Anang Trayodashi fasting gives happiness and enjoyment, marriage is also possible
आगरालीक्स… अनंग त्रयोदशी व्रत कल सोमवार को है। यह व्रत विवाह योग बनाने सहित सभी सुख-भोग प्रदान करने वाला है। जानिये क्या है महत्व
शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को रखा जाता है व्रत

श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान एवं गुरु रत्न भंडार वाले ज्योतिषाचार्य पंडित हृदय रंजन शर्मा बताते हैं कि अगहन माह में अनंग त्रयोदशी का व्रत शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को किया जाता है, जो इस बार 5 दिसंबर को है। अनंग त्रयोदशी का व्रत सबसे पहले कामदेव ने किया था।
♦ हर व्रत का होता है अलग विधान
🍁 हिंदू धर्म में हर तरह के सुख, संपत्ति, ऐश्वर्य व मोक्ष प्राप्ति के लिए अलग-अलग व्रत का विधान है। इनमें एक व्रत रूप और सौंदर्य प्राप्त कर विवाह योग बनाने सहित सभी सुख- भोग प्रदान करने वाला अनंग त्रयोदशी व्रत भी है, जो मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है।
कामदेव ने इसी व्रत से शिव को किया था प्रसन्न
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, तपस्या भंग करने आए कामदेव को जब भगवान शंकर ने भस्म कर दिया तो वह अनंग होकर सब के शरीर में निवास करने लगे, तब कामदेव ने भी इसी व्रत से भगवान शंकर को प्रसन्न किया था, तभी से ये व्रत अनंग त्रयोदशी कहलाया।
सौभाग्य के साथ प्राप्त होती है शिवलोक की प्राप्ति
भविष्यपुराण के अनुसार जो इस व्रत को विधिपूर्वक करता है उसे आयु, बल, यश, सौभाग्य और सभी सुखों के साथ अंत समय में शिवलोक की प्राप्ति होती है।
इंद्रियों पर नियंत्रण कर शशिशेखर की पूजा
इस दिन व्रतकर्ता को स्नान कर इंद्रियों पर नियंत्रण रखते हुए भगवान शंकर की ‘शशिशेखर’ नाम से पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य और फलों से पूजा करनी चाहिए।तिल व चावल से हवन कर एक समय भोजन करते हुए रात को शहद का सेवन करना चाहिए। मान्यता है कि इससे व्यक्ति कामदेव के समान सुंदर हो, 10 अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त करता है।
इस तरह से की जानी चाहिए पूजा
पौष (पूस) से कार्तिक मास की व्रत इसके बाद पौष शुक्ल त्रयोदशी में भगवान शंकर का ‘योगेश्वर’ नाम से पूजन कर चंदन, माघ मास की त्रयोदशी को‘महेश्वर’ नाम से पूजन कर व्रती को मोती के चूर्ण का सेवन करना चाहिए. फाल्गुन त्रयोदशी में शिव की ‘हरेश्वर’ नाम से पूजा कर कंकोल, चैत्र त्रयोदशी में ‘सुरूपक’ नाम से शिव पूजन कर कर्पूर, वैशाख त्रयोदशी में ‘महारूप’ नाम से पूजन कर जायफल, ज्येष्ठ में ‘प्रद्युम्न’ नाम से पूजन कर लौंग, आषाढ़ में ‘उमाभर्ता’ नाम से पूजन कर तिलोदक, श्रावण मास में ‘उमापति’ नाम से पूजन कर तिल, भाद्रपद मास में ‘सद्योजात’ नाम से पूजा कर अगरु, अश्विनी त्रयोदशी पर ‘त्रिदशाधिपति’ नाम से पूजा कर स्वर्णोदक तथा कार्तिक मास की त्रयोदशी को भगवान शिव का ‘विश्वेश्वर’ नाम से पूजन कर व्रतकर्ता को दमन फल का सेवन कर करना चाहिए।
सालभर के व्रत के बाद यह करें
इस तरह सालभर व्रत के बाद उसकी समाप्ति करनी चाहिए,जिसमें कलश स्थापित कर उसके ऊपर ताम्रपत्र और ऊपर शिव प्रतिमा स्थापित करें, ऊपर सफेद वस्त्र आच्छादित करें, फिर उसका पूजन कर उसे शिवभक्त ब्राह्मणों को प्रदान कर अपनी इच्छानुसार गाय, छाता तिल खोवे की मिठाई, तिल की गजक, रेवड़ी ,मूंगफली आदि दान करें