आगरालीक्स ..आगरा में विशेषज्ञों ने कहा कि भारत जैव विविधता में बहुत धनी है। जहां जीव जन्तुओं के लिए हिमालय से लेकर तपते रेगिस्तान, पश्चिमी घाट, वर्षा वन, ग्रासलैंड, वेटलैंड, सुन्दर वन और समुन्द्री क्षेत्र महत्वपूर्ण हेबिटॉट (जीवों के रहने का स्थान) मौजूद हैं। लेकिन लगातार घट रही जैव विविधता को हम बचाना चाहते हैं तो हमें जीव जन्तुओं के इन खास निवासों को भी बचाना होगा। हर विशेष क्षेत्र के हेबिटॉट में जीव जन्तुओं की एक अलग दुनिया होती है। जिसे प्रदूषण, बढञता चकटा और प्लास्टिक नष्ट कर रहे हैं।
यह कहना था फोन्टिस यूनिवर्सिटी नीदरलैंड के डॉ. जेन हरमन्स का। बायोडायवर्सिटी एंड रिसर्च एंड डवलपमेंट सोसायटी इंडिया द्वारा जगदम्बा डिग्री कॉलेज में आयोजित कार्यशाला का शुभारम्भ मां सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप जलाकर करते हुए उन्होंने कहा कि जो जैस विविधता भारत में है और किसी देश में नहीं। इसे संजोए रखना हमारा फर्ज है। जगदम्बा डिग्री कॉलेज के निदेशक डॉ. पीके सिंह ने कहा कि बिना प्लानिंग के हो रहे डवलपमेंट के कारण पर्यावरण में असंतुलन पैदा हो रहा है। जीव जन्तुओं के निवास खत्म होने से जैव विविधता पर खतरा बढ़ रहा है। ड्रेगन फ्लाई सोसायटी ऑफ इंडिया के सचिव धीरेन्द्र सिंह, श्रवण कुमार व रंजन शर्मा ने भी अपने विचार रखे। डीईआई की रिसर्च स्कॉलर रिचा शर्मा ने बताया कि जीव जन्तु हमारे घरों में नहीं बल्कि हम उनके आवास छींकर उनके घरों में घुस रहे हैं। संचालन डॉ. जया सक्सेना ने किया।
स्थानीय पौधों को दें महत्व
आगरा। कछुओं और घड़ियालों पर काम कर चुके डॉ. अंकुश दबे ने बताया कि पौधारोपण करते समय यह भी ध्यान रखें कि आप किस पौधे को रोपण कर रहे हैं। जीव जन्तुओं को अपने अनुरूप हेबिटॉट न मिलने पर या तो पलायन कर जाते हैं या विलुप्त हो जाते हैं। हम शौक में बाहरी प्रजातियों को महत्व दे रहें हैं, जिसके कारण जैव विविधता घट रही है। कीटों के खत्म होने से परागण की समस्या पैदा हो रही है।
जब गाय भैंस चराने वाले को डॉ. सलीम अली के काम का मिला मौका
आगरा। 1981 में भरतपुर केवला देव में गाय भैंस चराने वाले विजेन्द्र सिंह आज एनवायरमेंटल ट्यूरिस्ट हैं। डॉ. सलीम अली ने उन्हें अपने साथ काम करने का मौका दिया। उन्होंने साइबेरियन क्रेन से लेकर गिद्ध की घटती संख्या के कारणों पर विस्तार से जानकारी दी।