आगरालीक्स…मुझसे पहली-सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग…सेंट जॉन्स में शाम—ए—गजल और मुशायरा से बंधा समां…

सेमिनार का हुआ समापन
फख़रूददीन अली मेमोरियल कमेटी के अन्तर्गत सेन्ट जोन्स कालेज में ग़ालिब और अकबराबाद के विषय पर आयोजित दो दिवसीय सेमिनार का समापन आज हो गया. दूसरे दिन पेपर प्रस्तुत करने का कार्यक्रम प्रोफेसर सग़ीर अफराहीम ने शमा रोशन कर के किया. सेशन की अध्यक्षता जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ख़्वाजा इकराम उद्दीन ने की और कार्यक्रम का संचालन ख़्वाजा मुईन उद्दीन भाषा विश्वविद्यालय के डॉ सोबान सईद ने किया. सेमिनार के कनवीनर प्रोफेसर शफीक़ अहमद अशरफ़ी ने सभी अतिथियों का स्वागत बुके और स्मृति चिन्ह दे कर किया. मुख्य अतिथि सेन्ट जोन्स कालेज के प्रिसिंपल प्रोफेसर एस. पी. सिंह रहे.

ये लोग रहे मौजूद.
सबसे पहले कालेज के छात्रों, फिर विभिन्न विश्वविद्यालयों के शोधार्थियों और प्रोफेसरों ने पेपर प्रस्तुत किए। कार्यक्रम के अध्यक्षता कर रहे प्रोफेसर ख़्वाजा इकराम उद्दीन ने प्रस्तुत किए गए पेपरों का विश्लेषण किया और अपने विचार व्यक्त किये. सेमिनार में डॉ अतहर, डॉ सिब्ते हसन नक़वी, अज़रा रिज़वी, सादिया सलीम शम्सी, दानिशा, अरशद रिज़वी, समद, युनूस आतिश, सलीम बलरामपुरी, हमज़ा, मोहम्मद नवेद, सदफ इश्तियाक़ आदि उपस्थित रहे. इस अवसर पर प्रोफेसर शफीक़ अहमद अशरफ़ी की दो किताबों लन्दन की एक रात-तन्क़ीद व तहक़ीक़ और यादगार अफसाने व प्रोफेसर अहमद महफ़ूज़ की मकबूल किताब बयाने मीर का विमोचन प्रोफेसर एस. पी. सिंह के हाथों हुआ.

दिल्ली और आगरा की मिट्टी—पानी एक
अपने खुतबे में प्रोफेसर ख़्वाजा इकराम उद्दीन ने कहा कि ग़ालिब उर्दू और फारसी के शायर हैं लेकिन उन की एक खासियत ऎसी है जिसमें किसी भी ज़बान का अदब मुक़ाबला नहीं कर सकता और वो है ग़ालिब का सवालिया अन्दाज़। यह वो खासियत है जो उन्हीं से पैदा हुई और उन्हीं पर खत्म हो गयी। प्रोफेसर सग़ीर अफराहीम ने कहा कि दिल्ली और आगरा की मिट्टी और पानी एक है। इसलिए जो यहाँ से देहली गया,देहलवी हो गया और जो देहली से अकबराबाद आया वो अकबराबादी हो गया, इस की मिसाल नज़ीर अकबराबादी और ग़ालिब देहलवी है। जामिया मिलिया इस्लामिया के प्रोफेसर अहमद महफ़ूज़ ने कहा कि ग़ालिब पहले शायर हैं जिनका कलाम शरह तलब समझा गया। खुद ग़ालिब से उनके कलाम का मतलब व मफ़हूम मालूम किया जाता था और खुतूते ग़ालिब में इसकी तशरीहात मिलती हैं.
प्रोफेसर शफीक़ अहमद अशरफ़ी ने कहा कि ग़ालिब ग़ज़ल के शायर हैं और जब उन्होंने कसीदा कहना शुरू किया तो ग़ज़ल का रंग उसमें दिखाई दिया। इस कार्यक्रम के दूसरे सेशन में क़मरूल्लाह फरीदी ने अपने ख्यालात का इज़हार करते हुए कहा कि ग़ालिब की नसर उन की शायरी से किसी क़ीमत कम नहीं है। जिस तरह उन्होंने उर्दू और फारसी दोनों में शायरी की है।इसी तरह नसर भी दोनों भाषाओं में लिखी है। लेकिन दोनों जगहों पर मकबूलियत का सहरा उर्दू के सिर है। डॉ इम्तियाज़ ने कहा कि ग़ालिब उर्दू तारीख़ का वो नुक़ता है जहाँ क्लासिकी आखिरी कदम रखती है और जदीद शायरी पहला कदम आगे बढ़ाती है। डॉ नसरीन बेगम ने गालिब की शोखियाँ खुतूत के आईने में के नाम से अपना पेपर पढ़ा।
वसी अहमद अंसारी ने दस्तनबू के हवाले से मकाला पढा। परस्तार गालिब अरुण डंग ने कहा कि ग़ालिब हिन्दुस्तानी मिट्टी में पैदा ही नहीं हुए बल्कि यहाँ की कदीम तहज़ीब में रचे बसे हैं.
शाम ए ग़ज़ल में सुधीर नारायण ने पेश की ग़ालिब व फ़ैज़ के ग़ज़ल पेश की. उनके साथ कीबोर्ड पर मुहम्मद रफ़ीक़, तबले पर राज मेस्सी ने साथ दिया. सुधीर नारायण को प्रिंसिपल प्रो एस पी सिंह ने शाल पहना व मोमेंटो दे कर सम्मनित किया.
मिर्जा ग़ालिब की
हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले….
यह न थी हमारी किस्मत की बिसाल यार होता…..
फ़ैज़ अहमद की
मुझ सी पहली मुहब्बत मेरे यार न मांग…..
इस अवसर शशि टंडन, समी आगई, इरफान सलीम, वकील अहमद, मुफ़्ती इब्राहीम, मुफ़्ती इमरान मौजूद रहे।