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Master class on ovarian stimulation at Rainbow Hospital Agra

आगरालीक्स… बदलते दौर में फास्ट फूड के सेवन और आराम तलब जिंदगी से हार्मोन का असंतुलन महिलाओं को बांझपन की समस्या दे रहा है। इस तरह के केस तेजी से बढ रहे हैं, जिसमें युवतियों में अंडाणु ज्यादा बनते हैं, लेकिन वे मैच्योर नहीं होते हैं। रविवार को रेनबो हॉस्पिटल, सिकंदरा में आयोजित मास्टर क्लास में बांझपन की समस्याओं पर चर्चा की गई। इसमें विशेषज्ञों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आए लगभग 150 चिकित्सकों को हार्मोन की जांच से लेकर दवाओं के इस्तेमाल की जानकारी दी।
मुख्य वक्ता प्रो सुसैन जॉर्ज, आस्ट्रेलिया ने बताया कि मधुमेह की तरह ही जीवनशैली से जुडी पॉलिस्टिस्टिक ओवेरियन डिसऑर्डर (पीओडी) की समस्या महिलाओं में बढी है। इसमें हार्मोन के असंतुलन के कारण मोटापा, चेहरे पर बाल के साथ ही सामान्य से ज्यादा अंडाणु ज्यादा बनने लगते हैं। मगर, ये अंडाणु मैच्योर नहीं होते हैं, इससे बांझपन की समस्या बढ रही है। ताजे आंकडों को देखें तो बांझपन के कारणों में पॉलिस्टिस्टिक ओवेरियन डिसऑर्डर एक बडा कारण सामने आ रहा है। जबकि पौष्टिक व संतुलित खानपान व जीवनशैली से इसे ठीक किया जा सकता है। इस तरह के केस में ओवेरियन स्टृयूमलेशन के समय सावधानी बरतनी चाहिए। उन्होंने इस तरह के गंभीर केस में किस तरह इलाज किया जाए, इसकी केस स्टडी पेश की। डॉ जयदीप मल्होत्रा ने स्टेम सेल से अंडाणु की समस्या के इलाज पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि महिलाओं में अंडाणु की समस्या से बांझपन होने पर स्टेम सेल के माध्यम से इलाज संभव है, अभी इस पर लगातार काम चल रहा है। कहा कि कैरियर बनाने के लिए अधिक उम्र में शादी करना और 35 के बाद गर्भधारण करना भी महिलाओं में बांझपन का मुक्य कारण बनकर उभर रहा है। विशेषज्ञों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आई करीब 150 स्त्री रोग विशेषज्ञों के सवालों के जवाब दिए। मास्टर क्लास में विशेषरूप से बांझपन में दवाओं के कब, कैसी और कितनी बार पर्योग करने पर जानकारी दी गई। इस दौरान डॉ पूनम लुम्बा, डॉ संतोष सिंघल, डॉ रुचिका गर्ग, डॉ आरएन गोयल, डॉ अमित टंडन, डॉ दीक्षा गोस्वामी, डॉ शैली गुप्ता, डॉ निहारिका मल्होत्रा, डॉ मानवेंद्र आहूजा, डॉ जयश्री पाठक आदि मौजूद रहे।
टीबी के पांच फीसद केस में बांझपन
डॉ. जयदीप मल्होत्रा ने बताया कि महिलाओं में टीबी के केस भी बढ रहे हैं, इससे भी बांझपन के मामले बढ रहे हैं। 15 से 20 फीसद महिलाएं बांझपन की शिकार हो रही हैं, इसमें से टीबी से बांझपन के मामले 5 फीसद तक हैं।

5 रुपये से 50 हजार तक की दवाएं
अंडाणु की समस्या होने पर बाजार में तमाम तरह की दवाएं उपलब्ध हैं, इन दवाओं का महिलाओं की हिस्ट्री लेने के बाद ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए। मगर, ऐसा नहीं हो रहा है, जिन मरीज में पांच रुपये की दवा की जरूरत है, उन्हें 50 हजार रुपये कीमत की दवा खिलाई जा रही है। इससे बांझपन की समस्या और बढती जा रही है। इसके लिए डॉक्टरों को भी ट्रेनिंग दी गई। वहीं, मरीज भी एक ही डॉक्टर पर भरोस कर इलाज कराएं, डॉक्टर बदलते रहने से समस्या बढ सकती है।

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