Members of Schools Association APSA open school’s after demnad fulfilled in Agra
आगरालीक्स… आगरा के स्कूलों की सबसे बडी संस्था अप्सा ने छात्रों की फीस और स्कूल खोलने को लेकर बडा निर्णय लिया है।
आगरा के स्कूलों की संस्था अप्सा ने कोरोना के चुनौतीपूर्ण काल की विषम परिस्थितियों से जूझते निजी विद्यालयों की समस्याओं को उजागर करने हेतु एवं इन परिस्थितियों के चलते कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। कहा है कि इन सभी समस्याओं के चलते ‘अप्सा’ परिवार के सभी सदस्यों ने यह निर्णय लिया है कि जब तक सरकार द्वारा निजी स्कूलों की समस्याओं को नहीं समझा जाता है व अभिभावकों की सहमति नहीं होती है, तब तक विद्यालय प्रबंधतंत्र स्कूल नहीं खोलेंगे। जिन्हें सचिव डा.गिरधर शर्मा द्वारा अवगत कराया गया। जिनका बिंदुवार विवरण निम्नवत है :-
- हर बड़े नेता से लेकर अधिकारियों तक के बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ते हैं। यहां तक की सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के बच्चे भी निजी स्कूलों में पढ़ते हैं यानि भारत के स्कूली छात्रों में से लगभग 40% बच्चे निजी विद्यालयों में पढ़ते हैं।यह लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाते क्यों कि इन्हें निजी स्कूलों की गुणवत्ता पर ज्यादा भरोसा है।
- देशभर में लगभग 2 करोड़ शिक्षक 5 लाख निजी स्कूलों में कार्यरत हैं। इन शिक्षकों ने लॉकडाउन के दौरान अपनी जिम्मेदारी समझी। छात्रों के शिक्षण की निरंतरता बनी रहे एवं उनकी पढ़ाई की प्रक्रिया बाधित न हो, इसके लिए अॉनलाइन व लाइव कक्षाएं लीं। साथ ही विषय संबंधित असाइनमेंट, वर्कशीट, नोट्स, आदि भी ऑंनलाइन भेजे। विद्यार्थियों को घर से ही अॉंनलाइन टेस्ट, होलीडे होमवर्क, समरकैंप आदि गतिविधियों से जोड़े रखा।
- सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की कार्यप्रणाली सभी को पता है, इसके बावजूद उन्हें पूरा वेतन मिला। निजी स्कूलों में पूरा वेतन न मिलने के बावजूद सभी शिक्षकों ने पूरी मेहनत से काम किया।इसके बावजूद वे कोरोना योद्धाओं की सूची में शामिल नहीं हैं। क्या ये किसी कोरोना योद्धा से कम हैं ?
- केंद्र व राज्य शासित कार्यालयों के सभी कर्मचारियों, सरकारी शिक्षकों, विधायकों, सांसदों को पूरा वेतन मिला है। इनमें से ज्यादातर के बच्चे निजी विद्यालयों में पढ़ रहे हैं।अगर सभी को वेतन पूरा मिला है तो सरकार से फीस माफी की दरकार क्यों कर रहे हैं ? यदि फीस भरने में असमर्थ हैं तो सरकारी स्कूलों में बच्चों को क्यों नहीं पढ़ाने भेजते ? फीस मांगने पर स्कूल प्रबंधन के प्रति उत्पीड़न का आरोप लगाते हैं। क्या यह उचित है ? निजी विद्यालय अपनी सुविधाओं और गुणवत्ता के आधार पर फीस लेते हैं और इसी फीस से ही विद्यालय का संचालन होता है। फीस से ही वहां कार्यरत शिक्षकों एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारियों को वेतन दिया जाता है।
5.यूपी में सरकारी स्कूलों में प्रति छात्र लगभग 6500/- प्रतिमाह अर्थात् (78,000 प्रति छात्र प्रति वर्ष) खर्च होता है।फिर भी सरकार आरटीई कानून के तहत बच्चों को निजी स्कूल में प्रवेश दिलवाती है। यूपी सरकार आरटीई के तहत पढ़ने गए बच्चों को मात्र 450/- प्रति माह केवल 10 महीनों तक (4500 रुपये सालाना) प्रति छात्र निजी स्कूलों को प्रतिपूर्ति करती है। क्या यह निजी स्कूलों का उत्पीड़न एवं 75 प्रतिशत शेष विद्यार्थिर्यों का शोषण नहीं है ?
