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आगरालीक्स…आगरा मेट्रो के दो अंडरग्राउंड स्टेशनों की रूफस्लैब का काम पूरा. जानिए किस तरह से चल रहा है अंडरग्राउंड स्टेशनेां का काम और कब तक होना है आगरा में मेट्रो का ट्रायल
उत्तर प्रदेश मेट्रो रेल कॉरपोरेशन द्वारा आगरा मेट्रो प्रायॉरिटी कॉरिडोर के भूमिगत भाग में तेज गति के साथ निर्माण कार्य किए जा रहे हैं। यूपी मेट्रो ने टॉप डाउन प्रणाली के तहत आगरा फोर्ट मेट्रो स्टेशन पर कॉन्कोर्स (मध्य तल) एवं बेस स्लैब (प्लेटफॉर्म तल) का निर्माण पूरा कर लिया है। इसके साथ ही ताजमहल एवं जामा मस्जिद मेट्रो स्टेशन की रूफस्लैब (छत) की कास्टिंग पूरी हो गई है। बता दें कि आगरा मेट्रो के सभी भूमिगत मेट्रो स्टेशनों का निर्माण टॉप डाउन प्रणाली के तहत किया जा रहा है। टॉप डाउन प्रणाली में सबसे पहले स्टेशन की रूफ स्लैब (प्रथम छत) का निर्माण किया जाता है, इसके बाद कॉन्कोर्स स्लैब एवं बेस स्लैब की कास्टिंग की जाती है। इस प्रणाली में छत की कास्टिंग के लिए शटरिंग का प्रयोग नहीं किया जाता बल्कि भूमि को समतल कर शटरिंग की तरह प्रयोग किया जाता है, जिससे समय की बचत के साथ ही लागत भी कम आती है। पारंपरिक तौर पर भूमिगत स्टेशन का निर्माण नींव से छत (नीचे से ऊपर) की ओर किया जाता है। इस प्रणाली में स्टेशन की आकार के अनुसार खुदाई कर सबसे पहले बेस स्लैब का निर्माण कर किया जाता है। इसके बाद कॉनकोर्स व अंत में रूफ स्लैब का निर्माण किया जाता है। वहीं, टॉप डाउन प्रणाली में रूफ से बेस की ओर निर्माण किया जाता है।

ऐसे होता है भूमिगत स्टेशन का निर्माण
भूमिगत स्टेशन के निर्माण के लिए सबसे पहले स्टेशन परिसर हेतु चिन्हित भूमि पर अलग-अलग जगहों से बोरिंग कर मिट्टी के नमूने लिए जाते है। इन नमूनों की जांच के बाद स्टेशन बॉक्स (स्टेशन परिसर का कुल क्षेत्रफल) की मार्किंग की जाती है। इसके बाद स्टेशन परिसर की डॉयफ्राम वाल (बाउंड्री वॉल) के निर्माण के लिए गाइडवॉल बनाई जाती है। गाइड वॉल का प्रयोग डी वॉल को सही दिशा देने के लिए किया जाता है, डी वॉल के निर्माण के बाद इसे हटा दिया जाता है।
गाइड वॉल के निर्माण के बाद एक खास मशीन से डी वॉल की खुदाई की जाती है। खुदाई पूरी होने का बाद उस जगह में सरियों का जाल (केज) डाला जाता। इसके बाद कॉन्क्रीट डाल कर डायफ्राम वॉल का निर्माण किया जाता है। टॉप डाउन प्रणाली के तहत एक बार जब स्टेशन परिसर की डायफ्राम वाल का निर्माण पूरा हो जाता है, तो फिर ऊपर से नीचे की ओर निर्माण कार्य प्रारंभ होते हैं।
टॉप डाउन प्रणाली में सबसे पहले प्रथम छत (रूफ स्लैब) का निर्माण किया जाता है। इस दौरान प्रथम छत (रूफ स्लैब) में कई जगहों को खुला छोड़ा जाता है, जहां से स्लैब निर्माण के बाद मशीनों के जरिए कॉनकोर्स तल तक मिट्टी की खुदाई शुरू की जाती है। इसके बाद भूमि को समतल कर कॉन्कोर्स तल की स्लैब की कास्टिंग की जाती है। इसके बाद कॉनकोर्स लेवल की तरह खाली जगहों से बेस लेवल की खुदाई की जाती है। अंत में भूमि समतल कर बेस स्लैब का निर्माण किया जाता है। बेस स्लैब पर ही प्लेटफॉर्म के निर्माण सहित ट्रैक आदि का काम किया जाता है।

ताज ईस्ट गेट से सिकंदरा के बीच बन रहे प्रथम कॉरिडोर में कुल 13 स्टेशन हैं, जिसमें 6 ऐलिवेटिड व 7 भूमिगत मेट्रो स्टेशन है। फिलहाल, यूपी मेट्रो द्वारा प्रथम कॉरिडोर में 6 स्टेशनों वाले प्रयॉरिटी सेक्शन के ऐलिवेटिड भाग में सिविल निर्माण कार्य पूर्ण हो गए हैं, जबकि भूमिगत भाग में तेज गति के साथ निर्माण कार्य किए जा रहे हैं।