वोट और हैदरबख्श को 74 हजार वोट मिले।
अचल को नहीं हिला सके हीरोरानी और सिंघल भी
वर्ष 1967 के चुनाव में सेठ अचल सिंह इस बार बीजेएस प्रत्याशी हीरोरानी को हराकर विजयी हुए। अचल सिंह को 95828 और रैनी को 68095 मत प्राप्त हुए। आगरा के संसदीय चुनाव 1971 के आते-आते स्थितियां काफी बदल चुकी थीं। कांग्रेस के प्रभाव से हटकर अन्य राजनीतिक दल अपनी अलग पहचान बनाने लगे थे। इ स पर सेठ अचल सिंह फिर कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में उतरे और उनका मुकाबला बीकेडी के बाबू लाल सिंघल से हुआ, जीत फिर सेठजी की हुई, उन्हें 1,60242 वोट मिले तो सिंघल को 47181 मत ही प्राप्त कर सके।
सेठ अचल सिंह एक परिचय
सेठ अचल सिंह पांच मई 1895 को सेठ प्रीतम मल के घर जन्मे थे। 1918 से 1977 तक सक्रिय राजनीति में रहे।
कांग्रेस का चुनाव चिह्न दो बैलों की जोड़ी
कांग्रेस ने अपना पहला चुनाव चिह्न हल जोतते दो बैलों की जोड़ी को रखा था और यह चुनाव चिह्न कई संसदीय चुनावों तक रहा। बाद में कांग्रेस का विभाजन होने पर गाय-बझड़ा और कांग्रेस आई बनने के बाद हाथ चुनाव चिह्न हुए।
नुक्कड सभाएं, जनसंपर्क ही प्रचार, जवाहर पुल बनवाया
चुनाव के दौरान उस समय बड़ी रैलियां और रोड शो नहीं हुआ करते थे, जमाना सिर्फ प्रचार और नुक्कड़ सभाओं का था, जिसके जरिये ही उन्होंने सफलता हासिल की। उन्होंने आगरा में यमुना नदी पर जवाहर पुल का भी निर्माण करवाया था।