आगरालीक्स… पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी का हिंदुत्व कोई धर्म नहीं वो जीवन शैली थी, जिसने उनके पूरे व्यक्तित्व को गढ़ा..लेकिन ये कम लोग ही जानते हैं कि अटल जी के प्रखर हिंदुत्व की जड़ें आर्य समाज से जुड़ी थीं..आर्य समाज के जरिये वेदों के ज्ञान का जो निचोड़ अटल जी ने अपनी रग-रग में बचपन में ही बसा लिया था, वही विराट सोच उन्हें राजनीति ही नहीं, जीवन के शिखरतक ले जाने में सबसे महत्वपूर्ण साबित हुई।
अटल बिहारी वाजपेयी को आर्य समाज की संस्कृति विरासत में मिली थी…अटल जी की मां कृष्णा देवी और पिता
कृष्ण बिहारी की आर्य समाज में गहरी आस्था थी..अपनी तरुणाई में ही अटल जी आर्य समाज की युवा शाखा आर्य
कुमार सभा से जुड़ चुके थे..ये उऩके कार्यकर्ता बनने की पहली सीढ़ी थी…यहीं से उन्होंने आर्य समाज से मूल सिद्धांत वेद
को जानना समझना शुरू किया….1944 में अटल जी संस्था की ग्वालियर शाखा के महामंत्री भी बने..इसी दौरान अटल जी
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से भी जुड़ गए थे..यहां महत्वपूर्ण ये भी है कि अटल की संघ स्वयंसेवक बनाने वाले भी आर्य समाज
के एक पदाधिकारी ही थे..इस बात का जिक्र खुद अटल जी ने अपने एक खत में किया था..इस खत में अटल जी ने
लिखा कि-‘एक बार आर्य कुमार सभा के पदाधिकारी भूदेव शास्त्री जी ने मुझसे पूछा कि शाम को तुम क्या करते हो..तो मैंने
जवाब दिया कि कुछ नहीं, क्योंकि आर्य कुमार सभा के कार्यक्रम तो सुबह होते हैं..इस पर शास्त्री ने कहा कि शाम को तुम
शाखा चले जाया करो’.. बस यहीं से अटल जी संघ के संपर्क में आए…
आर्य समाज के जरिये वेदों के ज्ञान से परिपूर्ण अटल जी के प्रखर हिंदुत्व के साथ ही अटल जी ने अपनी पहली कविता
भी हाईस्कूल के दौर में ही लिखी थी जिसका शीर्षक था-हिंदू तन-मन हिंदू जीवन…आर्य समाज और वेद की प्रखर ज्योति ने महज़ 14-15
वर्ष की उम्र में ही अटल जी को कितना ओजस्वी बना दिया था इसकी बानगी उनकी लिखी कविता की कुछ लाइनों से ही
समझा जा सकता है…
मै अखिल विश्व का गुरु महान देता विद्या का अमर दान
मैने दिखलाया मुक्तिमार्ग मैने सिखलाया ब्रह्म ज्ञान
मेरे वेदों का ज्ञान अमर मेरे वेदों की ज्योति प्रखर
मानव के मन का अंधकार क्या कभी सामने सकठका सेहर
मेरा स्वर्णभ मे गेहर गेहेर सागर के जल मे चेहेर चेहेर
इस कोने से उस कोने तक कर सकता जगती सौरभ मै
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥
जीवन के पहले कदम को मज़बूत कर आगे बढ़ते अटल जी का स्वागत करने के लिए नियति भी बांहें फैलाए हुए थी..
आर्य समाज की प्रारंभिक दीक्षा के बाद ऱाष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ने के साथ ही 1942 का अंग्रेज़ों भारत छोड़ो आंदोलन
सामने आया, जहां अटल जी के बड़े भाई प्रेम को ब्रिटिश हुकूमत ने कैद कर लिया.अटल जी के बड़े भाई 23 दिन तक
जेल में रहे..इस घटना से अटल जी के मन में राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की अलख और प्रखर हो गई..धीरे-धीरे संघ में अटल
जी की सक्रियता बढ़ती गई..वह पंडित दीनदयाल उपाध्याय के साथ जुड़कर भारतीय जनसंघ के नेता बने..फिर राजनीति के शिखरपुरुष बन गए..
सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी नवाजे गये..जीवन के शिखर पर पहुंचकर अटल जी ने अपनी जड़ों को याद करते हुए ये कहा भी था कि
‘अगर आर्यसमाज न होता तो भारत की क्या दशा हुई होती इसकी कल्पना करना भी भयावह है..आर्यसमाज का जिस समय काम शुरु हुआ था कांग्रेस का कहीँ
पता ही नही था..स्वराज्य का प्रथम उद्धोष महर्षि दयानन्द ने ही किया था.. यह आर्यसमाज ही था जिसने भारतीय समाज की पटरी से उतरी गाड़ी को फिर से
पटरी पर लाने का कार्य किया..अगर आर्यसमाज न होता तो भारत-भारत न होता’..
जन-जन के इस अमर नायक के अटल जीवन के आगे आज पूरा देश नतमस्तक है..।
(लेखक—विनय आर्य, महामंत्री, आर्य समाज प्रतिनिधि सभा)