Agra News: Agra’s Prof. Anuradha made earth ball, wherever you throw it, a plant will grow there…#agranews
आगरालीक्स… अर्थ बॉल में बंद जिंदा पेड़, आगरा कीं प्रो. अनुराधा जो ऑक्सीजन बांट रही हैं, वे 2013 से ऐसी गेंदें बना रही हैं जिन्हें कहीं भी फेंकें पेड़ उग आते हैं, 600 छात्रों को भी इस महान काम में पारंगरत कर दिया है, आईए जानते हैं इनके बारे में
‘मेरा नाम डॉ. अनुराधा चौहान है। मैं पेशे से शिक्षिका हूं लेकिन मेरा मकसद पर्यावरण को बचाना है। क्या आप नहीं चाहेंगे धरती को हरा—भरा बनाना ?’ पारिजात संस्था कीं अध्यक्ष प्रो. अनुराधा चौहान अपने द्वारा तैयार किए ऑक्सीजन बॉम्ब के बारे में बताने लगती हैं जिन्हें अर्थ बॉल, सीड बॉल, सीड बॉम्ब और नेन्डो डेंगो भी कहा जाता है।
डॉ. अनुराधा कहती हैं कि बहुत लम्बे समय से प्रकति से खिलवाड़ और नुकसान को देखती—सुनती आ रही थीं। ऐसे में कहीं न कहीं मन में पर्यावरण के प्रति कुछ न कर पाने की कसक थी। इसी कसक को दूर करने के लिए वर्ष 2013 में ऑक्सीजन बॉम्ब बनाने का ख्याल मन में आया। पहले घर में आने वाले फल और सब्जियों के बीजों को इकठ्ठा करके ऑक्सीजन बॉम्ब या सीड बॉल बनाना शुरू किया। इसके लिए पानी, खाद और चिकनी मिट्टी की गेंदें बनाकर उनके भीतर विभिन्न प्रजातियों के बीज डाले गए। इसके बाद इन्हें धूप में सुखाया गया ताकि जहां फेंका जाए वहीं मिट्टी में टिक सकें। प्रयोग के तौर पर इन तैयार ऑक्सीजन बॉम्ब या सीड बॉल को बरसात से पहले कई मिट्टी वाली खाली जगह पर फेंका गया और कुछ ही दिन में यह बीज पौधे बनकर अंकुरित होने लगे। जहां तक सीड बॉम्ब की बात की जाए तो सीड बॉम्ब बनाने की शुरुआत 1930 के दशक में एक जापानी प्राकृतिक किसान और दार्शनिक मसानोबु फुकुओका द्वारा बंजर और कम उपयोग वाली भूमि को फिर से हरा भरा बनाने के लिए किया था।
बता दें कि डॉ. अनुराधा पारिजात संस्था कीं अध्यक्ष होने के साथ—साथ पेशे से शिक्षिका भी हैं। वे कई विश्विद्यालयों से सम्बद्ध होकर छात्रों को बोटनी, बायोटेक और माइक्रोबायोलॉजी पढ़ाती हैं और 600 से अधिक छात्रों को भी इस काम में पारंगत बना चुकी हैं। दो अन्य शिक्षिकाएं भी इस काम में उनको सहयोग प्रदान कर रही हैं। डॉ. अनुराधा कहती हैं कि उन्होंने इसे ऑक्सीजन बॉम्ब नाम दिया क्योंकि आते—जाते खाली स्थानों पर बस यूं ही उछाले गए यह बीज अंकुरित होकर जब पौधे और फिर पेड बनते हैं तो हजारों लाखों लोगों को ऑक्सीजन देते हैं। वैसे तो इन गेंदों को आप कभी भी फेंक सकते हैं लेकिन सबसे बेहतर समय मानसून होता है। कहीं पार्क में जाते समय, किसी यात्रा के समय जब हम इन गेंदों को साथ रखते हैं तो खाली स्थानों पर या रोड किनारे कहीं भी फेंक सकते हैं। यह बहुत ही आसान तकनीक है जिससे आप पर्यावरण और हरियाली को बढ़ावा दे सकते हैं। इसे गुरिल्ला बागवानी भी कहा जाता है।