आगरालीक्स…आगरा का ऐतिहासिक और विशाल कैलाश मंदिर मेला 5 अगस्त को. एक ऐसा मंदिर जहां एक साथ हैं दो शिवलिंग. जानिए यहां की विशेषता और इसका रोचक इतिहास
प्राचीन कैलाश महादेव मंदिर की मुख्य विशेषता है कि यहां एक ही जलहरी में 2 शिवलिंग विराजमान है, जोकि स्वयं भगवान परशुराम एवं उनके पिता जमदग्नि ऋषि द्वारा स्थापित हैं। कहा जाता है कि आज से हजारों वर्ष पूर्व भगवान परशुराम एवं उनके पिता आगरा में स्थित रेणुका धाम से कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की पूजा अर्चना करने जाते थे। हजारों वर्ष जब तपस्या कर ली तो भगवान शंकर प्रसन्न हुए और बोले कि हे मुनिवरों, आप हजारों वर्षों से मेरी तपस्या कर रहे हैं तो आप मुझसे क्या वरदान चाहते हैं। इतना सुनते ही भगवान परशुराम और उनके पिता बोले कि हे परमपिता परमेश्वर, हमें संसार में धन की आवश्यकता नहीं और बल की कमी नहीं। बस आप हमारे साथ हमारे स्थान रेणुका धाम पर चलें। हमारा आने जाने में समय व्यर्थ होता है और हमारी मां रेणुका आने में असमर्थ रहती हैं, वह भी आपकी पूजा आराधना कर सकेंगे।
इस पर भगवान शिव बोले कि हे मुनिवरों मैं वन का वासी हूं। पहाड़ों में रहने वाला हूं। मैं आपके साथ नहीं चल सकता लेकिन इस पर्वत कैलाश पर कण-कण में मेरा वास है। जो भी कण लोगे, उसमें मैं विराजमान ही रहूंगा। भगवान परशुराम और उनके पिता ने दो शिवलिंग अलग-अलग लिए और पूजा आराधना करते हुए कैलाश पर्वत से चल दिए। संध्या वंदन का समय हुआ तो कैलाश मंदिर स्थान पर दोनों शिवलिंग को रख दिया। यमुना में स्नान किया। स्नान करने के बाद भगवान शंकर की शिवलिंग की पूजा की और उठाने की कोशिश की, लेकिन शिवलिंग नहीं उठे। उसी वक्त आकाशवाणी हुई हे मुनिवरो मैं अचलेश्वर हूं जिस जगह में एक बार स्थापित हो जाता हूं, वहीं विराजमान हो जाता हूं तो कृपया करके आप इसी स्थान पर पूजा आराधना करने आया करना। तभी से कैलाश मंदिर आगरा में तो शिवलिंग विराजमान है।
आज से करीब 1500 वर्ष पूर्व स्वामी गांव में रहने वाले ग्वाले की गाय अपने आप अपना दूध मिट्टी के टीले पर दिया करती थी। ग्वाला बड़ा परेशान था कि मेरी गाय का दूध कोई निकाल लेता है। एक दिन उसने गाय का पीछा किया और देखा की गाय अपने आप मिट्टी के टीले पर दूध दे रही है। इतना देखते ही उसने गांव से कुछ लोग बुलाए और खुदाई कराई देखा कि मिट्टी में दो शिवलिंग विराजमान है। गांव वालों ने सोचा कि इस जंगल में नदी के किनारे कौन पूजा करने आएगा। इसलिए दोनों शिवलिंगों को अपने गांव ले चलें। गांव वालों ने खुदाई आरंभ की लेकिन खुदाई करते करते पाताल निकल आया। शिवलिंग की थाह ना मिल सकी। तभी यहीं पर एक छोटी कुटिया बना दी। मंदिर का निर्माण कई बार कराया गया।