Agra News: Mobile is changing the behavior and body language of children, read an important news…#agranews
आगरालीक्स…आगरा में 7 साल का बच्चा 24 घंटे सोया नहीं, 4 साल के 2 बच्चे बोल नहीं पा रहे, कुछ बच्चों के हावभाव बदल गए हैं तो कुछ कार्टून किरदारों की नकल करते हैं, इसने डॉक्टरों को चिंता में डाल दिया, अगर आप भी अपने बच्चे को आसानी से थमा देते हैं मोबाइल तो ये खबर आपके लिए है
आगरा में क्या आप भी उन माता—पिता में से हैं जो जिद करने पर अपने बच्चों के हाथ में मोबाइल थमा देते हैं। अगर हां, तो आप गलती कर रहे हैं। इससे बच्चों की भाषा और व्यवहार में परिवर्तन आ रहा है। बहुत से बच्चे बोलना नहीं सीख पा रहे हैं तो बहुत से बच्चे किसी कार्टून कैरेक्टर की तरह बर्ताव कर रहे हैं।
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. निखिल चतुर्वेदी ने चिंता जाहिर की है। आगरालीक्स से बातचीत में उन्होंने कुछ ऐसे मामले साझा किए जो सामान्य से अलग थे। कहा कि हाल के दिनों में ही एक बच्चे के माता—पिता उसे लेकर आए। पूछने पर बताया कि 24 घंटे से सोया नहीं है और अब भी नींद का नामोनिशान नहीं है। घबराए माता—पिता जब उनके पास आए तो पहला कारण मोबाइल एडिक्शन ही समझ आया। ऐसे ही दो अन्य मामलों में बच्चे 4 साल की आयु में भी सही से नहीं बोल पा रहे हैं। कारण कि अपना काम आसान करने के लिए माता—पिता उनके हाथ में अपना मोबाइल थमा देते हैं। ज्यादा स्क्रीन टाइम होने की वजह से बच्चा बात करना नहीं सीख रहा है। मोबाइल से हर 30 सैकेंट में इमोशन तो बदल रहे हैं लेकिन स्क्रीन बात नहीं करती, वो सवाल नहीं पूछती। दो साल की आयु में बच्चा अपने माता—पिता और घर के अन्य सदस्यों की बातें सुनकर शब्द पकड़ता है और फिर उन्हें बोलने की कोशिश करता है। मगर मोबाइल का एडिक्शन ऐसा नहीं होने दे रहा है। ऐसे ही कई मामले आ रहे हैं जिनमें बच्चे अपने किसी फेवरेट कॉर्टून कैरेक्टर की तरह बर्ताव कर रहे हैं। वे उन्हीं की भाषा में बात करते हैं। इन बच्चों के हावभाव भी अलग हो गए हैं। यह बेहद डरावना है।
वर्चुअल ऑटिज्म के हो रहे शिकार
डॉक्टर इसे वर्चुअल आॅटिज्म कह रहे हैं। उनके मुताबिक अक्सर 4-5 साल के बच्चों में वर्चुअल ऑटिज्म के लक्षण दिखते हैं। मोबाइल फोन, टीवी और कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की लत की वजह से ऐसा होता है। स्मार्टफोन का ज्यादा इस्तेमाल या लैपटॉप-टीवी पर ज्यादा समय बिताने से उनमें बोलने और समाज में दूसरों से बातचीत करने में दिकक्त होने लगती है। सोने की जगह जबरन जागने की कोशिश करते हैं। इस कंडीशन को ही वर्चुअल ऑटिज्म कहा जाता है। इसका मतलब यह होता है कि ऐसे बच्चों में ऑटिज्म नहीं होता लेकिन उनमें इसके लक्षण दिखने लगते हैं। ढाई से चार साल के बच्चों में ऐसा बहुत ज्यादा दिख रहा है।
बाहर खेलने से न रोके
डॉ. निखिल बताते हैं कि हम बचपन में बाहर खूब खेले। इससे शारीरिक और मानसिक विकास हुआ। जो बच्चे आउटडोर गेम्स खेलते हैं उनमें फोकस करने की क्षमता भी बढती है इसलिए वे पढ़ाई में अच्छे होते हैं। यहां उल्टा हो रहा है। बच्चे बिगड़ न जाएं इसलिए हम उन्हें बाहर नहीं भेज रहे जबकि बाहर न जाने के कारण उन्हें कई समस्याएं हो रही हैं। हम इन पर गौर नहीं करते। अक्सर जब बच्चा छोटा होता है तो पैरेंट्स उन्हें पास बिठाकर मोबाइल फोन दिखाते हैं। बाद में बच्चों को इसकी लत लग जाती है। पैरेंट्स को सबसे पहले तो अपने बच्चों को मोबाइल और लेपटॉप से दूर रखना है। उनका फोकस बाकी चीजों पर लगने दें। नींद के पैटर्न को सुधारें। बाहर खेलने जाने दें।