आगरालीक्स(27th August 2021 Agra News)… श्रीकृष्ण जन्माष्टमी उत्सव है तो महान पर्व है. व्रतों का राजा है. सबसे पावन दिन है. सभी पुराणों और ग्रंथों में इसकी महिमा लिखी है. जानिए जन्माष्टमी का पौराणिक महत्व. इस दिन कब करें भोजन और कैसे मनाएं उत्सव.
सात जन्म के पाप मिट जाते हैं
जन्माष्टमी का व्रत उस सभी को रखना चाहिए, जो व्रत रखने में सक्षम हैं। इससे बड़ा लाभ होता है. इस व्रत को व्रतों का राजा कहा गया है. श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान के अध्यक्ष पंडित हृदय रंजन शर्मा ने बताया कि जन्माष्टमी व्रत की बड़ी महिमा है. जन्माष्टमी एक तो उत्सव है, दूसरा महान पर्व है, तीसरा महान व्रत-उपवास और पावन दिन भी है.
वायु पुराण में बताई है महिमा
वायु पुराण समेत कई ग्रंथों में जन्माष्टमी के दिन की महिमा लिखी है. ‘जो जन्माष्टमी की रात्रि को उत्सव के पहले अन्न खाता है, भोजन कर लेता है वह नराधम है’ ऐसा भी लिखा है. जो उपवास करता है, जप-ध्यान करके उत्सव मना के फिर खाता है, वह अपने कुल की 21 पीढ़िया तार लेता है. वह मनुष्य परमात्मा को साकार रूप में अथवा निराकार तत्त्व में पाने में सक्षमता की तरफ बहुत आगे बढ़ जाता है.
शारीरिक रूप से कमजोर लोग व्रत न रखें
उन्होंने बताया कि इसका मतलब यह नहीं कि व्रत की महिमा सुनकर मधुमेह वाले या कमजोर लोग भी पूरा व्रत रखें. बालक, अति कमजोर तथा बूढ़े लोग अनुकूलता के अनुसार थोड़ा फल आदि खायें.
जन्माष्टमी के दिन का जप अनंत गुना फल देता है
आगरा के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित हेमंत पुरोहित ने बताया कि जन्माष्टमी के दिन किया हुआ जप अनंत गुना फल देता है. उसमें भी जन्माष्टमी की पूरी रात जागरण करके जप-ध्यान का विशेष महत्त्व है। जिसको क्लीं कृष्णाय नमः मंत्र का और अपने गुरु मंत्र का थोड़ा जप करने को भी मिल जाए, उसके त्रिताप नष्ट होने में देर नहीं लगती.
कलह दूर भगाने वाला होता है व्रत
ज्योतिषाचार्य पंडित हेमंत पुरोहित ने बताया कि ‘भविष्य पुराण’ के अनुसार जन्माष्टमी का व्रत संसार में सुख-शांति और प्राणीवर्ग को रोगरहित जीवन देनेवाला, अकाल मृत्यु को टालनेवाला, गर्भपात के कष्टों से बचानेवाला तथा दुर्भाग्य और कलह को दूर भगानेवाला होता है। कृष्ण नाम के उच्चारण का फल ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार विष्णुजी के सहस्र दिव्य नामों की तीन आवृत्ति करने से जो फल प्राप्त होता है, वह फल ‘कृष्ण’ नाम की एक आवृत्ति से ही मनुष्य को सुलभ हो जाता है। वैदिकों का कथन है कि ‘कृष्ण’ नाम से बढ़कर दूसरा नाम न हुआ है, न होगा। ‘कृष्ण’ नाम सभी नामों से परे है।
कृष्ण नाम जाप की महिमा है अपार
जो मनुष्य ‘कृष्ण-कृष्ण’ यों कहते हुए नित्य उनका स्मरण करता है, उसका उसी प्रकार नरक से उद्धार हो जाता है, जैसे कमल जल का भेदन करके ऊपर निकल आता है। ‘कृष्ण’ ऐसा मंगल नाम जिसकी वाणी में वर्तमान रहता है, उसके करोड़ों महापातक तुरंत ही भस्म हो जाते हैं। ‘कृष्ण’ नाम-जप का फल सहस्रों अश्वमेघ-यज्ञों के फल से भी श्रेष्ठ है, क्योंकि उनसे पुनर्जन्म की प्राप्ति होती है, परंतु नाम-जप से भक्त आवागमन से मुक्त हो जाता है। समस्त यज्ञ, लाखों व्रत तीर्थस्नान, सभी प्रकार के तप, उपवास, सहस्रों वेदपाठ, सैकड़ों बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा- ये सभी इस ‘कृष्णनाम’- जप की सोलहवीं कला की समानता नहीं कर सकते. ज्योतिषाचार्य ने बताया कि विष्णु के तीन हजार पवित्र नाम (विष्णुसहस्त्रनाम) जप के द्वारा प्राप्त परिणाम ( पुण्य ), केवल एक बार कृष्ण के पवित्र नाम जप के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है.