आगरालीक्स…। शिवभक्तों के जत्थे गंगाजल शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए निकल पड़े हैं। शहर के चारों कोनों पर स्थित महादेव मंदिर में कांवड़िए पहुंचने लगे हैं। कैसे हुई कांवड़ यात्रा की शुरुआत।
कांवड़ चढाने केा लेकर मान्यताएं
अलीगढ़ के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पं. हृदय रंजन शर्मा ने बताया कि सावन के महीने में भगवान शिव पर कांवड़ चढाई जाती है। केसरिया कपड़े पहने शिवभक्तों की टोली निकल पड़ी है। दरअसल, पिछले दो दशकों से कांवड़ यात्रा की लोकप्रियता बढ़ी है। अब समाज का उच्च और शिक्षित वर्ग भी कांवड़ यात्रा में शामिल होने लगे हैं। कांवड़ चढाने को लेकर कई मान्यताएं हैं-
परशुराम थे पहले कांवड़िया
बताया जाता है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’ का कांवड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था। परशुराम इस प्रचीन शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाए थे। गढ़मुक्तेश्वर का वर्तमान नाम ब्रजघाट है।
श्रवण कुमार थे पहले कांवड़ियां
कुछ का कहना है कि सर्वप्रथम त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराने के क्रम में श्रवण कुमार हिमाचल के ऊना क्षेत्र में थे, जहां उनके अंंधे माता-पिता ने उनसे मायापुरी यानि हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की। माता-पिता की इस इच्छा को पूरी करने के लिए श्रवण कुमार माता-पिता को कांवड़ में बैठा कर हरिद्वार लाए और उन्हें गंगा स्नान कराया। वापसी में वे अपने साथ गंगाजल भी ले गए। इसे ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत माना जाता है।
भगवान राम ने किया था कांवड यात्रा की शुरुआत
कुछ मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम पहले कांवड़ियां थे। उन्होंने बिहार के सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल भरकर, बाबाधाम में शिवलिंग का जलाभिषेक किया था।
रावण ने की थी इस परंपरा की शुरुआत
पुराणों के अनुसार, कांवड़ यात्रा की परंपरा, समुद्र मंथन से जुड़ी है। समुद्र मंथन से निकले विष को पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया और वह नीलकंठ कहलाए परंतु विष के नकारात्मक प्रभावों ने शिव को घेर लिया। शिव को विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त कराने के लिए उनके अनन्य भक्त रावण ने ध्यान किया। तत्पश्चात कांवड़ में जल भरकर रावण ने ‘पुरा महादेव’ स्थित शिवमंदिर में शिवजी का जल अभिषेक किया। इससे शिवजी विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हुए और यहीं से कांवड़ यात्रा की परंपरा का प्रारंभ हुआ।
देवताओं ने सर्वप्रथम शिव का किया था जलाभिषेक
कुछ मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन से निकले हलाहल के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए शिवजी ने शीतल चंद्रमा को अपने माथे पर धारण कर लिया था। इसके बाद सभी देवता शिवजी पर गंगाजी से जल लाकर अर्पित करने लगे। सावन मास में कांवड़ यात्रा का प्रारंभ यहीं से हुआ।