आगरालीक्स…आगरा दरी की तरह आगरा कालीन को भी मिले जीआई टैग, निर्यात सम्मेलन में रखी जाएगी आगरा में कालीन बुनाई प्रशिक्षण केंद्र स्थापना की मांग
मुगलिया काल में आगरा को एक विशेष उद्योग मिला था। मुगल बादशाह अकबर ने आगरा के लोगों को कालीन बुनाई के उद्योग से जोड़ा और इसके बाद यहां के कारीगरों ने अपनी पहचान विश्व पटल तक पर बना दी। आज वही उद्योग मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहा है। 8 और 9 जनवरी को होने जा रहे एक्सपोर्ट सिम्पोजियम 2024 (निर्यात सम्मेलन) में कालीन बुनाई उद्योग से जुड़ा आगरा फ्लोर कवरिंग संगठन अपनी बात रखेगा और सरकार से प्रमुख मांग करेगा।
सोमवार को बंसल नगर, फतेहाबाद राेड स्थित रमन एक्सपोर्ट पर एक्सपोर्ट सिम्पोजियम 2024 (निर्यात सम्मेलन) आयोजन समिति के पदाधिकारियों के साथ आगरा फ्लोर कवरिंग संगठन ने बैठक की। संगठन के अध्यक्ष संतोष माहेश्वरी ने कहा कि ‘आगरा कालीन’ को ‘आगरा दरी’ की तरह सरकार द्वारा जीआई टैग (भौगोलिक संकेत ) प्रदान किया जाना चाहिए। ताकि आगरा के कालीन का मूल्य और उससे जुड़े लोगों का महत्व बढ़ सके। इतना ही नहीं, जीआई टैग मिलने से फेक प्रॉडक्ट को रोकने में मदद भी मिलेगी और कालीन निर्यातकों को आर्थिक फायदा मिलेगा।
उपाध्यक्ष राजेश जैन कोटा ने कहा कि कालीन उद्योग श्रमिक प्रधान उद्योग है किंतु यहां के निर्यातक कुशल बुनकरों की कमी से जूझ रहे हैं। इस कमी को दूर करने के लिए आवश्यक है कि नई पीढ़ी को प्रशिक्षण देने हेतु आगरा शहर में सरकार द्वारा कालीन बुनाई प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की जाए। ताकि ये उद्योग बंद न हो और शहर में ही युवाओं को रोजगार मिल सके। तभी आगरा जिले से युवाओं का पलायन भी रुक सकेगा।
कारपेट एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल भारत सरकार के कमेटी ऑफ एडमिनिस्ट्रेटर के सदस्य राम दर्शन शर्मा ने ऊन आयात शुल्क समस्या पर अपनी बात रखी, कहा कि भारत में उत्पादित ऊन अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुकूल नहीं होता। इसकी भरपाई के लिए कालीन उत्पादकों को न्यूजीलैंड, टर्की एवं अन्य देशों से गुणवत्तापूर्ण ऊन का आयात करना होता है। सरकार द्वारा आयातित ऊन पर अत्याधिक आयत एवं सीमा शुल्क रोपण के कारण कालीन उत्पादकों की लागत एवं वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है। ऐसे में केंद्र सरकार को आयातित ऊन पर अधिरोपित आयात एवं सीमा शुल्क में युक्तिकरण एवं घटौती करनी चाहिए।
कोषाध्यक्ष अनिरुद्ध अग्रवाल ने कहा कि कालीन निर्यातकों द्वारा कालीन और दरी जैसे निर्यातित उत्पादों पर शुल्क और करों की छूट आरओडीटीईपी योजना के तहत दरों में बढ़ोत्तरी और मूल्य सीमा को हटाने की प्रमुख मांग रही है। यह सभी बातें करों के लिए पर्याप्त रूप से मुआवजा नहीं देती हैं जिसका कालीन निर्यातकों द्वारा भुगतान किया गया। कालीनों के लिए आरओडीटीईपी दरें निर्यात के मूल्य के 1.2 प्रतिशत से 3.5 प्रतिशत के बीच हैं। निर्यातकों का कहना है कि यह अत्यधिक अपर्याप्त है। विभिन्न श्रेणियों के कालीनों पर भी विभिन्न सीमाएं लगाई गई हैं, जिसका अर्थ है कि छूट निर्दिष्ट सीमा से अधिक नहीं हो सकती। आरओडीटीईपी योजना, परिवहन में उपयोग किए जाने वाले ईंधन पर वैट, मंडी कर और निर्यातित वस्तुओं के निर्माण के दौरान उपयोग की जाने वाली बिजली पर शुल्क जैसे एम्बेडेड कर्तव्यों और करों को वापस करती है, जिन्हें अन्य योजनाओं के तहत छूट नहीं मिलती है। इसने WTO-असंगत MEIS योजना का स्थान ले लिया है।
एक्सपोर्ट सिम्पोजियम के टैक्निकल कॉर्डिनेटर राहुल जैन ने कहा कि आगरा टीटीजेड क्षेत्र में आता है। यहां वही उद्योग लग सकते हैं जिनसे प्रदूषण न होता हो किंतु कालीन उद्योग को रंगाई के कारण प्रदूषणकारी उद्योग में रखा गया है। जिसके कारण उद्यमियों को रंगाई दूसरे शहरों में करवानी पड़ती है। जिसमें लागत अधिक लगती है।
यदि नीरी और उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड गाइड लाइन बना दे और प्रदूषण रोकथाम के लिए लगने वाले उपकरणाें पर सब्सिडी दे दे तो उद्यमियों की लागत कम हो जाएगी। इसके अलावा उद्योग में काम करने वाले कारीगरों को श्रमिक कानून में लाभ मिलना चाहिए। इन सभी प्रमुख बातों का बिंदुवार ड्राफ्ट बनाया गया है जो कि निर्यात सम्मेलन में सरकार के प्रतिनिधियों को सौंपा जाएगा।
प्रोग्राम कन्वीनर मनीष अग्रवाल ने बताया कि निर्यात सम्मेलन आगर और अलीगढ़ जिलों के सभी उद्योगों की निर्यात के क्षेत्र में संभावनाओं को तलाशेगा और समस्याओं का समाधान खाेजेगा। निश्चित रूप से सम्मलेन के माध्यम से आगरा और अलीगढ़ के सभी उद्योगों की पहचान विश्वपटल पर बन सकेगी।
बैठक में रिपुदमन सिंह, सागर तोमर, अमित यादव आदि उपस्थित रहे।
ये है आगरा के कालीन उद्योग की विशेषता−
आगरा में कालीन बुनाई उद्योग की स्थापना बादशाह अकबर ने 16 शताब्दी में की थी। तभी से फारसी तकनीक से उच्चतम गुढ़वत्ता के कालीनों की बुनाई का काम यहां होता आ रहा है।
आगरा के कालीनों में पारंपरिक सफ़ाविद डिज़ाइन और बुनाई तकनीक के साथ एक लाल पृष्ठभूमि की विशेषता होती हैI
आगरा में कालीन बुनाई उद्योग से प्रत्यक्ष रूप से 20000 से अधिक लोग रोजगार पा रहे हैं। आगरा परिधि में 100 से अधिक गांव में 5000 लूम ( खढी, करघा) यंत्र मौजूद हैं। 6 स्क्वायर फीट से लेकर 300 स्क्वायर फीट तक के कालीन यहां बनते हैं। उच्च गुणवत्ता के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में आगरा के कालीन अपनी अलग पहचान रखते हैं।