- क्या अभिभावक नहीं जानते कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों का 78,000/- प्रति छात्र सालाना खर्च भी उन्हीं की जेबों से जाता है (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष करों के रूप में) और 25% आरटीई के छात्रों के बचे खर्च की भरपाई भी उन्हीं के द्वारा दी जाने वाली फीस से ही होती है? सरकार को चाहिए कि वह DBT के तहत दुर्बल आय वर्ग के परिवारों को सीधे यह राशि दे और उन्हें निर्णय लेने दें कि इस राशि से वे किस निजी स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं।
- निजी शिक्षण संस्थान को सरकार या बैंक द्वारा बिना जमीन जायदाद गिरवी रखे कोई लोन नहीं मिलता, लेकिन अन्य व्यावसायिक गतिविधियों के लिए लोन मिल जाता है।इसका सीधा मतलब है कि जहां देश के भविष्य का निर्माण होता है, वह पूर्ण रूप से उपेक्षित है व उनकी गरिमा का भी हनन किया जा रहा है।
- निजी स्कूलों के प्रति सरकार की बेरूखी एवं उपेक्षा का एक और उदाहरण यह है कि प्रदेश सचिव के आदेश पर बस की फीस पर 3 माह के लिए (अप्रैल, मई, जून) पर रोक लगा दी गई है, जिससे ड्राइवरों,कन्डक्टरों व बस ट्रांसपोर्ट से जुड़े लोगों के लिए संकट उत्पन्न हो गया हैं। निजी स्कूलों पर प्रत्येक खड़ी बस पर 60,000 से ऊपर का प्रतिमाह प्रति बस के नुकसान का अतिरिक्त भार आ गया है।इस नुकसान की भरपाई का उपाय सरकार ने नहीं बताया है।
- सरकार द्वारा “पात्र/ सक्षम माता-पिता” की परिभाषा को परिभाषित करना चाहिए, जो फीस का भुगतान कर सकते हैं।सरकार के आदेशों के बाद अधिकांश सम्पन्न लोग भी अपने दायित्व की पूर्ति नहीं कर रहे हैं।
- जब तक विद्यालयों में सामान्य शिक्षण प्रारम्भ नहीं होता तब तक ऑंनलाइन कक्षाएं आयोजित की जानी चाहिए और वर्ष के अंत में परीक्षा आयोजित की जानी चाहिए जिसके आधार पर छात्रों को अगली कक्षाओं के लिए उत्तीर्ण किया जा सकेगा।
11.इन सभी समस्याओं के चलते ‘अप्सा’ परिवार के सभी सदस्यों ने यह निर्णय लिया है कि जब तक सरकार द्वारा निजी स्कूलों की समस्याओं को नहीं समझा जाता है व अभिभावकों की सहमति नहीं होती है, तब तक विद्यालय प्रबंधतंत्र स्कूल नहीं खोलेंगे।
- जब भी स्कूल खुलें, तो स्कूलों के सेनिटाइजेशन की व्यवस्था स्थानीय शिक्षा विभाग के द्वारा शहर के सीएमओ की मदद से करवाई जानी चाहिए ताकि स्थानीय प्रशासन की सहभागिता सुनिश्चित हो सके।
- सरकार को निर्देश जारी करने चाहिए की सभी अभिभावकों को फीस का भुगतान करना होगा। यदि शुल्क भुगतान नहीं होगा तो छात्रों की ऑनलाइन / ऑंफलाइन अध्ययन की व्यवस्था संभव नहीं हो पायेगी। यदि ऐसा नहीं किया गया तो स्कूल के शिक्षक एवं अन्य कर्मचारियों को वेतन कैसे दिया जाएगा ? स्कूलों के अन्य खर्चे, जैसे बिजली, पानी, टैक्स, बैंक की किश्तें, इन्श्योरेन्स आदि सरकार ने कुछ भी माफ नहीं किया है तो बिना फीस इन सब का भुगतान कैसे होगा? अगर स्ववित्त पोषित विद्यालयों में अभिभावक शुल्क देना प्रारम्भ नहीं करेंगे या सरकारी सहायता प्राप्त नहीं होगी तो लाखों शिक्षकों तथा कर्मचारियों की बेरोजगारी की स्थिति उत्पन्न हो सकती हैं एवं हजारों निजी स्कूल बंद हो जाएंगे।
अतः आज प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वे इस बात को संज्ञान में ले कि हमारे विद्यालय समाज को उच्च‐कोटि की शिक्षा तथा रोजगार के अवसर प्रदान कर सरकार एवं समाज की सहायता करते हैं, न कि अभिभावकों का आर्थिक शोषण करते हैं। ऐसी संकट की घड़ी में आवश्यक है कि इन शैक्षिक संस्थानों के अस्तित्व की रक्षा के लिए प्रदेश सरकार इन्हें संरक्षण एवं वित्तीय सहायता प्रदान करे।