Agra’s lieutenant Shubham Yadav success Story: Selected in Navy in
Janmashtami: know the auspicious time of worship at night
आगरालीक्स(30th August 2021 Agra News)… जन्माष्टमी पर बन रहा द्वापर जैसा योग. क्या है रात्रि में पूजा का शुभ मुहूर्त, जिसे करने से मिलेगा आपको पूजा का शत-प्रतिशत फल.
आगरा में जन्मोत्सव की धूम
आगरा में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की धूम है। मंदिर से लेकर घरों तक में झांकी सज रही है। अलीगढ़ के ज्योतिषाचार्य पंडित ह्रदयरंजन शर्मा ने बताया कि इस व्रत को व्रतराज कहते हैं यानि (सभी व्रतों का राजा)। सभी व्रतों में यह व्रत सबसे उत्तम माना जाता है।
रात भर मंगल गीत गाते हैं, नाचते हैं
उन्होंने बताया कि शास्त्रों के अनुसार, भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस दिन वृष राशि में चंद्रमा व सिंह राशि में सूर्य था। इसलिए श्री कृष्ण के जन्म का उत्सव भी इसी काल में ही मनाया जाता है। इसीलिए प्रभु श्रीकृष्ण के अनन्यभक्त, प्रेमी लोग रातभर अपने इष्टदेव प्रभु के जन्म की खुशी में झूमते,नाचते, मंगल गीत गाते हैं और भगवान कृष्ण का जन्मदिन मनाते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में होने के कारण इसको कृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं। चूंकि भगवान श्रीकृष्ण का रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, इसलिए जन्माष्टमी के निर्धारण में रोहिणी नक्षत्र का बहुत ज्यादा ध्यान रखते हैं
ये है शुभ मुहुर्त
पंचांगों के अनुसार, इस बार अष्टमी तिथि रविवार 29 अगस्त को रात्रि 11:25 मिनट पर शुरू हो चुकी है। यह सोमवार 30 अगस्त की रात्रि 01.59 पर समाप्त होगी।
शैव और वैष्णव के अनुसार आज ही जन्माष्टमी
30 अगस्त सोमवार को ही रोहिणी नक्षत्र और सिंह राशि के सूर्यदेव होंगे, जिसमें प्रभु श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इसलिये 30 अगस्त को ही श्री कृष्ण जन्माष्टमी शैव और वैष्णव मतानुसार मान्य रहेगी। अष्टमी और नवमी तिथि का जब मिलन होता है, तब वैष्णव मत अनुसार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाना सर्वोत्तम कहां गया है। इसलिए इस बार जन्माष्टमी को मनाना उत्तम होगा। इस दिन ही इसी तरह से शास्त्रोक्त रात्रि में श्रीकृष्ण का जन्म होगा और तभी श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाएगा।
ये है पूजा का मुहूर्त
पूजन का शुभ मुहूर्त रात में 23:58 से 00:44 तक करीब 45 मिनट का है। जन्माष्टमी का पारण 31 अगस्त दिन मंगलवार को सूर्योदय के पश्चात ही होगा। अष्टमी तिथि में गृहस्थजन और नवमी तिथि में वैष्णवजन व्रत पूजन करते हैं। यही शास्त्रोक्त पौराणिक महत्व (विधान) है।