आगरालीक्स…आगरा में बसंत पंचमी उत्साह और उमंग के साथ दयालबाग में मनाई जाती है, क्योंकि इसी दिन एक पौधा लगाकर दयालबाग नींव रखी गई थी. जानिए इसके पीछे की पूरी कहानी
“ऋतु बसन्त आये सतगुरु जग में,
चलो चरनन पर सीस धरो री।“
माघ सुदी पंचमी, जो बसंत पंचमी के नाम से प्रसिद्ध है, हिन्दुओं में एक मुबारक (पवित्र) दिन माना जाता है और आनन्द व उल्लास के मौसम का अगुआ समझा जाता है। शीत ऋतु के पश्चात बसंत ऋतु प्रारम्भ होते ही सभी पशु, पक्षी, मानव व वनस्पति में नई ऊर्जा का संचार होता है। संतों ने भी मालिक के इस संसार में आने के समय की उपमा ऋतुओं के राजा-बसंत ऋतु से दी है।
“देखो देखो सखी अब चल बसन्त।
फूल रही जहँ तहँ बसन्त।।“
आगरा शहर में स्थित दयालबाग़, जो कि राधास्वामी सत्संग का मुख्यालय है, में बसंत का विशेष महत्व है। बसंत पंचमी का दिन राधास्वामी मत के सत्संगियों के लिए महा आनन्द व विलास का है क्योंकि इसी पवित्र दिवस, 15 फरवरी 1861 को, मत के प्रथम आचार्य परम पुरूष पूरन धनी हुज़ूर स्वामी जी महाराज ने जगत उद्धार का संदेश पहले-पहल प्रगटाया और सत्संग आम जारी फरमाया।
“घट में खेलूँ अब बसन्त।
भेद बताया सतगुरु संत।।“

बसंत पंचमी, 20 जनवरी 1915, के दिन राधास्वामी मत के पाँचवें आचार्य, सर साहबजी महाराज द्वारा राधास्वामी सत्संग का मुख्यालय, दयालबाग़, आगरा शहर में स्थापित करने हेतु एक शहतूत का पौधा लगा कर दयालबाग़ की नींव रखी गई। इसके साथ ही नई सत्संग संस्कृति की नींव भी रखी गई। दयालबाग़ में शिक्षा एवं संस्कृति की शुरुआत एक बहुत सुन्दर व कोमल पौधे के रूप में 1 जनवरी 1916 को मिडिल स्कूल, जिसे राधास्वामी एजुकेशनल इन्स्टीट्यूट आरईआई के नाम से जाना जाता है, के रूप में की गयी। यह पौधा धीरे-धीरे बढ़ते हुये वर्तमान में यूनिवर्सिटी डीईआई के रूप में एक बड़ा वृक्ष बन गया है, जिसका प्रभाव न केवल अपने देश के विभिन्न भागों में अपितु विदेशों में भी हो रहा है। दयालबाग़ एजुकेशनल इन्स्टीट्यूट डीईआई नाम के इस वृक्ष की सुगंध चहुँ दिस फैल रही है।
“आज आई बहार बसंत।
उमंग मन गुरु चरनन लिपटाय।।“
बसंत का दिन राधास्वामी मत के सत्संगियों के लिए बहुत महत्व रखता है। इसी दिन राधास्वामी संवत का नया वर्ष प्रारम्भ होता है। इस वर्ष बसन्त से राधास्वामी मत का 206वां संवत आरम्भ हो जायेगा। इस दिन को सभी सत्संगी अत्यधिक हर्षोल्लास से मनाते हैं तथा हुज़ूर राधास्वामी दयाल का गुणगान करते हैं। बसंत के आगमन के पूर्व दयालबाग में इसके स्वागत की तैयारियाँ प्रारम्भ हो जाती हैं। छोटे-छोटे बच्चों से लेकर बड़े बुज़ुर्गों के उल्लास की सीमा नहीं होती है। अपने घरों तथा मोहल्लों और पूरे दयालबाग़ में सफाई व सजावट में सभी जुट जाते हैं। सभी लोगों के सामूहिक प्रयासों से बसंत के सुअवसर पर दयालबाग़ में एक अनोखी छटा देखने को मिलती है। बसंत के पर्व को सत्संगी अत्यन्त भक्तिभाव पूर्ण रीति से मनाते हैं और अपने परम पूज्य गुरू महाराज के चरनों में राधास्वामी दयाल का शुकराना अदा करते हुए, पूर्ण उमंग व प्रेम के साथ आरती, पूजा व अभ्यास में इस दिन को व्यतीत करते हैं और अपने भाग्य सराहते हैं।
“मोहि मिल गए रा-धा-स्व-आ-मी पूरे संत।
अब बजत हिये में धुन अनन्त।।“
बसंत के अवसर पर दयालबाग़ में विभिन्न कार्यक्रम जैसे – बेबी शो, फैन्सी ड्रेस शो, जिमनास्टिक्स एवं विभिन्न प्रकार के खेल-कूद के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इन सभी कार्यक्रमों में बच्चे, युवा और सभी भाई व बहन उत्साह पूर्वक भाग लेते हैं।
“आज आया बसन्त नवीन।
सखी री खेलो गुरु संग फाग रचाय।।“
बसन्त के शुभ अवसर पर दयालबाग़ एवं देश विदेश की समस्त सतसंग काॅलोनियों में रात्रि के समय भव्य एवं आकर्षक विद्युत सज्जा की जाती है, जिसके लिए मोमबत्ती या दियों इत्यादि का प्रयोग नहीं किया जाता है जिससे प्रदूषण न हो। सौर ऊर्जा द्वारा स्म्क् सपहीजे का प्रयोग विद्युत सज्जा के लिए किया जायेगा।