Devprabodhini Ekadashi: Manglik works will start, boom will come in the market, worship method
आगरालीक्स…। देवप्रबोधिनी एकादशी 14 नवम्बर को है। इस दिन से सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे। बाजार में बूम आएगा। इस एकादशी का महत्व, पूजन समेत विस्तृत जानकारी।
उपवास का है विशेष महत्व
ज्योतिषाचार्य पंडित हृदय रंजन शर्मा के मुताबिक माना जाता है कि भगवान श्रीविष्णु ने भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को महापराक्रमी शंखासुर नामक राक्षस को लम्बे युद्ध के बाद समाप्त किया था। थकावट दूर करने के लिए क्षीरसागर में जाकर सो गए थे और चार मास पश्चात फिर जब वे उठे तो वह दिन देव उठनी एकादशी कहलाया। इस दिन भगवान श्रीविष्णु का सपत्नीक आह्वान कर विधि विधान से पूजन करना चाहिए। इस दिन उपवास करने का विशेष महत्व है। माना जाता है कि यदि इस एकादशी का व्रत कर लिया तो सभी एकादशियों के व्रत का फल मिल जाता है। व्यक्ति सुख तथा वैभव प्राप्त करता है और उसके पाप नष्ट हो जाते हैं।
पूजा विधि
इस दिन व्रत करने वाली महिलाएं प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा स्थल को साफ करें और आंगन में चौक बनाकर भगवान श्रीविष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करें। दिन में चूंकि धूप होती है इसलिए भगवान के चरणों को ढंक दें। रात्रि के समय घंटा और शंख बजाकर निम्न मंत्र से भगवान को जगाएं-
‘🌷उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥’
‘🌷उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
🌷गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥’
‘🌷शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।’
‘🌷उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
इसके बाद भगवान को जल, दूध, पंचामृत शहद, दही, घी, शक्कर हल्दी मिश्रित जल, तथा अष्ट गंध से स्नान कराएं। नये वस्त्र अर्पित करें फिर पीले चंदन का तिलक लगाएँ, श्रीफल अर्पित करें, नैवेद्य के रूप में विष्णु जी को ईख, अनार, केला, सिंघाड़ा आदि अर्पित करने चाहिए। फिर कथा का श्रवण करने के बाद आरती करें और बंधु बांधवों के बीच प्रसाद वितरित करें।
व्रत का पारण
एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना जरूरी है लेकिन अगर द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही करना चाहिए।
-एकादशी तिथि प्रारम्भ = 14 नवम्बर प्रातः 05:48am से
-एकादशी तिथि समाप्त = 15 नवम्बर दोपहर 06:39am बजे तक
-पारण (व्रत तोड़ने का) समय = 15 नवम्बर प्रातः 06:41 से 08:50 तक।
विशेष
कभी-कभी यह भी देखने में आता है कि एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिए हो जाता है। जब ऐसी स्थिति आये तब गृहस्थ आश्रम से जुड़े लोगों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए। संन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए। इस वर्ष 14 नवम्बर रविवार के दिन ही एकादशी सभी के लिए मान्य है।