आगरालीक्स… श्रावण आज से शुरू हो गया है। जानें सुख-समृद्धि,वैभव देने वाली कांवड़ यात्रा का महत्व। जानें डाक कांवड़ सहित कौन सी हैं कांवड़। पहले कांवड़ यात्री कौन थे।
कांवड़ अर्थात शिव के साथ विहार
श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान एवं गुरु रत्न भण्डार वाले ज्योतिषाचार्य पंडित हृदय रंजन शर्मा बताते हैं कि कांवड़ शिव की आराधना का ही एक रूप है। इस यात्रा के जरिए जो शिव की आराधना कर लेता है, वह धन्य हो जाता है। कांवड़ का अर्थ है परात्पर शिव के साथ विहार। अर्थात ब्रह्म यानी परात्पर शिव, जो उनमें रमन करे वह कांवरिया।
कांवड़ से जल अर्पण से वैभव की प्राप्ति
🌷 वैसे तो भगवान शिव का अभिषेक भारतवर्ष के सारे शिव मंदिरों में होता है। लेकिन श्रावण मास में कांवड़ के माध्यम से जल-अर्पण करने से वैभव और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। वेद-पुराणों सहित भगवान भोलेनाथ में भरोसा रखने वालों को विश्वास है कि कांवड़ यात्रा में जहां-जहां से जल भरा जाता है, वह गंगाजी की ही धारा होती है
चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति
🔥 कांवड़ के माध्यम से जल चढ़ाने से मन्नत के साथ-साथ चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है। तभी तो सावन शुरु होते ही इस आस्था और अटूट विश्वास की अनोखी कांवड यात्रा से पूरा का पूरा इलाका केशरिया रंग से सराबोर हो जाता है। पूरा माहौल शिवमय हो जाता है
इनमें है शिव की सत्ता
🌺 गंगाजल, पारद, पाषाण, धतूराफल आदि सबमें शिव सत्ता मानी गई है। अतः सब प्राणियों, जड़-जंगम पदार्थों में स्वयं भूतनाथ पशुपतिनाथ की सुगमता और सुलभता ही तो आपको देवाधिदेव महादेव सिद्ध करती है
कांवड यात्राः हर कदम अश्वमेघ यज्ञ का फल
🌟 इसके हर कदम के साथ एक अश्वमेघ यज्ञ करने जितना फल प्राप्त होता है। यूपी, बिहार सहित दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान तक में कांवड़ लाने का प्रचलन है। घरों में भी प्रायः श्रद्धालु शिवालयों में जाकर सावन मास में भगवान शिव का जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक, करते हैं
श्री राम हैं पहले कांवडिया
🌺बाबा बैजनाथ धाम में मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने की जलाभिषेक : – झारखंड स्थित बैजनाथधाम कांवड़ यात्रा के संबंद्ध में कहा जाता है कहते हैं, पहले कांवडि़या रावण थे। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने भी सदाशिव को कांवड़ चढ़ाई थी। आनंद रामायण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि भगवान श्री राम ने कांवडि़या बनकर सुल्तानगंज से जल लिया और देवघर स्थित बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया
🌟कई प्रकार के कावड़
♦डाक कांवड़ : – डाक कांवडि़या कांवड़ यात्रा की शुरुआत से शिव के जलाभिषेक तक लगातार चलते रहते हैं, बगैर रुके। शिवधाम तक की यात्रा एक निश्चित समय में तय करते हैं। यह समय अमूमन 24 घंटे के आसपास होता है। इस दौरान शरीर से उत्सर्जन की क्रियाएं तक वर्जित होती हैं
♦खड़ी कांवड़ : – कुछ भक्त खड़ी कांवड़ लेकर चलते हैं। इस दौरान उनकी मदद के लिए कोई-न-कोई सहयोगी उनके साथ चलता है। जब वे आराम करते हैं, तो सहयोगी अपने कंधे पर उनकी कांवड़ लेकर कांवड़ को चलने के अंदाज में हिलाते-डुलाते रहते हैं
♦दांडी कांवड़ : – ये भक्त नदी तट से शिवधाम तक की यात्रा दंड देते हुए पूरी करते हैं। मतलब कांवड़ पथ की दूरी को अपने शरीर की लंबाई से लेट कर नापते हुए यात्रा पूरी करते हैं। यह बेहद मुश्किल होता है और इसमें एक महीने तक का वक्त लग जाता हैइस यात्रा में बिना नहाए कांवड़ यात्री कांवड़ को नहीं छूते। तेल, साबुन, कंघी की भी मनाही होती है। यात्रा में शामिल सभी एक-दूसरे को भोला या भोली कहकर ही बुलाते हैं।