Do you remember Tailor Masterji?, In the era of readymade, tailors are now busy only on special occasions…#agranews
आगरालीक्स…आपको मास्टरजी याद हैं ? हम हर रोज दर्जी की दुकान के चक्कर लगाते थे, जब तक पेंट शर्ट खूंटी पर टंगे नहीं दिख जाते थे, अब रेडीमेड का चस्का है तो टेलर मास्टर खास मौकों पर ही बिजी नजर आते हैं, साल भर दाल-रोटी के लाले पड़ जाते हैं…
आगरा में अगर आप अपना बचपन याद करेंगे तो टेलर मास्टर याद आ जाएंगे। अपने आस-पड़ौस, काॅलोनी या गली में वे दर्जी जो कभी त्योहार की शान हुआ करते थे। कपडे़ सिलवाने के लिए भीड़ रहती थी और मास्टर जी आपका माप ले लें यह बड़ी बात हुआ करती थी। अब समय इतना बदल गया है कि मास्टर जी की दाल-रोटी भी मुश्किल से चल पाती है।
छीपीटोला में रहने वाले आदित्य बताते हैं कि सालों से उन्होंने कपड़े सिलवाकर नहीं पहने हैं, लेकिन इस बार जब वे कपडे़ सिलवाने गए थे। मास्टर जी से बहस हो गई। मन की सिलाई नहीं थी। शर्ट की जेब भी वैसी नहीं थी जैसी वे चाहते थे। कुछ देर गुस्सा भी आया कि कपड़ा खराब कर दिया। मास्टर जी से बहस हो ही रही थी कि गुस्सा शांत होता चला गया। बातों में पता चला कि आजकल कपड़े कौन सिलवाता है। सभी तो शोरूम से खरीद रहे हैं।
बल्केश्वर में एवन टेलर के कैलाशचंद बताते हैं कि ये उनका पुस्तैनी काम है। 40 साल पुरानी दुकान है। पहले बड़े भाई करते थे। 25 साल से वे भी यही कर रहे हैं, लेकिन अब दाल-रोटी निकल आए वही बड़ी बात है। ग्राहक बहुत कम हो गए हैं। सभी रेडीमेड खरीद रहे हैं। पहले की बात अलग थी, त्योहार पर तो फुर्सत ही कहां थी। पहले माप लेने की बात पर झगड़े हो जाते थे। कैलाशचंद जी से पूछा तो पता लगा कि उनके कई साथी यह काम छोड़ दूसरे काम कर रहे हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो बडे़े माॅल में कपडे़ सिलाई और फिटिंग का काम कर रहे हैं। कई बडे़ शोरूम के बाहर आॅल्टर करने का काम कर रहे हैं।
दयालबाग के रहने वाले एक युवा बताते हैं कि करीब 20 साल हो गए होंगे जब उन्होंने दर्जी से कपडे़ सिलवाए हों। रेडीमेड का चस्का लोगों को लग चुका है तो अब टेलर मास्टर खास मौकों पर ही व्यस्त नजर आते हैं। जबकि वे छोटे थे तो काॅलोनी में ही एक दर्जी हुआ करते थे। पिता जी के साथ वहां जाते थे और माप देकर आते थे। इसके बाद रोज जाकर मास्टर जी की जान खाते रहते थे। जब तक शर्ट-पेंट खूंटी पर टंगे नहीं दिखते थे मास्टर जी की जान आफत में रहती थी। अब तो वहां दुकान भी नहीं रही। मास्टर जी अब कहां हैं यह भी नहीं पता।