इंटरनेशनल चिल्ड्रेन फिल्म फेस्टिवल, कोलकाता में 23 दिसंबर को लघु फिल्म ‘अनोखी’ और ‘द विश’ का प्रदर्शन हुआ। जबकि 25 दिसंबर को फिल्म‘पिंकू’, ‘रितू वांट्स टू सी’ और ‘उम्मीद’ दिखाई जाएगी। 27 दिसंबर को ‘आई 4 यू काश’, ‘प्रीती’, और 28 दिसंबर को ‘विनर’, ‘अंकल टेड्डी’ व ‘खुशी’ फिल्म की स्क्रीनिंग होगी।
दृष्टि मुहीम चलाने वाले संगठन अंतरदृष्टि के सीईओ अखिल श्रीवास्तव ने बताया ये सभी फिल्में नेत्रदान को प्रोत्साहित करती हैं। हर साल क्रिएटिव कांटेस्ट के दौरान देशभर से इस विषय पर फिल्मों की एंट्री आती हैं। पिछले सप्ताह 18 व 19 दिसंबर को डॉ. बीआर अंबेडकर विवि, आगरा में हुए ‘दृष्टि 2015’ में ऐसी 16 फिल्मों का प्रदर्शन किया गया था। अंतरदृष्टि संगठन के पास नेत्रदान को बढ़ावा देने का संदेश देने वाली 70 से अधिक फिल्में हैं। इन्हें देशभर में दृष्टि यात्रा के तहत प्रदर्शित किया जाता है। ऐसा पहली बार है कि एक साथ 11 फिल्मों का प्रदर्शन कोलकाता अंतराष्ट्रीय बाल फिल्म फेस्टिवल में किया जा रहा है।
ये हैं फिल्में
‘रितु वांटस टू सी’
रितु, एक सुन्दर सी प्यार सी बच्ची, वो देखना चाहती है। रंगो के साथ खेलना चाहती है। लेकिन वह मजबूर है। हम आप तो देख रहे है, वह नहीं देख सकती। देखेगी भी कैसे, वह तो बचपन से ही हीन है। जी हॉ दृष्टिहीन! डसको कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता, बस छू कर, सूंघ कर, आवाज सुन कर ही चीजो को पहचानने की कोशिश करती है। क्या आप जानते है वह देख सकती है, वह देख सकती है यह बात वह भी जानती है। लेकिन कैसे? दृष्टि 2011 की गोल्डेन आई पुरस्कार विजेता फिल्म ‘रितु वॉन्टस टू सी’ में बड़ी खूबसूरती से बताया गया है कि यदि हम आप चाहे तो रितु और रितु जैसे लाखों लोगों के जीवन रंग भर सकते है। बांग्ला में बनी इस फिल्म का निर्देशन निवेदिता मजमूदार ने किया है। आईये देखते है फिल्म ‘रितु वॉन्टस टू सी’ और समझते है कि कैसे रितु के सपनो को पूरा किया जा सकता है।
‘द विश’
पंख होते तो उड़ जाते ……… मेरा बहुत मन करता है कि काद्गा मै भी उड़ सकती, खूबसूरत दुनिया को उचाई से देख सकती। मै दिन में सपने देखती हू। मेरे पास ये होता,तो वो होता, तो यहा घूमती, ये खाते, तो वो करते ….ब्ला.. ब्ला.. ब्ला… अरे मै क्या आपका भी ऐसे ही मन करता होगा। हम सब की इच्छाएं तो बहुत है कि ये हो जाये.. वो हो जाये.. लेकिन क्या कभी हम लोग दूसरो की इच्छाओं के बारे में भी सोचते है। उनको पूरा करने की कोशिश करते है। मै जानती हू कि इंसान की इच्छाओं की कोई सीमा नहीं होती। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो दिन रात अपनी एक ही विश, यानी इच्छा को पूरी करने के लिए उम्मीद का दामन थामे रहते हैं। और हम आप उनकी इस इच्छा को पूरा भी कर सकते है । कैसे? फिल्म ‘द विश’ बता रही है कि कैसे अपना नुकसान किये बिना दूसरो की इच्छाओं को पूरा किया जा सकता है। आईये देखते है केविन शाह निर्देशित एनीमेशन फिल्म ‘द विश’।
‘खुशी’
आपकी ज़िंदगी में ख़ुशी के कई पल आए होंगे। ऐसे पल जिन्हें याद करके आप अभी भी मुस्कुरा सकते हैं। पर हमारे आस पास कुछ ऐसे लोग हैं जो हंसने-मुस्कुराने की कोशिश तो करते हैं पर वो नाक़ामयाब हो जाते हैं। उनके जीवन में कुछ ऐसी कमी होती है जिसके ग़म में उनकी सारी ख़ुशी ग़ायब हो जाती है। उनका पूरा जीवन उस ख़ुशी को पाने में लग जाता है। कुछ ऐसी ही कहानी है विजय और मनीषा की। ये दंपत्ति एक बच्ची के रूप में ख़ुशी तो पा लेता है लेकिन कितने वक़्त तक ये हमारी इस फ़िल्म में पता चलेगा। नेत्रदान को एक अच्छे कोण से पेश करते हुए देव व्रत मिश्रा की कहानी और उनके डायरेक्शन में तैयार इस फिल्म को आइए आप भी देखिए।
‘आई फार यू’
आप अपनी आंखों पर कुछ देर के लिए पट्टी बांधकर देखिए। हां… सिर्फ़ कुछ देर के लिए। कुछ पलों में आपको भी महसूस हो जाएगा कि आंखों के बिना कुछ भी कर पाना कितना मुश्किल है। सोच कर ही अगर आप इतने परेशान हो उठे है तो उन लोगों के बारे में सोचिए जो अपना पूरा जीवन बिना आंखों के बिताने के लिए मजबूर हैं। लेकिन आप उनकी मजबूरी को दूर कर सकते हैं। जी हां आप ही इस काम को कर सकते हैं। नेत्रदान करके। इसी संदेश पर आधारित है वरूण वीनू की फिल्म आई फॉर यू। जिसमें एक छोटा बच्चा अपनी कोशिशों से निर्जीव से पुतले को भी रोशनी दे जाता है। इस कारनामे को जानने के लिए चलिए देखते हैं ये फिल्म।
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