आगरालीक्स…आगरा में जिस डॉक्टर से चल रहा था इलाज उसने फीस लेने की जगह मरीज को दिए 60 हजार, एक डॉक्टर ने, बिल, नर्सिंग स्टाफ ने सैलरी और समाजसेवी ने दो लाख रुपये दिए…. ‘एक अजनबी मरीज से यूं मुलाकात हो गई’…
डाॅक्टर को धरती का भगवान यूं ही नहीं कहा जाता है। भगवान के बाद अगर जान बचाने की काबलियत किसी और मैं है तो वो हैं डाॅक्टर। ताजा मामला एक सोशल मीडिया पोस्ट से सामने आया है जब एक डाॅक्टर ने मरीज से दोबारा मुलाकात होने पर खुशी जाहिर की। पोस्ट में उन्होंने लिखा किन जटिल परिस्थ्तिियों के बाद इस मरीज को मौत के मुंह से खींचकर वापस लाया गया था।
आगरा का रहने वाला 20 साल का नौजवान, मां-बाप का इकलौटा बेटा और परिवार की आमंदनी का एकमात्र जरिया। बीमारी का इलाज कराने निकला और अनजाने में 10 साल तक स्टेराॅयड खाता रहा। दरअसल जहां उसने दिखाया था वहां क्रोहनस डिजीज बताकर इलाज किया गया। लम्बे समय तक भी दवाएं खाने और इलाज कराने के बाद जब फायदा नहीं हुआ तो कहीं से गेस्ट्रोसर्जन डाॅ. हिमांशु यादव को दिखाने की सलाह दी। युवक जब डाॅ. हिमांशु के पास पहुंचा तो उन्होंने बीमारी का पता एंट्रीक डुप्लीकेशन सिस्ट के रूप में लगाया। तब यक युवक लगभग 10 साल स्टेराॅयड ले चुका था। डाॅ. हिमांशु ने बताया कि लम्बे समय तक स्टेराॅयड लेने पर शरीर पर काफी दुष्प्रभाव पड़ चुके थे। रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कम हो गई थी। साथ ही अवस्कुलर नैक्रोसिस आॅफ हिप भी इन्हीं दुष्प्रभावों में से एक थी। मरीज को बताया गया कि सही समय पर रोग की सही पहचान कर ली जाती तो 10 साल पहले ही सर्जरी संभव थी। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद आखिरकार डाॅ. हिमांशु ने इलाज शुरू किया। कमजोर इम्युनिटी की वजह से छाती का इनफेक्शन ठीक नहीं हो रहा था। इसके चलते काफी वक्त आईसीयू में गुजरा। एक परिस्थिति ऐसी आई जब इलाज कराते-कराते पैसे खत्म हो गए। डाॅ. हिमांशु ने फैसला लिया कि वे मरीज से फीस नहीं लेंगे। उल्टा अपनी जेब से इलाज के लिए 60 हजार रुपए की धनराशि दी। उन्होंने डाॅ. नरेंद्र मल्होत्रा से बात की तो डाॅ. मल्होत्रा ने हाॅस्पिटल बिल पर 50 फीसद डिस्काउंट कर दिया। इलाज अब भी लंबा चलना था। शहर के प्रतिष्ठित कारोबारी एवं समाजसेवी नजीर अहमद से बात की गई, उन्होंने इस मरीज के इलाज के लिए दो लाख रूपये की आर्थिक सहायता प्रदान की। आईसीयू में काम करने वाले स्टाफ ने अपनी सैलरी से तीन-तीन हजार रूपये की सहायता प्रदान की। ड्यूटी डाॅक्टरों ने भी अपनी सैलरी का एक हिस्सा इलाज के खर्च पर दान किया। इसके बाद मरीज को ठीक होने में लगभग एक महीना लगा और स्वस्थ होने के बाद उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।
डाॅ. हिमांशु अपनी पोस्ट में लिखते हैं कि मरीज ठीक होकर अपने घर चला गया था लेकिन जिंदगी की मुश्किलें कम नहीं हुई थीं। उसके पास कोई काम नहीं था ताकि घर चल सके। पिछले दिनों वे एक प्रतिष्ठान में खरीददारी करने गए थे। तभी एक अजनबी नौजवान उनके पास आया और कृतज्ञता जाहिर करते हुए कहने लगा कि सर आपने मुझे पहचाना नहीं। असल में बीमारी की वजह से कमजोर दिखने वाले नौजवान का शरीर ठीक होने के बाद अब भर चुका था। डाॅ. हिमांशु ने अपनी पोस्ट में प्रमुख उद्योगपति नजीर अहमद, वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डाॅ. नरेंद्र मल्होत्रा, इलाज मेें सहयोग करने वाले नर्सिंग स्टाॅफ, ड्यूटी डाॅक्टर्स और दवाओं का खर्च उठाने वाली हेल्प आगरा के प्रति आभार प्रकट किया।