Agra news: Basoda worship this time on March 13 in auspicious coincidence of Vishakha Nakshatra Harshan Yoga Gar Karan
आगरालीक्स… सोम शीतला पूजन (बासौड़ा) 13 मार्च को मनाया जाएगा। इस बार विषाखा नक्षत्र हर्षण योग गर करण का भी शुभ संयोग। पूजा विधि समेत विस्तृत जानकारी।

होली के बाद पहले सोमवार को होता है पूजन

श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान गुरु रत्न भंडार वाले ज्योतिषाचार्य पंडित हृदय रंजन शर्मा के मुताबिक बासौड़े का त्योहार होली के 7 या 8 दिन बाद या अधिकतर होली के बाद पहले सोमवार या गुरुवार को ही मनाया जाता है।
योगिनी देवी की होती है पूजा-अर्चना
इस दिन बासी भोजन जरूर खाया जाता है (1 दिन पहले बनाया हुआ ) इसमें विशेषकर होली के बाद सोमवार या गुरुवार कभी भी खाली नहीं जाता। इसे शुभ ग्रह में करने का ही विशेष महत्व होता है, इसमें पथवारी माता ( योगिनी देवी) की पूजा होती है।
बासोड़े की इस प्रकार होती है तैयारी
बासोड़े से 1 दिन पहले घर की महिलाएं संध्या के समय से ही पकवान बनाकर रख लेती हैं फिर प्रातः काल (तड़के ) उठकर घर की मुखिया स्त्री या फिर माता एक थाली में सभी बनाए हुए पकवान रबडी, रोटी ,चावल, रोटी , मूंग की छिलके वाली दाल, हल्दी ,धूपबत्ती एक गुलरी की माला जो होली के दिन बचा कर रखते हैं थाली में यथायोग्य दक्षिण रखकर घरके सभी बच्चों ,पुरुष, स्त्रियों को बैठाकर उनके ऊपर से 5या 7 वार यह कहकर खाली को उतारती है कि “हे शीतला माता आप की पूर्ण कृपा से पूरे वर्ष भर मेरे घर में सभी प्रकार के रोग दोषों का नाश करना” और” मेरे परिवार में हर प्रकार की खुशहाली ,उन्नति के कार्य हो” यही हमारे पूर्वजों की मान्यता है।
उतारे के बाद कुत्ते को खिलाते हैं पकवान
इसके बाद उतारा करने के बाद घर के बाहर भैरों बाबा की सवारी कुत्ते को खिलाना अति आवश्यक होता है, फिर घर के नजदीकी चमड़ा पथवारी (योगिनी देवी) के यहां जाकर सम्मान पूर्वक सामान का भोग लगाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। बासी सामान घर आकर सभी लोगों को खिलाया जाता है।
पहले सोमवार के हिसाब से बासौडा पूजन
सोमवार 13 मार्च 2023 को
शीतला अष्टमी वालों के लिए बुधवार
💥 शीतला अष्टमी वाले लोगों के लिए बुधवार 15 मार्च को ही पूजा पाठ करना मान्य रहेगा।
क्षेत्र के हिसाब से मनाते हैं बासौड़ा
अधिकतम यह प्राचीन त्योहार अपने अपने क्षेत्र गली मोहल्ले के हिसाब से ही मनाया जाता है इसमें अलग-अलग क्षेत्रों में कुछ लोगों की अपनी निजी अलग-अलग परंपराएं भी होती हैं उसके हिसाब से ही त्योहार की तिथि दिन या बार का निर्धारण होता है।
शीतला माता की पौराणिक कथा
एक गांव में एक बुढ़िया रहती थी वह बासोड़े के दिन शीतला माता का पूजन करती थी और ठंडी (बासी) रोटी, भोजन करती खाती थी। शेष गांव वालेशीतला माता की पूजा नहीं करते थे। अचानक एक दिन गांव में आग लग गई जिसमे वृद्धा के घर को छोड़कर गांव के सारे घर जल गए। गांव वालों को आश्चर्य हुआ की बुढ़िया का मकान कैसे बच गया। ग्रामीणों ने वृद्धा से इसका कारण जाना तो शीतला माता के पूजन की बात बताई। इसके बाद से गांव में शीतला माता का पूजन शुरू हो गया।