Neonate & 4 other died in road accident
हाथरसलीक्स… यूपी में बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं की एक और बदनुमा तस्वीर सामने आई है। हाथरस जिले की एक प्रसूता के परिजनों को एंबुलेंस के लिए दो घंटे तक भटकना पड़ा। इसके बाद भी उन्हें एंबुलेंस नसीब नहीं हुई। किसी तरह एक कार की जुगाड़ कर परिजन प्रसूता को आगरा ले गए लेकिन अस्पताल पहुंचने की जल्दबाजी में आगरा से कुछ पहले खंदौली के निकट उनकी कार एक टक में पीछे से घुस गई। हादसा इतना जबरदस्त था कि मौके पर ही कार में सवार मां-बेटे समेत चार लोगों की मौत हो गई। हादसे में घायल प्रसूता ने आगरा मेडिकल काॅलेज हाॅस्पिटल में नवजात को जन्म तो दिया लेकिन कुछ देर बाद इस बदनसीब ने भी दम तोड़ दिया। हादसे के बाद बिसावर में मातम छाया हुआ है।
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कैसे हुआ हादसा
खंदौली पुलिस के मुताबिक रुपेश अपनी पत्नी सीमा को लेकर रात करीब 12 बजे सादाबाद सीएचसी पहुंचा था। यहां प्राथमिक जांच के बाद डाॅक्टरों ने प्रसव कराने से इंकार कर दिया और सीमा को आगरा रेफर कर दिया। रुपेश ने सरकारी एंबुलेंस या एंबुलेंस 108 की सेवा लेने की कोशिश की लेकिन न तो उन्हें सरकारी एंबुलेंस ही मुहैया कराई गई और एंबुलेंस 108 का तो फोन नंबर ही नहीं लगा। दो घंटे बीतने के बाद जब सीमा की हालत बिगड़ने लगी तो रुपेश ने अलीगढ़ नंबर की एक पुरानी मारूति 800 कार का इंतजाम किया। रात तीन बजे वह पत्नी सीमा, अपनी मां विद्या देवी, सीमा की मौसी मीरा देवी व अपने दोस्त अमित को लेकर आगरा की ओर चल दिए। खंदौली के पास पीली पोखर इलाके में आगे चल रहे एक टक ने अचानक ब्रेक लगा दिए। इससे रुपेश की कार तेजी से टक के पीछे घुस गई। हादसे में सीमा के पति रुपेश, अमित, मीरा देवी, विद्या देवी आदि की मौके पर ही मौत हो गई। सुबह तड़के हुए हादसे की खबर जैसे ही बिसावर पहुंची, मातम शुरू हो गया। रुपेश के घर और आगरा पोस्टमार्टम हाउस पर ग्रामीणों का तांता लगा रहा। शहर में दिनभर इस हादसे की चर्चा लोगों की जुबान पर रही।
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रेफरल सेंटर बन गया है हाथरस
यूपी का हाथरस जिला बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं की अनूठी मिसाल बन गया है। यहां से हर रोज सैंकड़ों मरीजों को आगरा और अलीगढ़ मेडिकल काॅलेज रेफर कर दिया जाता है। जिला अस्पताल और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर मामूली चोट, उल्टी-दस्त, साधारण बुखार, दर्द जैसी हल्की-फुल्की बीमारियों का ही उपचार होता है। मर्ज जरा सा गंभीर हो तो मरीज को तुरंत ही रेफर स्लिप थमा दी जाती है। फिर एंबुलेंस के लिए मरीज देर तक भटकता रहता है। रात के समय हालात और भी बदतर हो जाते हैं। महिला डाॅक्टरों की जगह स्टाफ नर्स ही डिलीवरी का जिम्मा संभालती हैं। सामान्य प्रसव के केस ले लिए जाते हैं लेकिन अगर मामला आॅपरेशन यानी सीजेरियन का है तो उसे रेफर कर दिया जाता है। ऐसा नहीं कि हाथरस के सरकारी अस्पतालों में सीजेरियन आॅपरेशन नहीं होते, सिफारिश, दबाव, जान-पहचान जैसे कुछ कारण इसे मुमकिन बनाते हैं।
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