Agra news: Bhishmashtami Tomorrow: Freedom from Pitridosh by keeping fast, getting a worthy child, celibacy is also important in life
आगरालीक्स… भीष्माष्टमी व्रत कल है। इस व्रत से पितृदोष से मुक्ति, संतान प्राप्ति व ब्रह्मचर्य जीवन के लिए बहुत महत्व रखता है। जानिये क्या है विशेषता।
भीष्म पितामह ने शरीर त्यागा था
श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान एवं गुरु रत्न भण्डार वाले ज्योतिषाचार्य पंडित पंडित हृदय रंजन शर्मा के बताते हैं कि माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भीष्माष्टमी व्रत किया जाता है। इस दिन भीष्म पितामह ने अपना शरीर त्याग था।
तपर्ण से होता है पापों का नाश
भीष्म अष्टमी के दिन तिल, जल और कुश से भीष्म पितामह के निमित्त तर्पण किया जाता है. जिससे मनुष्य के सभी पापों का विनाश हो होता है, पितृदोष से मुक्ति मिलती है और सुयोग्य संतान की प्राप्ति होती है। इसके प्रभाव से मनुष्य मोक्ष को प्राप्त होता है। भीष्म पितामह ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया। महाभारत की गाथा में भीष्म पितामह का सबसे महत्वपूर्ण पात्रों में से एक थे।
सूर्य को अर्घ्य देकर करें दान-पुण्य
-इस दिन पवित्र नदी में स्नान,दान करने से पुण्य प्राप्त होता है। इस दिन जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए।
भीष्म तर्पण
💥 भीष्मजी को अर्घ्य देने से पुत्रहीन को पुत्र प्राप्त होता है, जिसको स्वप्नदोष या ब्रह्मचर्य सम्बन्धी तकलीफें हैं, उनका भीष्मजी को अर्घ्य देने से ब्रह्मचर्य सुदृढ़ बनता है। हम सभी साधकों को इन पांच दिनों में भीष्मजी को अर्घ्य जरूर देना चाहिए और ब्रह्मचर्य रक्षा के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
🍁 भीष्म तर्पण के लिए निम्न मन्त्र शुद्धभाव से पढ़कर तर्पण करना चाहिए।
तर्पण मंत्र
🔥 सत्यव्रताय शुचये गांगेयाय महात्मने।
भीष्मायेतद् ददाम्यर्घ्यमाजन्म ब्रह्मचारिणे ।।
💥 अर्थ आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले परम पवित्र सत्यव्रत पारायण गंगानन्दन महात्मा भीष्म को मैं अर्घ्य देता हूँ।
🔥 जो मनुष्य निम्नलिखित मंत्र द्वारा भीष्म जी के लिए अर्घ्यदान करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
अर्घ्य मंत्र
🔥वैयाघ्रपद गोत्राय सांकृत्यप्रवराय च ।
अपुत्राय ददाम्येतदुदकं भीष्मवर्मणे ।।
वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च ।
अर्घ्यं ददानि भीष्माय आजन्म ब्रह्मचारिणे ।।
अर्थ-जिनका गोत्र व्याघ्रपद और सांकृतप्रवर है, उन पुत्र रहित भीष्म जी को मैं जल देता हूँ. वसुओं के अवतार, शान्तनु के पुत्र, आजन्म ब्रह्मचारी भीष्म को मैं अर्घ्य देता हूँ. जो भी मनुष्य अपनी स्त्री सहित पुत्र की कामना करते हुए भीष्म पंचक व्रत का पालन करता हुआ तर्पण और अर्घ्य देता है. उसे एक वर्ष के अन्दर ही पुत्र की प्राप्ति होती है. इस व्रत के प्रभाव से महापातकों का नाश होता है.
अर्घ्य देने के बाद करें श्री हरि की पूजा
💥अर्घ्य देने के बाद पंचगव्य, सुगन्धित चन्दन के जल, उत्तम गन्ध व कुंकुम द्वारा सभी पापों को हरने वाले श्री हरि की पूजा करें. भगवान के समीप पाँच दिनों तक अखण्ड दीप जलाएँ. भगवान श्री हरि को उत्तम नैवेद्य अर्पित करें. पूजा-अर्चना और ध्यान नमस्कार करें. उसके बाद “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” मन्त्र का 108 बार जाप करें. प्रतिदिन सुबह तथा शाम दोनों समय सन्ध्यावन्दन करके ऊपर लिखे मन्त्र का 108 बार जाप कर भूमि पर सोएं. व्रत करते हुए ब्रह्मचर्य का पालन करना अति उत्तम है।
मोझ की कामना से व्रत करें
शाकाहारी भोजन अथवा मुनियों से प्राप्त भोजन द्वारा निर्वाह करें और ज्यादा से ज्यादा समय विष्णु पूजन में व्यतीत करें. विधवा स्त्रियों को मोक्ष की कामना से यह व्रत करना चाहिए।
💥पूर्णमासी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएँ तथा बछड़े सहित गौ दान करें. इस प्रकार पूर्ण विधि के साथ व्रत का समापन करें।
भीष्म पंचक व्रत
पांच दिनों का यह भीष्म पंचक व्रत-एकादशी से पूर्णिमा तक किया जाता है. इस व्रत में अन्न का निषेध है अर्थात इन पाँच दिनों में अन्न नहीं खाना चाहिए. इस व्रत को विधिपूर्वक पूर्ण करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं तथा सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।