आगरालीक्स.. (सूरज) हे प्रभु…हमें क्षमा करना
गणपति बप्पा मोरया…देवा हो देवा गणपति देवा…जैसे गीत भजनों के साथ आप हमारे यहां आए। हमारे घर आंगन, गली मोहल्ले में पधारकर आपने हमारे ऊपर कृपा की। कहीं आप नन्हे—नन्हे पग धरकर विराजे तो कहीं आपने अपने विशाल रूप का दर्शन दिया। हमने भी आपकी भक्ति व आशीर्वाद पाने के लिए दिन रात आपके भजन कीर्तन किए। सुबह शाम को आरती हुई। आपको मनाने के लिए दस दिन तक जुटे रहे…कहीं भंडारा कराया तो कहीं प्रसाद का वितरण किया। आपकी कृपा हर किसी पर रहे इसके लिए आपको तरह तरह से मनाया। लेकिन हम भूल गए कि आप जिस तरह से हमारे यहां पधारे उसी तरह से आपको विदा भी करना है। अगले बरस आने का वादा भी लेना है।
…लेकिन हम क्या करें…आपके भक्त जो हैं। हमने नहीं देखी कि यमुना भी हमारी माता है। वो माता जो हमारे कर्मों से पहले ही प्रताडित है। हे प्रभु…ढोल नगाडों के साथ नृत्य करते हुए हम आपको उसी यमुना के आंचल में विदा करने पहुंच गए। वो आंचल जिसे हम पहले ही गंदा कर चुके हैं। लेकिन कहते हैं न कि इंसान स्वार्थी होता है…और इसी स्वार्थ के वशीभूत होकर हम आपकी कृपा पाने की लालसा में भूल गए कि आपको जहां विदा कर रहे हैं वह आपके लिए उचित स्थान है या नहीं। हमारे द्वारा ही यमुना में बहाये गए गंदे पानी में हमने आपको अगले बरस आने का वादा लेकर विदा कर दिया।
आप सर्वज्ञाता हैं…आप वहां से अच्छी तरह विदा हुए या नहीं…ये तो आपको ही मालूम है लेकिन हम तो आपको वहां छोडकर चले आए।
मैंने आपको अगले दिन देखा…आप वहीं थे…शायद कहीं फंसे हुए थे। विदा होने की चाह आपकी भी थी लेकिन आप विदा नहीं हो पा रहे थे। तभी वहां नगर के कुछ सफाई कर्मचारी पहुंचते हैं…आपको वहां से बेकद्री से उठाकर ले जाते हैं अपने साथ…कहां ये नहीं मालूम…मन को धक्का लगता है। जिस प्रभु का चरण वंदन हमने दस दिन तक किया उनकी इतनी बेकद्री…
हे प्रभु….हमें झमा करना