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Balram Jayanti tomorrow, do not drink cow’s milk and curd#agranews

आगरालीक्स(26th August 2021 Agra News)…कल मनाई जाएगी बलराम जयंती। इस पर्व को हरछठ के नाम से भी जाना जाता है। गाय का दूध व दही खाना होता है वर्जित। पुत्र की दीर्घायु और संतान की बीमारी दूर करने को रखा जाता है व्रत। पुराणों में है मान्यता।

धरती से पैदा होने वाले अन्न को खाना होता है वर्जित
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी बलराम जन्मोत्सव के रूप में देशभर में मनायी जाती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार मान्यता है कि इस दिन भगवान शेषनाग द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई के रुप में अवतरित हुए थे। इस पर्व को हलषष्ठी एवं हरछठ के नाम से भी जाना जाता है। अलीगढ़ के ज्योतिषाचार्य पंडित हृदय रंजन शर्मा ने बताया कि मान्यता है कि बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल और मूसल है, जिस कारण इन्हें हलधर कहा जाता है। इन्हीं के नाम पर इस पर्व को हलषष्ठी के भी कहा जाता है। इस दिन बिना हल चले धरती से पैदा होने वाले अन्न, शाक भाजी आदि खाने का विशेष महत्व माना जाता है। गाय के दूध व दही के सेवन को भी इस दिन वर्जित माना जाता है। साथ ही संतान प्राप्ति के लिये विवाहिताएं व्रत भी रखती हैं।#agranews

भगवान कृष्ण के बड़े भाई थे
पंडित हृदय रंजन शर्मा ने बताया कि बलराम के बारे में हम सभी इतना जानते हैं कि वो भगवान कृष्ण के बड़े भाई थे, लेकिन पौराणिक ग्रंथों में बलराम का चित्रण केवल इतना ही नहीं है। #agraleaks

क्यों रखते हैं बलराम जयंती का व्रत
हिन्दू पंचांग के अनुसार, भादो मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को बलराम जयंती का यह शुभ पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन जो कोई भी महिला सच्चे मन से व्रत और पूजा आदि करती है तो इस व्रत के प्रभाव से उनकी संतान को दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। नि:संतान दंपति यदि इस दिन व्रत करते हैं तो उन्हें संतान सुख की प्राप्ति अवश्य होती है। इसके अलावा निसंतान महिलाएं भी इस दिन संतान प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। #agraleaks.com

संतान की बीमारी को दूर करने को रखा जाता है व्रत
इतना ही नहीं अगर किसी की संतान आये-दिन बीमार रहती है तो उन्हें भी बलराम जयंती का व्रत रखने की सलाह दी जाती है। प्राचीन समय से चली आ रही एक मान्यता है कि, जब भी किसी बच्चे का जन्म होता है तब पहले दिन से लेकर 6 महीने तक छठी माता ही सुक्ष्म रूप से बच्चे की देखभाल करती है। इसलिए तो बच्चे के जन्म के छठवें दिन छठी माता की पूजा भी की जाती है।#balramjayanti

27अगस्त को पूजा समय, शुभ मुहूर्त
षष्ठी तिथि शुरू : सायं 06 बजकर 48 मिनट (27अगस्त 2021)
षष्ठी तिथि ख़त्म :रात्रि 08 बजकर 56 मिनट (28 अगस्त 2021)

बलराम जयंती पूजन विधि
बलराम जयंती का यह पर्व श्रावण पूर्णिमा, रक्षा बंधन के ठीक छह दिनों के बाद मनाया जाता है। बलराम जयंती को ललही छठ, बलदेव छठ, रंधन छठ, हलछठ, हरछठ व्रत, चंदन छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। इसी दिन धरती को धारण करने वाले शेषनाग जी ने भगवान बलराम के रूप में धरती पर अवतार लिया था। ऐसे में इस दिन बलराम जी की विशेष पूजा किये जाने का विधान है।

इस दिन की जाने वाली पूजा की विधि
किसी भी अन्य व्रत-पूजन की तरह इस दिन भी प्रातः काल उठें, और फिर नित्य कार्यों से निवृत होकर स्नान करें और फिर व्रत का संकलप लेना चाहिए। आमतौर पर यह व्रत पुत्रवती स्त्रियां ही करती है।
इस दिन का व्रत महिलाएं अपने पुत्रों की रक्षा और उनके मंगल स्वास्थ्य की कामना के लिए रखती हैं।
इस दिन की पूजा में बलराम जी के साथ-साथ हल भी पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन हल के द्वारा बोया हुआ अन्न, सब्जियां आदि का खाने में प्रयोग नहीं करना चाहिए। इस दिन खाने में विशेषकर भैंस के दूध का प्रयोग किया जाता है। इस दिन निराहार व्रत रखने का विधान है।

पूजा में ज़रूर करें इन चीज़ों को शामिल
इसके अलावा इस दिन की पूजा में कुछ चीज़ों को अवश्य शामिल किया जाना चाहिए। कहा जाता है कि इससे संपूर्ण फल की प्राप्ति होती है। अब जान लीजिये क्या हैं वो चीज़ें-
महुआ का पत्ता, तालाब में उगा हुआ चावल, (तिन्नी का चावल), भुना हुआ चना, घी में भुना हुआ महुआ, अक्षत, लाल चंदन, मिट्टी का दीपक, भैंस के दूध से बनी दही तथा घी। इसके अलावा सात प्रकार के अनाज, धान का लाजा, हल्दी, नया वस्त्र, जनेऊ और कुश भी पूजा में प्रयोग किये जाने चाहिए।

बलराम जयंती व्रत कथा
बलराम जयंती के बारे में प्रचिलित कथा के अनुसार बताया जाता है कि, जब कंस को इस बात की जानकारी मिली कि वासुदेव और देवकी की संतान ही उसकी मृत्यु की वजह बनने वाली है तो उसने उन दोनों को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया और फिर एक-एक करके उनकी सभी छह संतानों का वध कर दिया। इसके बाद जब देवकी सातवीं बार मां बनने वाली थीं, तब नारद मुनि ने उन्हें हलषष्ठी माता की व्रत करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि ऐसा करने से उनकी अजन्मी संतान को कंस से बचाया जा सकता है। नारद मुनि की बात मानकर देवकी ने हलषष्ठी देवी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से भगवान ने योगमाया से कह कर देवकी के गर्भ में पल रहे बच्चे को वासुदेव की बड़ी रानी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया। ऐसा करने से खुद कंस भी धोखा खा गया और उसे लगा कि उसने देवकी के सातवें पुत्र को भी मार डाला है। उधर दूसरी तरफ रोहिणी के गर्भ से भगवान बलराम का जन्म हुआ। इसके बाद देवकी के गर्भ से आठवें पुत्र के रुप में श्री कृष्ण का जन्म हुआ। माना जाता है कि देवकी के व्रत करने से ही दोनों पुत्रों की रक्षा हुई और तभी से इस व्रत का महात्म्य माना गया है

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