Agra News: Senior Citizens came out from Isolation Syndrome by doing job…#agranews
आगरालीक्स…आगरा में बुजुर्ग आइसोलेशन सिंड्रोम से कुछ इस तरह निकल रहे बाहर. वैसे तो रिटायरमेंट आराम का नाम है फिर 60 के बाद जाॅब क्यों?, जानिए
आगरा में बुजुर्ग नौकरियां तलाश रहे हैं। रिटायरमेंट के बाद वे संबंधों को आजमा रहे हैं कि शायद कोई छोटा-मोटा काम मिल जाए। इस बीच मौका मिला है। मीनिंगफुल जाॅब, 60 के बाद अब वे खुद को बेकार नहीं समझेंगे, न तो घरवालों के ताने मिलेंगे और न ही अकेलापन काटेगा।
अलग-थलग, जोखिम में, चिंतित और अकेले रहते हैं
हिन्दुस्तान काॅलेज आॅफ मैनेजमेंट एंड कंप्यूटर स्टडीज के निदेशक डाॅ. नवीन गुप्ता मैनजमेंट कंसल्टेंट होने के साथ ही बिहेवियर साइंटिस्ट भी हैं। वे आगरा में सोल्जर्स आॅफ सोसायटी (एसओएस) के संचालक हैं। यह संस्था आॅटो रिक्शा चालकों को ईमानदारी, नेकी और दरियादिली के साथ काम करने के अलावा कई प्रकल्प चलाती है। डाॅक्टर्स,प्रोफेसर्स इंजीनियर्स, प्रबुद्धजीवी, एमबीबीएस व अन्य छात्र भी इस संस्था से जुड़कर तमाम सेवा कार्य और प्रोजेक्ट चला रहे हैं। डाॅ. गुप्ता ने बताया कि उन्होंने हाल ही में क्लब 60 प्लस नाम से एक समूह बनाया है। इसका विचार पनपने के पीछे की वजह यह रही कि हाल ही में कई सीनियर सिटीजन्स उनसे ऐसे टकराए हैं जिसमें वे कुछ रोजगार चाहते हैं। इसे समझने की जरूरत है। ऐसा माना जाता है कि रिटायरमेंट आराम का नाम है फिर बुजुर्गों को आराम करने की उम्र में आखिर काम क्यों चाहिए। डाॅ. गुप्ता बताते हैं कि इसकी कई वजह हैं। कुछ बुजुर्ग ऐसे हैं जिनके बच्चे पढ़ाई-लिखाई के बाद विदेशों या दूसरे शहरों में जा बसे हैं और खास मौकों पर ही घर वापस आते हैं। कई ऐसे भी हैं जिनके भरे पूरे परिवार हैं लेकिन फिर भी बेकदरी के शिकार हैं, क्योंकि घर में कोई उनसे बात नहीं करता। कई जगह बुजुर्गों को कमजोर, बेकार और बेचारा समझा जाता है। कई जगह सम्मान का अभाव होता है और ताने-बाजी की जाती है। कईयों के साथ अब उनके जीवनसाथी भी नहीं हैं। ऐसे में अकेलापन हावी होने लगता है।

भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य पर असर
डाॅ. गुप्ता बताते हैं कि कई अध्ययनों के मुताबिक बुजुर्ग लोग उंचे स्तर के अकेलेपन के शिकार होते हैं। ज्यादा समय समाज से अलग-थलग रहने की वजह से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। इसमें डिप्रेशन, चिंता, बहुत शराब पीना, मस्तिष्क क्रिया बिगड़ना और डिमेंशिया शामिल है। कोविड काल मेें हम जिस दौर से गुजरे हैं, अगर सही मायने में देखें तो बुजुर्गों ने हमसे अधिक समझौते किए हंै। घर तक सीमित हो जाने पर, खासकर जब आप अकेले रह रहे हों और आपकी न तो कोई नियमित दिनचर्या है और न ही लोगों से संपर्क है तो आपके भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है।
‘कम्युनिटी कनेक्टर्स’ की तरह काम करेंगे
इन सभी बातों के मद्देनजर आगरा में छात्रों की मदद से एक सर्वे शुरू हुआ है। कम्युनिटी कनेक्टर्स के जरिए सीनियर सिटीजन्स को उनके परिवार, दोस्तों और पड़ौसियों से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। वहीं 60 प्लस क्लब समूह बनाया गया है, जिसमें 60 साल से उपर के बुजुर्ग हैं। दो तरह के लोग हैं एक वो जो मदद कर सकते हैं, दूसरे वो जिनको मदद चाहिए। जो मदद कर सकते हैं वे बुजुर्गों को कोई काम देकर, फंड देकर या अलग-अलग माध्यमों से मदद कर रहे हैं जबकि जिन्हें मदद चाहिए उन्हें उनके मन मुताबिक रोजगार दिया जाने की कोशिश है। यह ऐसे जाॅब हैं जो मीनिंगफुल भी हैं। अधिकांश बुजुर्ग चाहते हैं कि गुजारा तो पेंशन से भी चल जाता है लेकिन कोई काम ऐसा हो जिसमें देश सेवा भी हो। इन हालातांे में एक टीम बनाई गई है जिसका नेतृत्व वरिष्ठ अधिवक्ता योगेंद्र तिवारी, दिनेश चंद बंसल, अखिलेश चंद्र, मानवेंद्र सिंह सिकरवार कर रहे हैं। एसओएस टिफिन सर्विस, एसओएस बाजार, एसओएस स्कूल एजूकेशन, एसओएस एनवायरमेंट, एसओएस भोजनालय, एसओएस ओल्ड एज हैल्थ, एसओएस ई-रिक्शा, एसओएस ट्रैफिकफिक मैनजमेंट या एसओएस विकल्प जैसे प्रोजेक्टों से जोड़ा जा रहा है।